6- लघुकथा कहानी की निकटतम विधा है, उसका साररूप नहीं

लघुकथा पर संक्षिप्‍त आलेख 
कहानी में कल्‍पना को यथार्थ नहीं बनाया जाता, अपितु यथार्थ को कहानी का स्‍वरूप दिया जाता है। इसलिए लघुकथा, कहानी की निकटतम विधा है, उसका साररूप नहीं
-आकुल
     
कथा शब्‍द आते ही मानस पटल पर चित्र अंकित हो जाता है, रामायण, महाभारत अथवा पुराण वर्णित घटनाओं का। हमारी अक्षुण्‍ण संस्‍कृति का हिस्‍सा रही हैं कथाएँ। यही कारण है कि आज भी सम्‍पूर्ण भारत में कथाओं का श्रवण भगवत कथा, उनके मंचन आदि रूप में सुनने, देखने को मिल जाते है। संत महात्‍माओं के प्रवचनों में भी इन्‍हीं कथाओं का दृष्‍टांत के रूप में वर्णन मन को तृप्‍त करता है।
लघुकथा के आशय को समझने के लिए इसके विपरीत सोचा जाये। लघुकथा से बड़ी होती है कहानी। कहानी से बड़ा होता है उपन्‍यास। उपन्‍यास से बड़े होते हैं ग्रन्‍थादि। लघुकथा को उपन्‍यास या कहानी का साररूप समझने की गलती नहीं करनी चाहिए। लेखन की विधा में तीन प्रकार के साहित्‍यों का चलन कालांतर से चला आ रहा है। गद्य, पद्य और चम्‍पू साहित्‍य। गद्य में उपन्‍यास, नाटक, कहानी, कथाएँ, लेख, आलेख, निबन्‍ध, आत्‍मकथा, संस्‍मरण, यात्रा वृत्‍तान्‍त आदि आते हैं। पद्य में छंदोबद्ध रचनायें, कविताएँ, मुक्‍तक, गीत, ग़ज़ल आदि आते हैं। गद्य-पद्य मिश्रित रचनाओं को चम्‍पू साहित्‍य में सम्मिलित किया जाता है। गद्य में कथानक और पद्य में कथा के मूल का वर्णन चम्‍पू काव्‍य कहलाता है, जो साहित्‍य को उत्‍कृष्‍ट बनाता है। गांभीर्य साहित्‍य के कारण चम्‍पू साहित्‍य आज मृतप्राय हो चुका है। कथा की अनेक विधायें हैं, जैसे दन्‍तकथा, लोककथा, प्रेरक प्रसंग, नीतिकथा, बोधकथा आदि। प्राय: कथा संक्षिप्‍त रूप में अपना प्रभाव छोड़ती है, कथा के रूप में प्रचलित हुई है, किन्‍तु आज यदा कदा ही ऐसी कथायें सुनने पढ़ने को मिलती हैं।     

