9 सितंबर 2019

दुनिया में हैं सफल वहीं जो समय संग चलते हैं

गीतिका
छंद- सार
पदांत- है
समांत- अलते
 
दुनिया में हैं सफल वही जो समय संग चलते हैं.
देखे हैं संतुष्‍ट सदा जो, समय संग ढलते हैं.

सदा छला जिसने निसर्ग को, छला समय ने उसको, 
अहंकार, षड्-रिपु, विकार, तन, समय संग जलते हैं. 

रखो मित्रता अपनापन पशु, पक्षी पादप जन से,
प्रेम-प्रीति से संकट प्राय:, समय संग टलते हैं.

क्‍या लेकर आये हो प्‍यारे, क्‍या लेकर है जाना, 
अच्‍छा हो यदि समय काम सब, समय संग फलते हैं.

‘आकुल’ दिनचर्या साधे जो, राहें समय दिखाता, 
चढ़ते हैं वे शिखर सदा जो, समय संग पलते हैं

‘आकुल’ दिनचर्या साधे जो, राहें समय दिखाता, 
चढ़ते हैं वे शिखर सदा जो, समय संग पलते हैं.

6 सितंबर 2019

स्‍थापित श्री गणेश

गीतिका
छंद- त्रिभंगी [सम मात्रिक]
विधान – 32 मात्रा, 10,8,8,6 पर यति, चरणान्त में 2 गा l कुल चार चरण, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत l पहली तीन या दो यति पर आतंरिक तुकांत होने से छंद का लालित्य बढ़ जाता है l तुलसी दास जैसे महा कवि ने पहली दो यति पर आतंरिक तुकान्त का अनिवार्यतः प्रयोग किया है l
पदांत- के दिन आये
समांत- आरों


स्थापित श्रीगणेश, देश परदेश, त्‍योहारों के, दिन आये.
जन जन मस्‍त हुआ, आश्‍वस्‍त हुआ, बाजारों के, दिन आये.

सद्भाव बढ़ेंगे, द्वेष घटेंगे, फैलेगा यश, चहूँ दिशा,
अधर्म अपसंस्कृति, हो न कुसंगति, परिहारों1 के, दिन आये.

हो साफ सफाई , रंग रँगाई, घर आँगन में, रौनक हो,     
अब चोखट द्वारों, वंदनवारों, फुलहारों2 के, दिन आये.

श्रीपुरुषोत्‍तम, उत्‍तमोत्‍तम, अवतारित श्री राम भजें,
धर्मध्‍वज फहरे, अधम न ठहरे, संस्कारों के, दिन आये.
  
अब पूजें माता,  हर नवराता,  नवदुर्गा अब, घर घर में
कर चोला धारण, करें जागरण, नक्‍कारों के दिन आये.

अपने ही ले सिर, ऋतुओं से फिर, भू ने भेजा, संदेशा,
हटें अतिक्रमण, बढ़ें सघन वन, शृंगारों के दिन आये.

अब पीढ़ी बदलें, सीढ़ी बदलें, समझें आने वाला कल,
अब शय हर बदलें, तय कर मचलें, बलिहारों3 के दिन आये.

1परिहार- दोष निवारण, 2फुलहार- माली,
3बलिहार- बलिदान.