29 फ़रवरी 2024

कंधे से कंधा मिला रहीं

गीतिका 
छंद – सिंह विलोकित
चार चरण सम मात्रिक छंद चरणांत लघु गुरु
पदांत- रहीं
समांत- इला

कंधे से कंधा मिला रहीं।
आसमान पे झिलमिला रहीं।

जग रही बेटियाँ, याद सब,
वीर नारियों की दिला रहीं।

दोयम समझ आँका जिन्‍हें अब,
दुश्‍मनों के किले हिला रहीं।

अति उत्‍साह जिम्‍मेदारियाँ,
निभाती सभी खिलखिला रहीं।

इतिहास साक्षी है देश में, 
राष्‍ट्र प्रमुख शीर्ष महिला रहीं।

28 फ़रवरी 2024

मनहर ऋतु बसंत आई है

गीतिका 

छंद- चौपाई
पदांत- है
समांत- आई
मनहर ऋतु बसंत आई है, चली पवन भी सरसाई  है।
भेजा है सौरभ निसर्ग ने, ली मौसम ने अँगड़ाई है।

नई कोंपलें डाल डाल पर, पंछी उड़ते नभ विशाल पर,
सरसों के खेतों ने पहनी, पीत चुनरिया लहराई है।

खेत मुस्‍कुराए सरसों के, कृषक मुस्‍कुराए बरसों के,  
पवन चली सौरभ अब हरसू, भुनगों में मस्‍ती छाई है। 

हर कलियों के तन गदराए, यौवन पा कर वह इतराए,
करने लगे भ्रमर गुंजारें, कोयल कहीं गुनगुनाई है।

रोकें पेड़ों पर अब घातें, बिछें न कोई चाल बिसातें,
धरती ने सिंगार किया है, देखो महकी अमरार्इ् है।

होली में मलते रँग छलिया, ध्रुपद धामार चंग ढप रसिया,
कहीं चुहल छल हँसी ठिठोली, थोड़ी सी यह हरजाई है।

ऋतुएँ स्‍वाभिमान ना छोड़ें, कभी न अपनी हद को तोड़ें,
प्रकृति सभी को देती मौका, सबकी करती भरपाई है ।

27 फ़रवरी 2024

बढ़े न आय खर्च पे लगाम खींचिये

गीतिका
छन्‍द- अनंद (वर्णिक)
मापनी-121 212 121 212 12 (ज र ज र ल ग)
सहज मापनी - 12 12 12 12 12 12 12
पदांत- 0
समांत- इये

बढ़े न आय खर्च पे, लगाम खींचिये ।
ना बैंक ना महाजनी उधार लीजिये।  

न खत्‍म हों, स्‍वभाव, आदतें, बुराइयाँ,
रहें मौन और जोड़-भाग कीजिये ।

सभी न दूध के धुले, हुए समाज में, 
कहीं न देखिए कमी, न दोष दीजिये।

बजार हाट जाइए न कार आदि से,
कभी कभार मोल-भाव से खरीदिये।   

न शेषता रहे कभी, विशेषता रहे,
किसी अशेष की दुआ, अनेक जीतिये। 
 

25 फ़रवरी 2024

बालाओं को आज पढ़ाना ही होगा

गीतिका
छन्‍द- रास
पदांत- ही होगा
समांत- आना

बालाओं को आज पढ़ाना, ही होगा।
क्‍यों आवश्‍यक राज़ बताना, ही होगा।

घर या बाहर देखरेख अब, हो पूरी,
पहली आदत आज बनाना ही होगा।

आत्‍मसुरक्षा की तकनीकें, आज सभी,
बचपन से हर हाल सिखाना ही होगा 

शिक्षित हों सब जन जाग्रति की, हाथों में,
क्रांति मशालें आज जलाना, ही होगा।    

अपरिहार्य हालातों, चाहे, मजबूरी,
संग रखें या जुगत लगाना, ही होगा।

गिद्ध दृष्टि, ना पड़े शृगालों, की उन पर,
उनका नाम निशान मिटाना, ही होग।

शिक्षा की लौ जले अनवरत, अब ‘आकुल’, 
आज एक इतिहास रचाना, ही होगा।

नारी ना बन जाए इक दिन अवतारी

गीतिका
छंद- रास
पदांत- 0
समांत- आरी
मातु शारदे वरद हस्‍त पा, कर नारी।
शिक्षा संस्‍कृति कला खेल में, है न्‍यारी।