उपन्‍यास के बारे में इतना कहना पर्याप्‍त होगा कि इसमें एक युग को समेटा जा सकता है। कहानी उपन्‍यास का छोटा रूप है, जो एक घटना को समेटते हुए उसके सकारात्‍मक और नकारात्‍मक स्‍वरूप को विस्‍तारपूर्वक कहने की चेष्‍टा करती है। लघुकथा को कहानी का छोटा रूप कहने का साहस हम नहीं कर सकते। हाँ, लघुकथा, कहानी की निकटतम विधा है। शाब्दिक अर्थ में ‘कथ्’ धातु से व्‍युत्‍पन्‍न ‘कथा’ शब्‍द का सहज अर्थ है ‘वह जो कहा जाए’, किन्‍तु वह सब बातें, जो कहीं जाएँ कथा नहीं कहलातीं। कही हुई घटना जो घट चुकी है और उसका प्रभाव कालांतर चलता रहेगा, उसके विकृत परिणाम विचारणीय हों, जिनके लिए सुझाया गया समाधान वर्णित करते हुए, ऐसी कथाओं का सृजन, काल और परिस्थितिजन्‍य, लेखनी से उकेरना कथा है। बिना लाग लपेट किये सीधी भाषा में उसके संक्षिप्‍त रूप के कथन को, लघुकथा कहा जा सकता है। कम शब्‍दों में घटना का विवेचन, दृष्‍टांतों के साथ उसे शृंगारित करना, लघुकथा को श्रेष्‍ठ बनाता है। विस्‍तार को समेट कर लघुता का निर्वाह, जिसमें प्रत्‍येक शब्‍द और पंक्त्‍िा का महत्‍व हो, यहाँ तक कि लघुकथा में शीर्षक का विशेष महत्‍व होता है, जो लघुकथा के मर्म को समझा देता है उसे लिखना लघुकथा की विशेषता होनी चाहिए। शीर्षक के इर्द गिर्द उसका निरंतर घटना प्रवाह, कथा को सफल बनाता है। पूरी कथा एक प्रतिबिम्‍ब की तरह होती होनी चाहिए। 
आज लघुकथा समसामयिक घटनाओं पर अधिक लिखी जा रही हैं, जिसका वर्णन करके, कम से कम शब्‍दों में लिख कर इति कर दी जाती है, किन्‍तु समाधान या प्रेरणा को बिम्‍ब की भाँति प्रस्‍तुत करने के प्रयास नहीं किये जा रहे हैं, जो लघुकथा यात्रा का कमजोर पक्ष है। लघुकथा का स्‍वरूप कहानी से छोटा अवश्‍य होता है, किन्‍तु उसका प्रभाव अत्‍यधिक होता है। बस, कुशल कथाकार की लेखनी का कमाल होना चाएि। कथाकार कथा के माध्‍यम से किस रूप में प्रेरित करना चाहता है अथवा समाधान देना चाहता है, इसका वर्णन कथाकार की कलम से होना अत्‍यावश्‍यक है। पाठक उसे अपने तरीके से समझे, यह कथा का उद्देश्‍य नहीं होना चाहिए। वह निडर होकर लिखे कि इस कथा को लिखने में निहित उद्देश्‍य क्‍या था ? ये प्रभाव दन्‍तकथाओं, प्रेरक प्रसंगों आदि में देखने को ज्‍यादा मिलता है। शिक्षाप्रद कथाओं, बालकथाओं में ये मुख्‍य रूप से पढ़ने को अवश्‍यमेव मिलता है।  
कथाकारों का वर्णन करने लगूँगा तो यह आलेख उपन्‍यास नहीं बन जाये, इसलिए संक्षिप्‍त में एक कथाकार का नाम अवश्‍य उल्‍लेख करूँगा, ‘चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’, जिनकी कहानी ‘उसने कहा था’ ने उन्‍हें उच्‍चकोटि का कथाकार बना दिया। आप सोच रहे होंगे कि कहानी की नहीं लघुकथा की बात चल रही है। ‘गुलेरी’ का वर्णन इसलिए किया है कि ‘उसने कहा था’ कहानी में उनकी कल्‍पना का चमत्‍कारिक प्रभाव आज भी कथाकारों के लिए अनुकरणीय है। ऐसी कल्‍पना, कथा में ही देखी जा सकती है। कथायें पौराणिक, ऐतिहासिक और कल्‍पनात्‍मक प्रस्‍तुति का मिश्रण होती हैं। कहानी में कल्‍पना को यथार्थ नहीं बनाया जाता अपतिु यथार्थ को कहानी का स्‍वरूप दिया जाता है। उसी का प्रभाव था कि रामधारी सिंह दिनकर, उपेन्‍द्रनाथ ‘अश्‍क‘, प्रेमचंद, विष्‍णु प्रभाकर आदि अनेकों कवि और लेखक भी इससे अछूते नहीं रहे और गाहे बगाहे उन्‍होंने भी लघुकथा पर कलम चलाई है। स्‍वतंत्रता आन्‍दोलन की कालावधि में लघुकथाओं को सम्‍यक् सम्‍प्रेषण के रूप में पत्रकारिता का माध्‍यम मिला, जिसे उकेर कर अनेकों लघुकथा लिखी गईं। आज लघुकथा की बाढ़ सी आई हुई है। पिछले दशक से अखिल भारतीय स्‍तर पर लघुकथाओं के सम्‍मेलन, चर्चाओं का दौर निरन्‍तर जारी है। हजारों लेखक लघुकथाकार होने का स्‍वप्‍न सँजोए बैठे हैं। चर्चे हो रहे हैं, किन्‍तु कौन किस कोटि का लघुकथाकार है, इस पर चर्चे नहीं हो रहे हैं। इसी तरह उत्‍तर और मध्‍य भारत में रचे जा रहे समस्‍त साहित्‍यों पर सम्‍मानों की बौछारों हो रही हैं, जिसमें सम्‍मानित किये जाने के मापदण्‍ड पर एक यक्ष प्रश्‍न हमेशा खड़ा रहता है, जिस पर भी चर्चाएँ होनी चाहिए।        

