साथियो,
वैसे तो हर छंद पर विस्तार से बहुत लिखा जा सकता है. नवांकुरों को इस छंद को आद्योपांत विस्तार से समझने के लिए इसकी आवश्यकता इसलिए भी अनुभव की है कि साहित्यकारों द्वारा छंदों पर समीक्षा, टिप्पणियों पर समीक्षा नहीं की जाती. त्रुटिपूर्ण होने पर भी टिप्पणियों में तारीफ़ों के रटे रटाये शब्दों का उल्लेख कर रचनाकार को भ्रमित रखा जाता है. रचनाकार भी पिन पोस्ट में उल्लिखित विधान को गंभीरता से नहीं देखता या पढ़ता. आज समीक्षा का दिन भी है. इसलिए इस छंद पर पिन पोस्ट के विधान पर बिल्कुल भी छेड़ छाड़ किये बिना इस छंद को और अधिक सरल कर कुंडलिया छंद लिखने वालों को कुछ कहा है. आशा है यह आलेख उपयोगी सिद्ध होगा.
आज तरंगिनी छंद समारोह का सम्मानार्थ आयोजन है. आज का छंद है ‘कुंडलिया’. यह छंद दो छंदों को मिला कर बनाया गया अर्द्ध सम मात्रिक छंद है. यानि एक पद अर्थात् चार चरण जिसमें दो दो चरणों में अलग अलग समान मात्राओं के दो दो चरण हैं. दूसरे शब्दों में, दो विषम चरण समान मात्रा के दो सम चरण समान मात्रा के.
सर्वप्रथम कुंडलिया छंद का एक उदाहरण लें-
मौसम कोई भी रहे, क्या गरमी क्या ठंड।
जो चलता विपरीत है, मौसम देता दंड।। -दोहा
मौसम देता दंड, बदन की शामत आती।
बेमौसम बरसात, सदा ही आफ़त ढाती।।- रोला
भोजन अरु व्यवहार, निभायें जितना हो दम।
चलें प्रकृति अनुसार, बचायें उतना मौसम।। -रोला
-----------------------------------आकुल
अर्थात् एक दोहा और दो राेला मिल कर एक कुंडलिया छंद बनता है.
आइए, दोहा, रोला को समझते हुए कुंडलिया छंद को समझें-
दोहा- 13, 11 कुल 24 मात्रा का छंद है. जैसा कि पिन पोस्ट में बताया गया है- चार चरण ,दो तुकान्त । विषम चरणों में 13 मात्रा, आरम्भ में 121 स्वतंत्र शब्द वर्जित, चरणान्त में 12 /111 अनिवार्य । सम चरण 11 मात्रा, सम चरण के अंत में 21 अनिवार्य ।
इसे दिये गए उदाहरण में सिद्ध करके देखें-
(अ) चार चरण दो तुकांत –
चार चरण- विषम चरण (2) – 1. मौसम कोई भी रहे (13 मात्रा) 2. जो चलता विपरीत है (13 मात्रा). सम चरण (2)- 3. क्या गरमी क्या ठंड (11 मात्रा). 4. मौसम देता दंड (11 मात्रा).
(आ) दो तुकांत- दूसरे शब्दों में दोहा में सम चरण तुकांत होता है. प्रस्तुत उदाहरण में देखें
(1) क्या गरमी क्या ठंड.
(2) मौसम देता दंड.
(3) दोहा के आरंभ में 121 (जगण) वाले स्वतंत्र शब्द वर्जित- जैसे सुधार, कपाल, अधीर, मनीष आदि. उदाहरण में देखें आरंभ में सभी द्विकल या चौकल वाले शब्द हैं, मौसम, जो, इससे लय बनती है, जगण वाले शब्द के आरंभ से लय खटकती है.