कोई क्षेत्र न बचा ¡जहा वह ना शामिल,
लोहा मनवाती  अब उसकी छवि भारी।

धन वैभव, में अव्‍वल नेत्री, अभिनेत्री,
फर्श से अर्श है पहुँची वह है, अधिकारी।

प्रथम नागरिक बन कर भी चौंकाया है,
अब इसको कह मत करना त्रुटि, बेचारी।

कोख उजाड़ी, बचपन लूटा, कर विकृत,
नारी का अब धैर्य न छूटे इस बारी।

प्रकृति साथ होगी जिस दिन भी, नारी के,
रूप विराट दिखाएगी कर, तैयारी।

इससे ज्‍यादा क्‍यो होगी अति, धरती पर,
नारी ना बन जाए इक दिन, अवतारी।

24 फ़रवरी 2024

सर्वोपरि हो महिलाओं का अब सम्‍मान

गीतिका
छन्‍द- निश्‍चल  
पदान्‍त-0 
समान्‍त- आन 

सर्वोपरि हो महिलाओं का अब सम्‍मान।
दृष्टि तभी जाएगी उनका, हो गुणगान।

कर लें गणना घर या बाहर, कितनी व्‍यस्‍त,
जिम्‍मेदारी से जाएगा, उन पर ध्‍यान।

जितना काम प्रमुख उतना ही, घर-कुटुम्‍ब,
शीर्ष प्रबन्‍धन में रहती वह, सदा प्रधान।

नारी का सर्वोपरि रहता,  संचय शोध,
सदा निरर्थक खर्चों का, रहता है भान।

नारी पर अति से ही आए, घने प्रकोप,
फलत: भूतकाल ने लिक्‍खे, नए विधान।

वर्तमान फिर देख रहा है, नारी क्‍लेश,
कोरोना काल सदृश ना हो, फिर बलिदान।

अब विज्ञान करे नारी पर, अनुसांधान,
क्‍यों संसार धरा को माने, मातृ समान।

21 फ़रवरी 2024

बेटी हो, नारी हो या हो, बाल श्रमिक बंधा मजदूर

गीतिका
छन्‍द आल्‍ह
पदांत- 0
समांत– ऊर  

बेटी हो, नारी हो या हो, बाल, श्रमिक बंधा मजदूर।
गाँव शहर ढाणी में ढूँढो, शायद मिले नशे में चूर।

इसी दासता की बेड़ी ने, रोका है हमको हर वक्त,
रही सदा हर दम है दिल्‍ली, भय के ही साये में दूर।

तीन तलाक, नीरजा से भी, बन न सके हम यदि चैतन्‍य,
फिर लुटते दिख जाएगी हर, मोड़ निर्भया इक मजबूर।

शिक्षा से घर-घर में फैले, जीने की भी बदले सोच,
अब न कहीं फलने पाएँ, कुप्रथाएँ अंधे दस्‍तूर।

हरे-भरे खलिहान खेत हों, धरती की बदले तकदीर,
अभयारण्‍य बढ़ें हों दुगुनी, प्रकृति सम्दाएँ भरपूर।

जाग्रति तब आएगी जब हर, प्राणी बनता दिखे समर्थ,
जीवन अब संघर्ष नहीं हो,चमके अब वह दूर-सुदूर।

