5- 'जीवन की गूँज' से

अभि‍लाषा

चाहत है फूलों सा महकें सूना सूना है उपवन।
चाहत है चि‍ड़ि‍यों सा चहकें, सूना सूना है आँगन।
चाहत है यौवन सा दहकें, सूना सूना है दरपन।
चाहत है दृग घन सा बरसें, सूना सूना है सावन।
चाहत है अरमाँ भी भड़कें, सूना सूना है तन मन।
चाहत है कुछ कर दि‍खलायें सूना सा ना हो जीवन।

चाहत है कि‍ बहे पसीना श्रमजीवी इंसान बने।
चाहत है कि‍ बने कभी ना वहशी बस इंसान बने।
चाहत है दौलत केा भूखा ना हो बस इंसान बने।
चाहत है बन सके बने शि‍व या फि‍र बस इंसान बने।
चाहत है दि‍ल दरि‍या हो या फि‍र हो सागर मंथन।
चाहत है कुछ कर दि‍खलायें सूना सा ना हो जीवन।

वो भी थे जो जुड़े वतन से और बने हुतात्मा।
वो भी थे जो चले सत्य की राह बने धर्मात्मा ।
वो भी थे जा राह अमन की चुन कर बने महात्मा।
जन जन के सीने में धड़के वो बनके परमात्मा।
चाहत है फि‍र बजे बाँसुरी और जनम लें श्रीकि‍शन।
चाहत है कुछ कर दि‍खलायें सूना सा ना हो जीवन।


लक्ष्‍य का संधान कर

मान कर सम्‍मान कर, संकल्‍प ले अनुमान कर।
कर प्रण अटल, दृढ़ नि‍श्‍चय कर और लक्ष्‍य का संधान कर।
मत भूत का संज्ञान कर, बस धन्‍य वर्तमान कर।
बढ़ प्रगति‍ पथ पर वर्द्धमान, भवि‍ष्‍य का अनुसंधान कर।।


योग कर तू योग्‍य है, न अयोग्‍य का तू वि‍योग कर।
यह जन्‍म तो संयोग है, प्रयोग कर, प्रति‍योग कर।
उद्योग कर, वि‍नि‍योग कर, मनोयोग से सहयोग कर।
मत पाल भ्रम नि‍योग कर, तू कर्मयोगी सुयोग कर।।


कर सके अनुकरण कर, अनुसरण कर, कुछ वरण कर।
प्रभुचरण में अर्पण प्रवण तू, प्रणव का स्‍मरण कर।
परि‍भ्रमण कर, परि‍श्रमण कर, जीवन को तू संस्‍करण कर।
ना अति‍क्रमण कर, परि‍चरण कर, सत्‍संग कर, हरि‍शरण कर।।


परि‍हास ना प्रयास कर, परि‍भाष ना प्रभाष कर।
परि‍दोष ना प्रदोष कर, परि‍तोष ना संतोष कर।
प्रहार ना परि‍हार कर, संहार ना सब हार कर।
कंचन सा तप और ध्‍यान कर, संकल्‍प ले अनुमान कर।
कर प्रण अटल, दृढ़ नि‍श्‍चय कर और लक्ष्‍य का संधान कर।।

15-09-2011


मेरा भारत महान्

पर्वत हिमगिर का आलिंगन पर सदा शक्ति का ध्‍यान रहे।
न्‍याय मधुर आतिथ्‍य में सदैव परिधान रहे।
द्रव्‍य कोष संचित उद्यम में तत्‍प्‍ार हर इंसान रहे।
हरित क्रांति वन रक्षा कोई मरुस्‍थल न वीरान रहे।
अक्षर ज्ञान प्रसार हो घर-घर कोई न अज्ञान रहे।
गणना वर्ष साक्ष्‍य है हमको निर्धनता का भान रहे।
स्‍थाई हो रोजगार और हर श्रम का सम्‍मान रहे।
तन-मन-धन से राष्‍ट्र विकास का जन-जन में अरमान रहे।
छिन्‍न भिन्‍न ना हो यह संस्‍कृति अस्मिता की पहचान रहे।
याद दिलाता रहे हमेशा हमको यह अभिमान रहे।
नभ-जल-थल पर आन है अपनी ध्‍वज निर्भय गणमान्‍य रहे।
वेदों से अभिमंत्रित मेरा भारतवर्ष महान् रहे।

