1
कोयल
का घर फोड़ कर, घर घर ढूँढ़े प्रीत ।
अब
तक तो कोई नहीं, मिला काक को मीत ।।
2
बड़
बड़ बातें बोल कर, काक घटाते मान ।
चाहे
चतुर सुजान हैं, नहीं मिले सम्मान ।।
3
दशाह
घाट श्मशान या, श्राद्ध पक्ष में श्रेय ।।
मिले
काकश्री को सदा, समझो उसे न हेय ।
4
काक
चेष्टा भले ही, जग में हुई बखान ।
भूला
जग अब तक नहीं, सीता का अपमान ।।
5
गो-ब्राह्मण
बिन कनागत, दशा(ह) घाट बिन काक ।
सद्गति
बिन उत्तर करम, जीवन ना बिन नाक ।।
6
कागा
महिमा जान लो, पंडित काकभुशुंड ।
पर
जयंत को भी मिला, एक आँख का दंड ।।
7
कागा
की परिवार से, कभी न देखी प्रीति ।
औघड़
सा घूमे सदा, कौन सिखाए रीति ।।
8
कोयल
बुलबुल कब लड़ें, करें न अतिक्रम, क्लेश ।
कागा
का भी घर बसे, हो यदि चेष्टा लेश ।।
9
मादा कागा दुखी है, कागा की मति देख,
नहीं चाह कर संग में, रहे भाग्य के लेख ।।
10
कहीं
न क्यों पिक जा छिपे, लेता काक निकाल।
ऐयारी
में काक की, कोई नहीं मिसाल ।
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