चलो आज संकल्‍प करें हम, नए साल में हो यह सोच,
होगा तब उत्‍थान राष्‍ट्र का, हो ‘श्रमेव जयते’ मशहूर।

 

19 फ़रवरी 2024

सोच समझ कर सारे निर्णय कर इनसान

 गीतिका
छंद- निश्‍चल
पदांत- इनसान
समांत- अर

सोच समझ कर सारे निर्णय, कर इनसान।  
तू बस कर संघर्ष कभी मत, डर इनसान।

असफलता से डर कर पीछे, कभी न लौट,  
उड़ना तुझको रख सॅभाल कर, पर इनसान।  

दर्द बाँटता,  सँग हो दुख में, वह ही मित्र,   
दुखती रग पर हाथ कभी ना,  धर इनसान।

नाम रहे  कर गुजर अनूठा, बरखुरदार
हो जाते खँडहर तमाम भी, घर इनसान।

सभी अकेले आए जग में, क्‍यों रख मोह,
छोड़ अकेले जाते आकुल, हर इनसान।

17 फ़रवरी 2024

राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्‍तकालय कोटा में पांच दिवसीय साहित्‍य महाकुम्‍भ (पुस्‍तक मेले) में आकुल के चार पुस्‍तकों का प्रदर्शन एवं 2 पुस्‍तकों का लोकार्पण

पुस्तक 'गीत संजीवनी' का विमोचन करते साहित्यकार- बायें से ओज कवि एवं संचालक श्री राजेंद्र पँवार, वरिष्‍ठ साहित्‍यकार जितेंद्र निर्मोही, पूर्व निदेशक प्रचार प्रधानमंत्री कार्यालय एवं सिंधी साहित्‍य के ख्‍यात नाम साहित्‍यका, आकुल, मंडल पुस्‍तकालयाध्‍यक्ष, साहित्‍यकार एवं पत्रकार डॉ. प्रभात सिंघल एवं सहा. पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ. शशि जैन, व्याख्याता एवं अन्य
     पाँच दिवसीय संभाग स्‍तरीय पुस्‍तक मेला का चौथा दिन 15.02.2024। हिंदी-सिंधी साहित्य, बालसाहित्‍य और पुस्‍तक विमोचन को समर्पित रहा और पाँचवा दिन 16.02.2024 समापन समारोह व साहित्‍यकारों को सम्‍मानित करने को समर्पित रहा। 

