24 अप्रैल 2023

कहना मत बस अपना ग़म

 गीतिका
छंद- शील (वार्णिक)
सूत्र- सगण सगण सगण लघु लघु (स स स ल ल)
मापनी- 112 112 112 1 1
पदांत- 0
समांत- अम
कहना मत बस अपना ग़म।
करना बस हो जितना दम।1।
तन स्वस्थ रहे मन भी दृढ़,
हँस के करते रहना श्रम।2।
मिलता सबको कुछ ना कुछ,
अधिकाधिक या कम से कम।3।
रहना न अधीर न व्याकुल,
रखना बस ना मन में भ्रम।4।
क्षणभंगुर है यह जीवन,
हर शै रहता यह आलम।5।

23 अप्रैल 2023

ढूँढ़ लेंगी पुस्‍तकें ही जो अपेक्षित आज

 गीतिका

छंद- रूपमाला 

मापनी- 2122 2122 2122 21
पदांत- आज
समांत- इत
पुस्तकें पढ़ कर हुए हम सब सुशिक्षित आज।
ना पढ़े उनके हुए जीवन अलक्षित आज।1।

कल रचेंगी इक नई फिर पुस्तकें तारीख,
जो समय ने था रचा इतिहास रक्षित आज।2।

वक्त कहता पुस्तकों की ही कहानी नित्य,
पुस्तकों ने ही दिए कितने परीक्षित आज।3।

शैक्सपीयर, गुप्त, दिनकर या विदुर चाणक्य,
ढूँढ़ लेंगी पुस्तकें ही जो अपेक्षित आज।4।

पुस्तकों को आज ‘आकुल’ सब बनाएँ मित्र,
कल पढ़ेंगी पीढ़ियाँ यदि ये सुरक्षित आज।5।

18 अप्रैल 2023

उनका नसीबा

छंद- वसंत तिलका (वार्णिक)
मापनी- 221 211 121 121 22
पदांत- उनका नसीबा
समांत- अलते

जिद्दी नहीं पिघलते उनका नसीबा।

आँखें सदा बदलते उनका नसीबा।

होते कई गुनहगार न मार से भी,

बोलें न ही बहलते उनका नसीबा।

खर्चे करें अधिक है कम आय तो भी,
ले ले उधार पलते उनका नसीबा।
 
बैठे रहें पर नहीं रुकती जुबाँ है ,
बोले बिना न चलते उनका नसीबा।
 
ना हो सही समय ‘आकुल’ छूट जाते,
मौके कभी फिसलते उनका नसीबा।     

15 अप्रैल 2023

इंसान के बदलते व्‍यवहार देखे

छंद- वसंत तिलका  (वार्णिक)
मापनी 221 211 121 121 22
पदांत- देखे 
समांत- आर 
बाजार के हर चढ़ाव उतार देखे।
इंसान के बदलते व्यवहार देखे।1।

देखे हरेक शह पे लुटते बसेरे,
रूखे कहीं पर गुले गुलजार देखे।2।

पाये ग़रीब करते मनुहार प्राय:,
देते नसीहत सदा खुददार देखे।3।

अंधानुशासन वहाँ घटता नहीं है,
ऐसे कई धरम के दरबार देखे।4।

जी होशियार रह जीवन सादगी से
संस्कारवान कितने परिवार देखे।5।



14 अप्रैल 2023

बुलंद हो इकबाल

गीतिका

छंद- रूपमाला (मात्रिक / वाचिक)
मापनी- 2122 2122 2122 21 
पदांत- 0
समांत- आल 

देश के उत्‍कर्ष का बुलंद हो इकबाल । 
प्राण भी दे कर रखें ऊँचा वतन का भाल।1।
 
देशहित सर्वोच्‍च हो पीछे न हटना मित्र,
अब सँवारें देश बन के बागबाँ दिग्‍पाल।2। 
 
शांन्ति की खातिर सँभालें सरहदों पे वीर,
देश में आफत मचे बनना हमें परकाल।3।     
 
देश में चहुँ ओर हो सुख शांति का संचार,
प्रेम के मधुबन खिलें, जन जन रहें खुशहाल।4।
 
नौनिहालों ने लिखा है देश का भवितव्‍य,
है उन्‍ही के हाथ में उत्‍थान अब हरहाल ।5।
 
 

9 अप्रैल 2023

देश में बढ़ रहा कोरोना

गीतिका

छंद- गगनांगना
विधान- 25 मात्रीय, 16, 9 पर यति, अंत 212
प्रदत्त पदांत- चाहिए
प्रदत्त समांत- अहना