22-08-2010

भारत मेरा महान्

उन्‍नत भाल हिमालय सुरसरि गंगा जिसकी आन ।
उन्‍मुक्‍त तिरंगा शांति-दूत बन देता है संज्ञान ।
चक्र सुदर्शन सा लहराये करता है गुणगान ।
चहुँ दिशा पहुँचेगी मेरे भारत की पहचान ।।


महाभारत, रामायण, गीता, जन-गण-मन सा गान ।
ताजमहल भी बना मेरे भारत का अमिट निशान ।
महिला शक्ति बन उभरीं महामहिम भारत की शान ।
अद्वितीय, अजेय, अनूठा ही है भारत मेरा महान् ।।


यह वो देश है जहाँ से दुनिया ने शून्‍य को जाना ।
खेल, पर्यटन और फि‍ल्‍मों से है जिसको पहचाना ।
अंतरिक्ष पहुँच, तकनीकी प्रतिभाओं से विश्‍व भी माना ।
बिना रक्‍त क्रांति के जिसने पहना स्‍वाधीनी बाना ।।


भाषा का सिरमौर, सभ्‍यता, संस्‍कार, सम्‍मान ।
न्‍याय और आतिथ्‍य हैं, मेरे भारत के परिधान ।
विज्ञान, ज्ञान, संगीत, मिला आध्‍यात्‍म गुरु का मान ।
ऐसे भारत को 'आकुल' का शत-शत बार प्रणाम ।।

05-08-2010


ओह ॠतुराज--------"

ओह ॠतुराज न करना संशय आना ही है।
तुमको दूषित प्रकृति पर जय पाना ही है।
धरा प्रदूषण का हालाहल पीकर मौन।
जीवन को संरक्षण तब देगा कौन?


ग्रीष्‍म-शरद-बरखा ने अपना कहर जो ढाया।
देख रहे अब शीत-शिशिर का रूप पराया।
तुम भी कहीं न सोच बैठे हो साथ न दोगे।
कैसे तुम तब वसुन्‍धरा का मान करोंगे?


जगत् जननी के पतझड़ ऑंचल को लहराओ।
वसन्‍तदूत भेजा है हमने फौरन आओ।


दो हमको संदेश पुन: जीवन का भाई।
भेजो पवन सुमन सौरभ की जीवनदायी।


हम संघर्ष करेंगे हर पल ध्‍यान रखेंगे।
उपवन कानन प्रकृति धरा की शान रखेंगे।


स्‍वच्‍छ धरा, निर्मल जल सुरभित पवन बहेगी।
वसुधा वासंती ऑंचल को पहन खिलेगी।।


02-07-2010

हाइकु

1-
संस्‍कार होंगे
राम राज्‍य के स्‍वप्‍न
साकार होंगे।

2-
बेच ज़मीर
बनता है तब ही
कोई अमीर।

3-
भ्रष्‍टाचार तो
कैंसर है, देश जो
है लाचार तो।

4-
भ्रूण हनन
नारी उत्‍पीड़न व
माँ का क्रंदन।

5-
वृक्षारोपण
से ही परिरक्षित
पर्यावरण।

6-
क्‍या नाजायज
सत्‍ता, युद्ध, प्रेम में
सब जायज।

7-
स्‍वतंत्र हुए
बगल के नासूर
भी पाले हुए।

8-
है नारी वो क्‍या
न सिर पे पल्‍लू न
आँखों में हया।

9-
आतंकवाद
देश की सम्‍प्रभुता
पर आघात।

10-
आरक्षण भी
अल्‍पसंख्‍यकों जैसी
राजनीति ही।

17-06-2010