23 जून 2023

सर्वधर्म समभाव जहाँँ वह हिन्‍दुस्‍तान है

 गीत

सर्वधर्म समभाव जहाँ वह, हिन्दुस्तान है।

नृत्य गीत, संगीत जहाँ की, इक पहचान है।

 

धर्म कर्म शिक्षा के अनुपम, देता है संस्‍कार,

योग ध्‍यान चिंतन मंथन से देता है सुविचार,  

 

देश जहाँ हर वेश में' घूमे, हर इनसान है।1।

 

जलनिधि पाँव पखारे, हिमगिरि, है जिसका प्राचीर,

गंगा, यमुना को छूकर बहती है मलय समीर,        

 

राम-कृष्‍ण की भूमि मुझे इस, पर अभिमान है।2।

 

राष्‍ट्रीय गीत वंदेमातरम्,  धरती से जोड़े,

राष्‍ट्रगान जन गण मन हमको, जन जन से जोड़े,

 

'सत्यमेव जयतेभारत का, वाक्य प्रधान है।3।


'अहिंसा परमोधर्म' सुनीति, गौरव बनी हुई,

लोक परम्‍पराओं से जिसकी डोर है बँधी हुई।  

 

जहाँ गीत संगीत का श्रेष्‍ठ, शास्त्र विधान है।4।


नदियों के तटतीर्थों पर, करते जन जन देशाटन।

दश-क्षीर, दश-कुलवृक्षों से ऊर्जित हर वृन्‍दावन।

 

दशावतारों की यह धरती, स्वर्ग समान है।5।


दश-क्षीर- ऊँटनी, गधी, बकरी, गाय, भेड़, भैंस, घोड़ी़, हथिनी, हरिणी और स्‍त्री का दूध ।

दश-कुलवृक्ष- आँँवला, इमली, कदंब, करंज, गूलर, नीम, पीपल, बरगद, बेल, नीम और लसौढ़ा के वृक्ष।

दशावतार- 24 अवतारों में ये प्रमुख दस अवतार- मत्‍स्‍य, कच्‍छप, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्‍ण, बुद्ध और कल्कि 

14 जून 2023

अभेद्य दुर्ग द्वार भवितव्‍य जीत कर सहेज

 गीतिका

छंद- रसाल

विधान- प्रति पद २४ मात्रा, यति 10,14, पदारंभ-पदांत लघु-गुरु-लघु (जगण-121).
पदांत- कर सहेज
समांत- ईत 

अभेद्य दुर्ग द्वार, भवितव्य जीत कर सहेज ।

बना सके जीवन, को स्‍वर्ग प्रीत कर, सहेज ।1।

हवा बहे सदैव, बस सुख-शांति की चहुँ ओर, 

बना सके मिसाल उसे अभिजीत कर सहेज।2।

नहीं समय देता, सुअवसर बार-बार मित्र,

दिखा सके कमाल तभी अभिनीत कर सहेज।3।

हुआ बहुत विनाश, अब न और हो विनाश,

निभा सके निसर्ग, को अनुगृहीत कर सहेज।4।      

दिखावटी ना हो, व्‍यवहार आचार-विचार,

बना वही भविष्‍य, उसे पुनीत कर सहेज।5।   

 

13 जून 2023

सदैव सूर्य ही देता रहा उजास

 गीतिका

छंद- दीपकी

विधान-  प्रति चरण मात्रा २० मात्रा, चरणांत तीन लघु या गुरु लघु (जगण (121), तगण (221), नगण (111)।

पदांत- 0, समांत- आस

सदैव सूर्य ही देता रहा उजास।

चंद्रमा में भी है उसी का विभास।1।    

 

कितने सूरज हैं छिपाए है गगन,

हर सितारा सूर्य है पर हैं न पास।2।


इस धरा इस सृष्टि को मिली है भेंट,

सौरऊर्जा से हुआ जग में विकास।3।

 

चाँद सूरज ने किए हमको यहाँ,

कितने ही संस्‍कार और वाग्‍विलास।4।

 

क्रियाकलाप सूर्य से होते सभी,

सृष्टि की अनुपम सौग़ात है प्रभास।5।

   

प्रकाश ही है सूर्य का संजीवनी,

चेतना के मूल में इसका निवास।6।

 