सामाजिक दूरियाँ बना कर, रहना चाहिए ।
स्वस्थ रहें हम कष्ट हाल हर, सहना चाहिए ।1।

खान-पान पर अब आवश्यक, अंकुश हो गया, स्वच्छ हो अब न हवा प्रदूषित, बहना चाहिए।2।

निकलें तभी जरूरी हो जब, बाहर काम से,
देश में बढ़ रहा कोरोना, कहना चाहिए।3।

जहान है अगर जान है तो, सब यह ठान लें,
हठाग्रह दुराग्रह कोई भी, शह ना चाहिए ।4।

मास्क लगाने की आदत अब, डालें सुखनवर,
कहीं न घर अब कोरोना से, ढहना चाहिए।5।

अंधविश्‍वास

मुक्‍तक
छंद- प्‍लवंगम्
विधान- प्रति चरण मात्रा २१ मात्रा, चरणारंभ गुरु, चरणांत गुरु लघु गुरु (रगण), यति ८-१३।
1
अंधविश्‍वास, एक जहर है मानिए ।
सोच समझ कर, भी न इसे अपनाइए ।     
जन जाग्रति ही, मात्र इक समाधान है,
शिक्षा की लौ, चहूँ दिशा पहुँचाइए।
 2
अंधविश्वास, ऐसा पक्षाघात है।
तन पर होता, जैसे हृदयाघात है।
जीवन भर यह, देता हमको त्रास ही,
कालरात्रि है, जिसमें नहीं प्रभात है।

2 अप्रैल 2023

संक्षिप्‍त रामचरित दोहा मुक्‍तावली

 357 


राम लला के जन्‍म से, धन्य हुआ भू लोक.

चार सुतों को देख के, दशरथ बने अशोक.

क्‍या ऋषि-मुनि, क्‍या नागरिक, देवलोक भी धन्‍य,

अवतारी के जन्‍म से, फैला चहुँ आलोक.


358

त्रस्‍त हुए सामान्‍य जन, पहुँचे जनक समीप.

खत्‍म हुआ अब धान्‍य धन, हरो पीर आधीप.

कृपा हुई तब भूप पर, कर पूजन हल भूमि,

माया बन प्रकटी सिया, जले घरों में दीप.

 359

सीता के स्‍पर्श से, हिला धनुष शिव जान.

जनक भये विस्मित तभी, करके मन में ध्‍यान.

वरण करेगा सिय वही, तोड़े धनुष पिनाक,

महा अलौकिक है सिया, किया जनक ऐलान.

 360

एकत्रित दिग्‍गज सभी, भू मंडल के भूप.

रावण, बलि, श्रीराम मय, पहुँचे सभी अनूप.

रावण की गर्जन सुनी, बलि से हुआ प्रलाप

छोड़ सभा रावण गया, छँटी अनल सी धूप.

 361

भूप सभी लज्जित हुए, जमा सके नहीं धाक.

कुछ तो ऐसे भी रहे, हिला न सके पिनाक.

जनक हुए चिंतित किया, करने लगे विलाप,

वीरों से वंचित हुई, भूमि हे स्‍वामि पिनाक.

362

                            राम उठे आशीष ले, किया चरण स्‍पर्श.

गुरु वंदन कर चल दिये, धनुष समीप सहर्ष.

दे अपना परिचय किया, वंदन शिव धनु देख,

उठा धनुष कर भंग फिर, देखा सिय का हर्ष.

 363

कुछ दिन आयोजन चला, विदा हुए सब भूप.

सभी चकित थे देख कर, वर्ण अलौकिक रूप.

ले वधुओं, बारात सँग, लौटे अवध नरेश,

पुष्‍प वृष्टि से हो रहा, पथ अवरूद्ध अनूप.

 364

दशकंधर के राज में, असुरों का उत्‍पात

हर गुरुकुल में थे बने, आतंकित हालात

रामलला पहुँचे हुआ, हर्ष अपार असीम,

प्रवृत्तियाँ फिर राक्षसी, बढ़ी नहीं दिन-रात.

365

रावण कुल का नाश जब, हुआ जहाँ आरंभ.

देख विकल लंकाधिपति, आहत होता दंभ.

शूर्पनखा विद्रूप मुख, मृत मरीच को देख,

दशकंधर ने सिय हरी, नाश हुआ प्रारंभ.


 
366

समरांगण में हत हुआ, दशकंधर सा वीर.

राज विभीषण सौंप कर, पहुँचे अवध अधीर.

राम-सिया अरु थे लखन, अंजनिसुत के संग,

रामराज्‍य में शांति की, बही सुगंध समीर.

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(शीघ्र प्रकाशनाधीन मुक्‍तक सतसई 'एक समय था' से)