4 अगस्त 2017

रोला छंद (गीतिका)

रोला गीतिका (अर्द्ध सम मात्रिक)
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(विधान- दोहा का विपरीत 11, 13. अंत दो गुरुओं से, विषम चरण का आरंभ द्विकल या चौकल से व चरणांत गुरु-लघु. सम चरण का आरंभ या संयोजन त्रिकल और चरणांत वाचिक दो गुरुओं.)


कहते रोला छंद, सोरठा का है भाई.
दोहे की विपरीत, प्रकृति दोनों ने पाई.

रोला में गुरु अंत, सोरठा में लघु आये
चरण सोरठा देत, विषम तुक में दिखलाई.

विषम चरण में छंद, होय दोहे के सम सा,
विषम चरण का अंत, त्रिकल से हो भरपाई.

शुरु हो चरण सदैव, त्रिकल से सम रोला का
दोहा - रोला साथ, तभी कुंडलिया आई.

बिन दोहे के बात, नहीं रोला की होती,
रोला ने सदैव, कीर्ति दोहे की गाई.

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