(इ) चरणांत में 12/111 अनिवार्य- अर्थात विषम चरण में लघु गुरु या लघु लघु लघु अनिवार्य. दृष्टव्य है कि लघु लघु लघु सदा लघु गुरु होता है. दोहा में विद्वानों में लय की प्रधानता को ध्यान रखते हुए विषम चरणांत 212 (रगण) को प्राथमिकता दी है श्रेष्ठ माना है. यानि, विषम चरणांत ‘गुरू लघु गुरु (212) या (11, 1, 11 या 3, 2) इस प्रकार विषम चरणांत में 111 / 12 सिद्ध होता है. उदाहरण में देखें- 1. भी रहे 2. विप रीत है
(ई) विशेष- विद्वानों ने दोहा के लिए शीघ्र याद रह सके संक्षेप में बताया है कि निम्न मात्रा संयोजन से दोहा आसानी से बनाया जा सकता है-
(1) विषम चरण – 4, 4, 3, 2 या 3, 3, 2, 3, 2
(2) सम चरण - 4, 4, 3 या 3, 3, 2, 3
आगे दिये उदाहरण से इसे सिद्ध करते हैं- प्रत्येक पंक्ति को देखें-
मौसम कोई भी रहे, क्या गरमी क्या ठंड ।
मौसम/कोई/भी/रहे (4,4,3,2) ‘क्या गर/मी क्या/ ठंड (4,4,3)’।
जो चलता विपरीत है, मौसम देता दंड ।।
जो चलता विपरीत है, मौसम देता दंड ।।
जो चल/ता विप/रीत/ है (4,4,3,2) मौसम/देता/दंड (4,4,3)।।
इसी प्रकार पिन पोस्ट में रोला के संदर्भ में विधान बताया है-
रोला- 11, 13 कुल 24 मात्रा का छंद है. जैसा कि पिन पोस्ट में बताया गया है- 2 रोला यानि 8 चरण, चार तुकान्त ।( तुकान्त दो दो पंक्ति का भी मान्य होता है) रोला के विषम चरणों में 11 मात्रा चरणान्त में त्रिकल अनिवार्य । सम चरणों में 13 मात्रा, आरम्भ में त्रिकल अनिवार्य अंत में गुरु अनिवार्य, अंत में 22. इसे प्रदत्त उदाहरण से स्पष्ट/सिद्ध करते हैं-
(अ) 8 चरण चार तुकांत-
मौसम देता दंड, बदन की शामत आती।
बेमौसम बरसात, सदा ही आफत ढाती।। (रोला-1)
भोजन अरु व्यवहार, निभायें जितना हो दम।
चलें प्रकृति अनुसार, बचायें उतना मौसम।। (रोला-2)
मौसम देता दंड, बदन की शामत आती।
बेमौसम बरसात, सदा ही आफत ढाती।। (रोला-1)
भोजन अरु व्यवहार, निभायें जितना हो दम।
चलें प्रकृति अनुसार, बचायें उतना मौसम।। (रोला-2)
(आ) विषम चरण में 11 मात्रा चरणांत में त्रिकल (21) अनिवार्य और सम चरण में 13 मात्रा आरंभ में त्रिकल अनिवार्य और अंत में गुरु अनिवार्य अंत 22 (22/211/112/1111)
(इ) मौसम देता दंड, बदन की शामत आती।
बेमौसम बरसात, सदा ही आफत ढाती।। (रोला-1)
भोजन अरु व्यवहार, निभायें जितना हो दम।
चले प्रकृति अनुसार, बचाये उतना मौसम।। (रोला-2)
बेमौसम बरसात, सदा ही आफत ढाती।। (रोला-1)
भोजन अरु व्यवहार, निभायें जितना हो दम।
चले प्रकृति अनुसार, बचाये उतना मौसम।। (रोला-2)
(ई) विशेष- विद्वानों ने रोला के लिए शीघ्र याद रह सके संक्षेप में बताया है कि निम्न मात्रा संयोजन से रोला आसानी से बनाया जा सकता है-
(3) विषम चरण – 4, 4, 3 या 3, 3, 2, 3
(4) सम चरण - 3,2,4,4, या 3,2,3,3,2
(उ) उदाहरण से इसे सिद्ध करते हैं-
‘मौसम/देता/दंड’ (4,4,3), बदन/की/शामत/आती (3,2,4,4) ।
बेमौ/सम बर/सात (4,4,3), सदा/ ही/ आफत/ ढाती/ (3,2,4,4)।।
भोजन/अरु व्यव/हार (4,4,3), निभा/यें/ जितना/ हो दम (3,2,4,4)।
चले/ प्रकृति/ अनु/सार (3,3,2,3), बचा/ये/ उतना/ मौसम (3,2,4,4)।।
‘मौसम/देता/दंड’ (4,4,3), बदन/की/शामत/आती (3,2,4,4) ।
बेमौ/सम बर/सात (4,4,3), सदा/ ही/ आफत/ ढाती/ (3,2,4,4)।।
भोजन/अरु व्यव/हार (4,4,3), निभा/यें/ जितना/ हो दम (3,2,4,4)।
चले/ प्रकृति/ अनु/सार (3,3,2,3), बचा/ये/ उतना/ मौसम (3,2,4,4)।।
कुंडलिया छंद-
उपर्युक्त विधान को ध्यान में रख कर एक दोहा और दो रोला मिला कर कुंडलिया छंद इस प्रकार बनता है-
1. पहले एक दोहा
2. दोहे का चौथा चरण (सम) अगले रोला का हूबहू प्रथम विषम चरण बनेगा. आगे, रोला में शेष चरण कथ्य के अनुसार तुकांत बनें.