सूर्य से ही रक्षित पंचतत्‍व हैं,

असंतुलन न हो करते रहें प्रयास।7।   


   

11 जून 2023

कान्‍हा कृष्‍णमुरारी तुम

गीतिका

छंद- मानव
पदांत- तुम
समांत- आरी

कान्‍हा कृष्‍णमुरारी तुम ।

मुरलीधर बनवारी तुम ।1।

ग्‍वाल सखा गोपाला थे,

ब्रज के रास बिहारी तुम ।2।

शीश मुकुट गल वैजंती, 

चक्र सुदर्शनधारी तुम ।3।

इंद्रदमन लीला कर के,

बन बैठे गिरिधारी तुम।4।

लीलाओं से जग जाना,

आए बन अवतारी तुम।5।

सार्थक जब अवतार हुआ,

लौटे बन संसारी तुम ।6।

गीता का संदेश दिया,

खेले विजयी पारी तुम ।7।

5 जून 2023

सच की कोई होड़ नहीं है

 गीतिका

छंद- अरिल्‍ल

चार चरण,  सम मात्रिक छंद
चरणांत में भगण (211) या यगण (122)
पदांत- नहीं है
समांत- ओड़

सच की कोई होड़ नहीं है। 
सच का कोई जोड़ नही है।1।

सच से पर्दा सत्‍य उघाड़े,

झूठ कहीं बेजोड़ नही है।2।

सच का सीधामार्ग बोल सच,

सत्‍यमार्ग में मोड़ नही है।3।

झूठ भागता दृढ़ रहता सच,

सच कोई रणछोड़ नहीं है।4।

लाख परेशानी आएँ पर,

सच कोई घरफोड़ नहीं है।5।

देता झूठा लाख दुहाई,

सच्‍चे का गठजोड़ नही है।6।    

सच है ‘सत्‍यमेव जयते’ ही,

सच का कोई तोड़ नही है।7।

जीवन जिसका सदा चला, वह ही जिए सानंंद

गीतिका
छंद- गीता
प्रत्येक चरण में 26 मात्राएँ होती हैं; 14,12 पर यति होती है , आदि में सम कल होता है ; अंत में 21 आता है और 5,12,19,26 वीं मात्राएँ अनिवार्यतः लघु 1 होती हैं।
पदांत- 0, समांत- अंद
 
जीवन जिसका  सदा चला, वह ही जिए सानंद।
रुका मौत से भेंट हुई, बचा जिए स्‍वच्‍छंद। 1।

जो कर सके न जीवन में, उसका कर नहीं फिक्र।

जितना चले जीत उतनी, अमोल वचन आनंद ।2।          

ठहरा सदा प्रदूषित जल, प्रकृति सरित् की प्रवाह,

रोको मत तुम बाँध बना, तट रह न जाएँ चंद।3।

तीर्थ पुज रहे नदी तटों, बाँधों इन पर न सेतु,

हो शायद तटतीर्थ कहीं, तब हो न जाएँ बंद।4।

 पानी हवा आग रखते, सदैव धरा का ध्‍यान,

प्रकृति रखे मानव ऐसी,  गति  हो न जाए मंद।5।                                  

2 जून 2023

सत्‍य परेशान हो, हारते कभी नहीं

गीतिका

छंद- शिव (मात्रिक)
विधान- 11 मात्रा भार, 3,3,3, 2 का संयोजन,  अंत सगण/ मगण/ नगण (112/222/111), यति अंत में।
पदांत- कभी नहीं
समांत- अते   

सत्‍य परेशान हो, हारते कभी  नहींं।
झूठ के न पाँव हैं, जीतते कभी नहीं।1।


लोग झूठ के लिए, झूठ कई बोलते,
झूठ जो न बोलते, सोचते कभी नहीं।2।

सत्‍य है कि न्‍याय को, साक्ष्‍य सदा चाहिए,
भले मिले देर से, छूटते कभी नहीं।3।

मौन से कभी कभी, हादसे कई हुए,
झूठ से अगर रुके, टोकते कभी नहीं।4।

बात सिर्फ यही सच, स्‍वर्ग नर्क यहीं है,

सत्‍य बोल कष्‍ट वे, भोगते कभी नहीं।5।