    12/02/2024 से 16/02/2024 तक पॉंच दिन चले संभाग स्‍तरीय साहित्‍य कुंभ का आयोजन 65 सत्रों में कोटा में पहली बार किया गया जिसमें लगभग 250 साहित्‍यकारों, अधिकारियों, मनीषियों, विज्ञों एवं शहर व देश से आए कई प्रकाशन संस्थानों ने अपने स्‍टाल लगाए जिसमें अध्‍यात्‍म, योग, साहित्‍य, इतिहास, साइंस फिक्‍शन, ए आई, कम्‍प्‍यूटर आदि सभी विधाओं की एवं मंउल लाइक्रेरी में उपलब्‍ध संकलित विलक्षण पुस्‍तकों का प्रदर्शन किया गया। । 
    पुस्‍तक मेले में मेरी चार पुस्तकों को सम्मिलित किया गया गया था जो मंडल पुस्‍तकालय में पहले से ही नामांकित थी। ये थीं – ‘चलो प्रेम का दूर क्षितिज तक पहुँचाएँ सन्‍देश और ‘हौसलेों ने दिए पंख’ (गीतिका) गीत संजीवनी (गीत) , एक नई दस्‍तक देनी है (नवगीत) और तन में जल की बावड़ी (कुंडलिया छंद)।  दिनांक 15/02/2024 को सरस्‍वती पूजन के साथ ही चौथे  दिन का प्रथम सत्र सिन्‍धी साहित्य में सामाजिक आयाम एवं पर्यावरण पर विस्‍तार से चर्चा का रहा। 
    इस कार्यक्रम के संयोजन थे वरिष्‍ठ साहित्यकार श्री रामकरण प्रभाती और मुख्‍य वक्‍ता थे पूर्व निदेशक प्रचार प्रधानमंत्री कार्यालय और सुपसिद्ध अकादमी व अनेक संस्‍थाओं से सम्‍मानित
श्री किशन रतनानी जी।  श्री किशनानी जी का परिचय मंडल पुस्‍तकालयाध्यक्ष डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्‍तव ने दिया। ‘ अन्‍य सत्रों में ‘ढाई कड़ी की रामलीला’ के लिए राजस्‍थान के ख्‍यात कलाकार श्री जगदीश निराला ने हाड़ौती में संक्षिप्‍त रामलीला के पात्रों के संवाद सुना कर श्रोताओं का भरपूर मनोरंजन किया। कुल 12 सत्रों में चले आयोजनों में ‘गीतों की रमझोल’ में साहित्‍यकारों मुकुट मणिराज, राजेंद्र पँवार, भवानी शंकर वर्मा, आदि ने गीतों की सरिता बहाई। अतिथियों में वरिष्‍ठ साहित्‍यकार श्री जितेंद्र निर्मोही, महेश पंचोली, आनन्‍द हजारी, योगेश यर्थाथ, बद्रीलाल दिव्‍य, डॉ. प्रभात सिंघल, मंडल पुस्‍तकालय के अधिकारी कर्मचारी व पाठकों  ने उपस्थिति दर्ज करवाई।  बाद में हुए बाल कवि सम्‍म्‍ेलन में डॉ. आदित्‍य जैन, श्री लोकेश मृदुल, श्री अखिलेश, डॉ. प्रीति मीणा ने अपनी काव्‍य रचनाएँ पढ़ीं।  संचालन श्री राजेंद्र पँवार ने किया।  
    सायं सत्र में ‘साहित्य एवं शोध की प्रमुख चुनौतियाँ’ पर  प्रो. डॉ. अनिता वर्मा  प्रमुख वक्‍ता रहीं, जिसका संयोजन श्री विजय जोशी, वरिष्‍ठ कथाकार एवं समीक्षक ने किया। थियेटर आर्टिस्‍ट शरद गुप्‍ता का ‘अभिनन्‍दन से आभार तक’ विषय पर चर्चा प्रमुख रही। 
    बाल साहित्‍य की दशा दिशा पर पंडित जवाहर लाल नेहरू बाल साहित्‍य अकादमी के संस्‍थापक सदस्‍य श्री भगवती प्रसाद गौतम प्रमुख वक्‍ता रहे जिसका संयोजन बाल साहित्‍यकार डॉ. कृष्‍णा कुमारी ने किया। केंद्रीय साहित्‍य अकदामी से सम्‍मानित बाल साहित्यकार श्री सी. एल. सांखला ने भी बाल साहित्‍य पर महत्‍वपूर्ण विचार प्रकट किए। कोटा के वरिष्‍ठ साहित्‍यकार डॉ. गोपाल कृष्‍ण भट्ट ‘आकुल’ की दो पुस्‍तकों, गीत संग्रह ‘गीत संजीवनी’ सुबह के सत्र में और ‘’बाल काव्‍य मंजूषा’ बाल साहित्‍य का विमोचन सायं सत्र में पधारे अतिथियों पुस्‍तकालयाध्‍यक्ष डॉ. दीपक कुमार रीवास्‍तव, श्री किशन रतनानीजी, केंद्रीय साहित्‍य अकादमी के बाल साहित्‍यकार सम्‍मानित श्री सी एल सांखला, बाल साहितयकार डॉ. कृष्‍णा कुमारी, पुस्‍तकालयाध्‍यक्ष डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्‍तव, साहित्‍यकार जितेन्‍द्र निर्मोही, राजेंद्र पंवार,  आदि ने किया। 
    ‘बाल काव्‍य मंजूषा’ कृति क्‍या कहती हैं पर जवाहर लाल नेहरू बाल साहित्‍य अकादमी के संस्‍थापक सदस्‍य श्री भगवती प्रसाद गौतम ने समीक्षात्‍मक विचार प्रस्‍तुत किये। लेखक परिचय मंडल पुस्‍तकालय की सहायक पुस्‍तकालयाध्‍यक्ष डॉ. शशि जैन ने दिया। सत्र के अंत में सायं 6 बजे से सांस्‍कृतिक संध्‍या का आयोजन किया गया। जिसका संयोजन श्री राजेंद्र कुमार जैन, पूर्व सहायक रजिस्‍ट्रार आर.टी.यू. कोटा ने किया। सुबह के सत्र का संचालन कोटा के कवि राजस्‍थानी-हिन्‍दी के ओज कवि  राजेंद्र पँवार ने किया। 16 को लगभग 150 महिला एवं पुरुष साहित्‍यकारों, बाल कलाकारों, विद्वानों, लोक कलाकारों को सम्‍मान पत्र दे कर सम्‍मानित किया गया । समापन एवं सम्‍मान समारोह में कोटा वर्द्धमान महावीर विश्‍वविद्यालय के कुलपति मुख्‍य अतिथि थे।
पुस्तक 'बाल काव्य मंजूषा' का विमोचन करते साहित्यकार दायें से बायें केंदीय साहित्य अकादमी से पुरस्कृत श्री सी.एल. सांखला, बाल साहित्यकार डॉ. कृष्णा कुमारी, जवाहर लाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी के संस्थाापक सदस्य श्री भगवती प्रसाद गौतम, आकुल, मंडल पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्तव, सहा. पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ. शशि जैन, व्याख्याता एवं उद्घोषिका श्रीमती स्नेहलता शर्मा एवं अन्य
रिपोट- आकुल/ 17/02/2024