3. दूसरे रोले का अंतिम चरण(सम) दोहे के प्रथम चरण (विषम) के शब्द या शब्द समूह से तुकांत बने ताकि रोला सिद्ध हो सके.
4. कुंडलिया छंद का मुख्य भाग है इसका अंतिम चरण यानि दूसरे रोला का अंतिम चरण (सम), जिसमें दोहे के प्रथम (विषम) चरण का आरंभिक शब्द या उससे लगे हुए आगे के शब्द समूह का आना अनिवार्य है. उसी के अनुरूप ही रोला तुकांत बने.
5. पहला व दूसरा रोला समान तुकांत आवश्यक नहीं.जैसा विधान में उल्लेख है.
आइये उदाहरण से इसे स्पष्ट करें-
मौसम कोई भी रहे, क्या गरमी क्या ठंड।
जो चलता विपरीत है, मौसम देता दंड।। (दोहा-1)
मौसम देता दंड, बदन की शामत आती।
बेमौसम बरसात, सदा ही आफत ढाती।। (रोला-1)
भोजन अरु व्यवहार, निभायें जितना हो दम।
चलें प्रकृति अनुसार, बचाये उतना मौसम।। (रोला-2)
कुंडलिया छंद को सिद्ध कर देखें- (1) मौसम से आरंभ और मौसम से ही कुंडलिया का अंत है. (2) दोहे का चौथा चरण मौसम देता दंड, से पहला रोला आरंभ हो रहा है. (3) ठंड, दंड – आती, ढाती – हो दम –मौसम. तीनों तुकांत हैं. (4) दोनों रोला छंद के तुकांत अलग-अलग हैं.
अंत में-
ध्यानाकर्षण – (1) कुंडलिया के अंत में दोहे के प्रथम सम चरण के आरंभ के शब्द या शब्द समूह से तात्पर्य है कि यहाँ ‘’मौसम’’, ‘’मौसम कोई’’, ‘’मौसम कोई भी’’, ‘’मौसम कोई भी रहे’’. शब्द या शब्द समूह को लिया जा सकता है. ‘’कोई’’, ‘’कोई भी’’, ‘’मौसम भी’’, ‘’मौसम रहे’’, ‘’कोई भी रहे’’ नहीं प्रयुक्त किया जा सकता. उसी के अनुरूप दूसरे रोले का तुकांत तय किया जाता है. (2) आरंभ या बीच में त्रिकल है तो साथ ही एक त्रिकल भी होना अनिवार्य है (3) संक्षेप में दोहा या रोला के सम या विषम चरण का संयोजन दो में से कोई एक सिद्ध होना चाहिए (4) संपूर्ण कुंडली में शिल्प की तरह कथ्य में भी भाव स्पष्ट व प्रबल होना चाहिए.मुक्तक लोक के आज के तरंगिनी छंद समारोह में सम्मानार्थ आयोजन में प्रदत्त छंद 'कुंडलिया' लिखने में आप समर्थ होंगे.
मुझे पूरा विश्वास है कि आप इसे समझ कर सुगमता से कुंडलिया छंद का सृजन कर पायेंगे और आज के समारोह को उत्कर्ष पर पहुँचायेंगे.
कर्पूरगौरं करुणावतारं,
संसारसारं भुजगेंद्रहारं। (इंद्रवज्रा छंद)
सदावसंतं हृदयारविंदे,
भवं भवानी सहितं नमामी।। (उपेंद्रवज्रा छंद)
संसारसारं भुजगेंद्रहारं। (इंद्रवज्रा छंद)
सदावसंतं हृदयारविंदे,
भवं भवानी सहितं नमामी।। (उपेंद्रवज्रा छंद)
-आकुल, एडमिन मुक्तक लोक
तरंगिनी छंद समारोह दिनांक 24.08.2020 है' में 'हमें भी कुछ कहना है' में प्रकाशित आलेख
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