1942 से चली आ रही लघुकथा की यात्रा कब तक चलेगी, उसका स्‍वरूप और विकृत होगा या निखरेगा, यह हमारे कथाकारों, विद्वानों पर निर्भर है। कविताओं ने छन्‍दों का वक्षत्राण उतार फैंका है और मुक्‍ताकाशीय प्रतिबिम्‍बों का स्‍वरूप बनी हुई हैं। 8 से 10 पंक्ति की लघुकथाएँ लिखी जा रही हैं। बिना शोध किए नए नए छन्‍दों का जन्‍म किया जा रहा है। रंगमंचीय नाटकों का दौर लगभग खत्‍म सा हो रहा है, नुक्‍कड़ नाटकों का चलन चल पड़ा है। इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि माहिया, हाइकू, तांका की तरह लघुकथा पर पंक्तियों या शब्‍दों का बंधन बाँध कर नई विधा न पनप जाए। हमें इसके पौराणिक परिवेश को पुन: जीवन्‍त कर लघुकथा के मूल को पुनर्जीवित करना होगा। अन्‍यथा कथा का भविष्‍य चम्‍पू साहित्‍य की भाँति मृतप्राय नहीं हो जाए। वैसे ही गद्य साहित्‍य बहुत कम लिखा जा रहा है। विश्‍व के सर्वश्रेष्‍ठ महाकाव्‍य महाभारत, रामायण, वेदों, उपनिषदों और अनेक पौराणिक ग्रन्‍थों से चली आ रही लेखन विधा उपन्‍यास, कहानी, कथा और फि‍र लघुकथा के सोपान उतरती हुई धूलधूसरित न हो जाए, इस पर अंकुश लगाना होगा। हमने साहित्‍य का उत्‍कर्ष पढ़ा और सुना है, आज साहित्‍य के चरम से पतन को अग्रसर होते हुए भारतीय साहित्‍य को फि‍र संजीवनी की आवश्‍यकता महसूस हो रही है। आग्रह है कि साहित्‍य को और नये नये रूप देने के प्रयास कम होने चाहिए। 

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 27 मई 2017 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
    

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    1. आभार आदरणीया. समय पर लिंक पर नहीं जा सका. खेद है.

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  2. आदरणीय ,सुन्दर व रोचक प्रस्तुति ,आभार। "एकलव्य"

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  3. ब्‍लॉग पर भ्रमण व टिप्‍पणी के लिए आभार आदरणीय.

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    1. आपके ब्लॉग के मेल टिप्पणी नोटिफ़िकेशन में मेरी मेल आईडी एड है पिछले कई वर्षों से। आपकी किसी भी पोस्ट की गई टिप्पणी मुझे मेल के द्वारा मिलती है, कृपया मेरी मेल आईडी वहां से हटाईए।

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  4. क्या आप ये लेख एक पुस्तक में न्शामिल करने के लिए देना चाहेंगे

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  5. बहुत शोधात्मक आलेख. हार्दिक बधाई व मंगलकामनायें

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  6. https://m.facebook.com/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%B2%E0%A4%98%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE-100364608029921/?ref=bookmarks

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