15 फ़रवरी 2024

शिक्षित हों सारे पढ़ के

छन्‍द- मणिमध्‍या (वार्णिक)
गण विधान- भगण मगण सगण
मापनी- 211 222 112
पदांत- के
समांत- अढ़

आफत लें आगे बढ़ के ।
काम बिगाड़ें वो रढ़ के।

हो सकते थोड़े सनकी,
वे जिनकी हो भौं चढ़ के।

क्‍या समझें पैदाइश ही,
ईश्‍वर ने भेजा गढ़ के?

माँ न कुसंस्कारी जनती,
संगत दे जाती मढ़ के।

‘आकुल’ का तो है कहना,
शिक्षित हों सारे पढ़ के।

14 फ़रवरी 2024

स्‍वीकार हो माँँ दण्‍डवत

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गीत
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स्वीकार हो माँँ दण्डवत
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स्वीकार हो माँ दंडवत, आकुल तो एक भक्त है।
लेखनी से लिख सका हूँ, यह भावना अभिव्यक्त है।
स्वीकार हो माँ दंडवत......

तेरा ही शुभाशीष पा, लिखती रही है लेखनी,
तेरे दिशा निर्देश से, निखरती रही है लेखनी,
चिंतन मनन तेरा करूँ, पाता हूँ नित स्फूर्ति सदा,
तेरे स्मरण मात्र से ही, चलती प्रखर है लेखनी

तेरी न हो यदि दृष्टि तो, होती कलम नि:शक्त है
स्वीकार हो माँ दंडवत......

भवबंधनों से तारना, ऐसा मुझको स्वभाव दो
दु:ख या सुख में कर सकूँ, ऐसा सदैव निभाव दो
संयमित वाणी से मैं, सत्कर्म ही करता रहूँ,
मत्सर न मोह माया हो, ऐसा मुझको प्रभाव दो।

तुझसे छिपा क्या मातु मन, मेरे वही अब व्यक्त है।
स्वीकार हो दंडवत......

