31 अगस्त 2022

जय गणेश गोपाल

गीतिका

छंद- अभीर/अहीर

पदांत- 0, समांत- आल  

 

जय गणेश गोपाल। 

मुरलीधर हे लाल ।  

शोभित मयूर पंख

शीश किरीट प्रवाल।

 

शैलसुता के पुत्र

तुम शिवपूत निहाल।

 

दंडपाणि ले वेणु, 

शूल त्रिपुड सुभाल।

 

ऋद्धि-सिद्धि के देव,

सब के हो प्रतिपाल।

 

अंकुश कर दल-मूष,

बने कृषक संघाल।  

 

गजवदन प्रथम पूज्‍य,

बने प्रबुद्ध विशाल।   

 

‘आकुल’ भजे गणेश,

पूजे सांझ सकाल ।         

 

संघाल (संघेला)- मित्र, सकाल- सवेरे

 

30 अगस्त 2022

जीवन में संस्‍कार बनाते रिश्‍ते हैं

गीतिका

छंद- मंगलवत्‍थु (4.01.2022)

विधान- 22 मात्रा। 11,11 पर यति। यति से पूर्व व बाद में त्रिकल अनिवार्य, अंत दो गुरु वाचिक से।

पदांत- रिश्‍ते हैं

समांत- आते

जीवन में संस्‍कार, बनाते रिश्‍ते हैं।

जिनसे हर परिवार, निभाते रिश्‍ते हैं।

घर होता है केंद्र, जहाँ पलते रिश्‍ते,

उन्‍हें शृंखलाबद्ध, जमाते रिश्‍ते हैं।

रिश्‍तों के भी नाम, बताते हैं गरिमा,

अपनों की पहचान, दिलाते रिश्‍ते हैं।

उम्र कभी दे श्रेय, कभी दे पद ऊँचा,

उसके ही अनुरूप, सुहाते रिश्‍ते हैं।

रिश्‍ते हों अनमोल, निभें संस्‍कारों से, 
ढाई आखर प्रेम, बढ़ाते रिश्‍ते हैं ।

29 अगस्त 2022

पीछे न देखें वीर

गीतिका
छंद- तोमर (सम मात्रिक) 
मापनी- 2212 221 
पदांत- 0 
समांत- ईर
 
पीछे न देखें वीर ।  
आपा न खोते धीर ।  
    कर्मठ जुझारू लोग,
    बनते रहे हैं मीर ।   
राजा बने हैं रंक,
लुटती रहीं जागीर । 
    होता समय का फेर, 
    कहते कई तकदीर । 
अकसर सभी वाचाल, 
फैंकें हवा में तीर । 
    औषधि जरूरी क्‍योंकि, 
    हरती रही  है पीर । 
करता नहीं जो अर्ज,
बनता न दावागीर । 
    भरता नहीं जो कर्ज, 
     फटता उसी का चीर
‘आकुल’ कहे जो बात
होती सदा अकसीर ।