कुण्डलियाँ
(1)
श्रीगणेश, हे अष्टविनायक, शैलसुता के नंदन।
प्रथम पूज्य, गणपति, गणनायक करूँ आरती वंदन।
करूँ आरती वंदन बुद्धि-बल, दो सामर्थ्य गजानन।
भव बाधाऍं हरो, समस्याओं का करो निवारण।
कह ‘आकुल’ कविराय सदैव हो मुझ पर कृपा विशेष।
ले गणेश का नाम किया हर काम का श्रीगणेश।।
जनम दिवस है आज भावना भक्ति करूँ अतिरेक।
सिंदूर लगाऊँ, चोला बदलूँ और करूँ अभिषेक।
और करूँ अभिषेक धरूँ, गुड़धानी मोदक भोग।
ॠद्घि-सिद्धि संग करो पवित्र घर आरोगो महाभोग।
कह ‘आकुल’ कविराय लिखूँ मैं महिमा उठा कलम।
हे गणपति आश्रय में लेना मुझको जनम जनम।।
(3)
इनका गजमुख, एकदन्त, लम्बोदर, मूषक वाहन।
इनका गजमुख, एकदन्त, लम्बोदर, मूषक वाहन।
चार भुजाधारी गणपति का रूप बड़ा मनभावन।
रूप बड़ा मनभावन गण गणाधिपति देव लुभाएँ।
कह ‘आकुल’ कविराय मनायें पर्व चतुर्थी इनका।
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