14 जुलाई 2016

लगता है अच्‍छा-अच्‍छा

(हाल ही में अपने पुत्र का आर्म्‍ड फोर्स मेडिकल कोर्प्‍स में मेडिकल ऑफिसर के चयन और मेरी सेवानिवृत्ति के बाद आए मन के भावों को इस नवगीत में उकेरा है। )

मिला विगत से जो भी अब तो 
कैप्‍टन (डा0) पीयूष भट्ट 
लगता है अच्‍छा अच्‍छा।

इक दिन में मन मन भर लूँ
बरसों की बीती घटनाएँँ
यादों के जंगल में सारे 
संगी-साथी मिल जाएँँ

उनके दम जीता जग अब तो
लगता है अच्‍छा अच्‍छा।

मन हलका है अब इतना 
मैं उड़ूँ गगन में दूर तलक
हिरण चौकड़ी भरते चातक 
चाँँद ताकते भोर तलक 

खुद से बातें करते अब तो
लगता है अच्‍छा अच्‍छा। 

जब से मैं सेवा से मुक्‍त 
हुआ हूूँँ पूरी उमर बिता
जिम्‍मेदारी से भी लगभग
मुक्‍त हुआ हूँ पूर्णतया 

थाम लिया बच्‍चों ने अब तो
लगता है अच्‍छा अच्‍छा।

हाथ थाम जीवन साथी भी 
अब खुश है यह क्षण पा कर
छोटी छोटी खुशियाँँ बाँँटेंगे
मिलजुल कर बतिया कर 

मुट्ठी में जग सारा अब तो
लगता है अच्‍छा अच्‍छा।

शायद ऐसे ही बनती है
मिसल कहावत लोकोक्ति
जीवन दर्शन भााग्‍य आस्‍था
चमत्‍कार और अतिशयोक्ति 

संघर्षों का फल पा अब तो
लगता है अच्‍छा अच्‍छा।