30 मार्च 2019

है जड़ से जो जुड़ा हुआ (गीतिका)

छंद- ताटंक
पदांत- आएगी
समांत- आली

है जड़ से जो जुड़ा हुआ इक, दिन हरियाली आएगी.
आँधी आये जब  समझो इक, दिन खुशहाली आएगी.

वृक्षों से धरती पर आती हैं ऋतु आते मेघ घने,
तुम काटोगे वृक्ष जिंदगी में बदहाली आएगी.

झूले नहीं पड़ेंगे नहीं सुनाई देंगे सावन गीत,
छुट-फुट बरखा करने सावन की रुत खाली आएगी.

वैसे ही अब पंख पखेरू कहाँ चहचहाते दिन भर,
गीदड़ श्‍वानों की टोली अब बनी रुदाली आएगी.

चौपालें, पनघट सूने, हैं कुँए बावड़ी सूनी हैं,
वृक्ष काट खुश है मानव उसकी भी पाली आएगी.

ना ही फूटेंगे टेसू, कचनार, हारसिंगार यहाँ, 
छायेगा न बसंत व होली भी न गुलाली आएगी.

25 मार्च 2019

पढ़ें इतिहास को कितने हुए बलिदान धरती पर (गीतिका)


छंद- विधाता
मापनी- 1222 1222 1222 1222
पदांत- धरती पर
समांत- आन 

पढ़ें इतिहास को कितने हुए बलिदान धरती पर.
अमन की राह पर आयें न अब तूफान धरती पर.

बदल जायें न बदले की रखें अब भावना दिल में,
बने कोई नहीं अब जान कर अनजान धरती पर.

हवाओं ने सदा गाये हैं’ हरदम गीत खुशियों के,
लिखे इंसान ने ही हैं मरसिया गान धरती पर

करे जो भी पहल आतंक के साये में’ चलने की,
नहीं दुनिया में’ उससे बढ़ के’ है हैवान धरती पर.
 
नहीं सीमा पे’ अब कोई कँटीली बाड़ हो ईश्‍वर,
रहें सब प्रेम से सरहद परे आसान धरती पर.

सदा त्योहार, पर्वों ने तो’ पाटी खाइयाँ अकसर,
बनाता है दिलों में खाइयाँ इनसान धरती पर.

अगर आयें समंदर में कभी लहरें बगावत की,
समझना गंगा’-यमुना का है’ यह ऐलान धरती पर.

न कहना फिर कि ऐ ‘आकुल’ किया होता सबर कुछ तो, 
बचे ना दोगला इक भी न ही शैतान धरती पर.

18 मार्च 2019

जली ज्योत से ज्योत, मनी दीवाली है (गीतिका)


छंद- मंगलवत्थु (सम मात्रिक) मापनीमुक्‍त
विधान- 11, 11 पर यति अंत 2 गुरु से
पदांत- है
समांत- आली

जली ज्योत से ज्योत, मनी दीवाली है.
पली प्रीत से प्रीत, बढ़ी खुशहाली है

वैमनस्य को ओढ़, बढ़ें मन की दूरी,
नहीं फली जब प्रीत, बढ़ी बदहाली है.

जीवन रिश्ते तोड़, चला है कितने डग,
मिले अकेले लोग, दृष्टि जब डाली है.

हारा अहं सदैव, सब्र हर दम जीता,
जो भी रहा विनम्र, प्रतिष्ठा पाली है.

आज हुए दिव्यांग, अपंग कहाते थे,
बधिया बैल न आज, जोतता हाली है.

12 मार्च 2019

दो आशीष शारदे माँ (गीतिका)

छंद- लावणी
विधान- 16, 14 अंत गुरु वर्ण से
पदांत- में लगा रहूँ
समांत- अन

दो आशीष शारदे माँ साहित्‍य सृजन में लगा रहूँ.     
कैसे भी नीरोग रहूँ दिन-रात मगन में लगा रहूँ. 

घूमूँ नित मैं मंदिर, बाग-बगीचे, नदी किनारे भी,
कभी न पडूँ कुसंग न कोई किसी व्‍यसन में लगा रहूँ  

बहुत लिया आशीष सभी से कुछ दे सकता हूँ तो दूँ,
और नहीं तो बाकी जीवन अभिनंदन में लगा रहूँ.

जीवन को अध्‍यात्‍म तरफ मोड़ा है शक्ति मुझे देना,
ध्‍यान-योग से दान-धर्म से पर्यूषन में लगा रहूँ.

‘आकुल’ यह जीवन अमूल्‍य है, नहीं मिला मुझको यूँ ही,
जीवन सिद्ध करूँ लोकायन, सृजनायन में लगा रहूँ.