31 जनवरी 2022

अहंकार करना न कभी भी

 गीतिका

छंद- विष्‍णुपद सम मात्रिक

पदांत- में

समांत- आनी

मच्‍छर कभी न घुस पाता है, मच्‍छरदानी में ।

भिन भिन करता  मारा जाता, है नादानी में ।  

अहंकार करना न कभी भी, अपनी प्रतिभा पर,

डूबा सदा भार से अपने, पत्‍थर पानी में ।

शोर करे सिक्‍का कागज की, मुद्रा चुप रहती । 

मूल्‍य बढ़े तो अंकुश लगता, जाता बानी में ।  

चल तू कभी-कभी अंधा बन, मुँह को भी सी कर,

जैसे चक्‍कर बैल लगाता, अंधा  घानी में ।

कई दुखी हैं सुखी देख कर दुनिया दूजे की,

जीना सार्थक कर आया इस दुनिया फानी में । 

30 जनवरी 2022

सच को सच कह डाल

गीतिका

छंद-रेवा छंद

विधान- दोहे के 11 मात्रिक सम चरण की चार आवृत्ति इस प्रकार मात्रा भार- 22। 11, 11 पर यति । पहले, दूसरे व चौथे में तुकांत। (मूल छंद में) किंतु गीतिका में पहले दो चरण ही तुकांत ।

पदांत- कह डाल

समांत- अच

झूठ कभी मत पाल, सच को सच कह डाल ।

रह कर तू निर्भीक,  बद से बच कह डाल।

हुआ जन्‍म कर कर्म, कुछ तो है यह मर्म,

बन जाएँ सुविचार, ऐसा रच कह डाल ।

पहले खुद भी सीख, दे फिर सबको सीख,

सोच समझ वो बोल, जाए पच कह डाल 

जीभ तीर तलवार, चले नहीं परिहार,

रुकता अगर विनाश, भले असच कह डाल ।

आकुल नहीं अनीति, यह भी है इक नीति,  

व्‍यंग्‍य चलें तो डाल, नमक मिरच कह डाल।   

 


 

29 जनवरी 2022

गतिरोधों, अवरोधों की बातें बेमानी

 गीतिका

छंद- विद्युल्‍लेखा

मापनी- 222 222 222 222 

पदांत- 0 

समांत- आनी

गतिरोधों, अवरोधों, की बातें बेमानी ।

सीमा पर तत्‍पर हर, दम रहते सेनानी ।

अनुशासन छूटेगा, आएँगी बाधाएँ,

झूठा ही हकलाता, सच का ना है सानी ।

पहरा हो, पग पग पर, खतरा भी, हो सर पर,

चोरों को, कब ताले, करते जो, है ठानी।

क्‍या मिट्टी क्‍या सोना, क्‍या हीरा क्‍या पन्‍ना,

घर के भेदी से तो, लंका भी लुट जानी ।

इज्‍जत पाले सच्‍चा, खूँटी टाँगे झूठा,

होती है इस जग में, सबसे ही नादानी ।

कण कण में बिखरे हैं, बलिदानों के किस्‍से,

माँ पुजती है पन्‍ना, हाड़ी, लक्ष्‍मी रानी ।

‘आकुल’ अब कर गुजरो, चाहो यदि करना तो,

अवरोधों से डर कर,  करना मत मनमानी । 

26 जनवरी 2022

गणतंत्र की जय जयकार करें

 कविता

आओ गणतंत्र की जय जयकार करें ।।
 
गणतंत्र की जय जयकार से
वातावरण शुद्ध करें ।
णमोकार मंत्र से
लौकिक लोकोत्तर कार्य सिद्ध करें।
तंत्र देश का हो या घर का
प्रबुद्ध को प्रतिबद्ध करें।
त्रयीधर्म का पालन कर तन मन
दृढ और विशुद्ध करें।
गणतंत्र की जय जयकार से
वातावरण शुद्ध करें ।

दिन-रात परिश्रम हेतु
स्वयं को कटिबद्ध करे।
वर्ण भेद, वर्ग भेद को त्याग
देश को समृद्ध करें।
‘सत्यमेव जयते’ शाश्वत है
झूठ और छल-प्रपंच से युद्ध करें।
गणतंत्र की जय जयकार से
वातावरण शुद्ध करें ।
उद्दंडता उच्‍छृंखलता को  
सदैव निरुद्ध करें 
भावनाओं के ज्‍वार को 
अवरुद्ध करें 
शिक्षित हो स्‍वयं को 
अनिरुद्ध करें 
गणतंत्र की जय जयकार से  
वातावरण शुद्ध करें ।।  
अनुशासन से  
सत्‍यपथ प्रशस्‍त करें । 
विचलित न हो  
स्‍वयं को आश्‍वस्‍त करें ।
अपनी शक्ति का प्रयोग 
प्रदूषण और भ्रष्‍टाचार के विरुद्ध करें ।
गणतंत्र की जय जयकार से  
वातावरण शुद्ध करें ।।  
 
आओ गणतंत्र की जय जयकार करें ।।