तुझसे ही चलती जगती अरु सदैव चले सृष्टि है
होती रहती वसुंधरा पर सदैव प्रेम वृष्टि है
स्नेह, अनुराग और प्रेम का सागर तेरा स्वरूप,
तुझसे धरा यह स्वर्ग है, यह तेरी कृपा दृष्टि है

आकुलतेरी सेवा में, इसलिए ही अनुरक्त है
स्वीकार हो माँ दंडवत......

करता रहूँ मैं साधना, बस नित्य मुझको बुद्धि दो
आराधना करूँ में मन, वचन से मुझको शुद्धि दो
माँ देना धार लेखनी को काम आ सकूँ सदैव,
गाता रहूँ महिमा सदा, है प्रार्थना समृद्धि दो।

भजता तुम्हें आकुलमिले, जब भी जहाँ भी वक्त है।
स्वीकार हो माँ दंडवत......
--00--

13 फ़रवरी 2024

स्‍वप्‍न सजाएँँ सारे

छन्‍द- मुक्‍तामणि
विधान- प्रति चरण 25 मात्रीय छन्‍द। यह दोहा परिवार का छंद है। जिसमें 13, 12 पर यति होती है। दोहा के चरणांत में लघु को गुरु कर देने से यह छन्‍द सिद्ध होता है। अर्थात् दोहे की तरह 13, 11 के स्‍थान पर 13, 12 इस छन्‍द की प्रकृति है।
पदान्‍त- सारे
समान्‍त– आएँ

कहें जिंदगी चार दिन, स्वप्न सजाएँ सारे।
आपस में सद्भाव से, मिलें मिलाएँ सारे।1

वैमनस्य कटुता सभी, रखते तनाव मानो,
है निदान बस प्रेम ही, दर्द मिटाएँ सारे।2

पुन: समय दुनिया हमें, शायद ही दे मौके,
वक्त गुजर जाए नहीं, लाभ उठाएँ सारे।3

सरल न होता है कभी, हार झेलना हो तो,
रहें एक जुट हौसले, सदा बढ़ाएँ सारे।4

आकुल जनम हमें नहीं, शायद मिले दुबारा,
आज अनोखा काम हम, कुछ कर जाएँ सारे।5

11 फ़रवरी 2024

करें प्रकृति से मित्रता

गीतिका 

छन्‍द- मुक्‍तामणि
विधान- प्रति चरण 25 मात्रीय छन्‍द। यह दोहा परिवार का छंद है। जिसमें 13, 12 पर यति होती है। दोहा के चरणांत में लघु को गुरु कर देने से यह छन्‍द सिद्ध होता है। अर्थात् दोहे की तरह 13, 11 के स्‍थान पर 13, 12 इस छन्‍द की प्रकृति है।
पदान्‍त- सारे
समान्‍त– आएँ

करें प्रकृति से मित्रता, ध्‍येय बनाएँ सारे।
बन जायेंगे वन सघन, पेड़ लगाएँ सारे।

करें सूर्य से दोस्‍ती,  सब प्रकाश में बैठें, 
छत या बाहर घूमिए, रोग भगाएँ  सारे ।

हो तनाव यदि मानसिक, बनें प्रकृति के संगी,
करे प्रभावित प्रकृति दे, खुशियों पाएँ  सारे ।

चढ़ें नित्य ही सीढ़ि‍याँ, मंदिर की बिन बाधा, 
प्रभु समक्ष साष्‍टांग से, शीश नवाएँ सारे।

नित्‍य नियम से लीजिए, लंबी लंबी साँसें,
होगा यदि अवरोध तो, शीघ्र मिटाएँ सारे ।

मिले प्राकृतिक रोशनी, सहज सहन हो पीड़ा,
घूमें नित उद्यान में, मेद घटाएँ सारे ।

लाभदेय है साथियो, योगाभ्‍यास जरूरी,
बहे पसीना तब तलक, फिर घर जाएँ  सारे।