राजस्थान। जैसा कि नाम से विदित होता है कि यह रियासतकालीन राजाओं की भूमि रही है। राजस्थान की शौर्य गाथाएँ इतिहास में भरी पड़ी हैं। राजस्थान में धर्म और संस्कृति का समृद्ध इतिहास रहा है। राजस्थान, भारतीय गणराज्य का क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य है। देश में सर्वाधिक रियासतों के कारण राजाओं ने अपनी रियासतों में शौर्य और प्रतिभाओं का सर्वाधिक सम्मान किया और अपनी रियासतों में बसाया। दरबारों में नवरत्न की परम्परा विकसित की जिसमें सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को स्थान दिया जिसमें साहित्य को प्रमुख स्थान प्राप्त था।
महाभारतकालीन राजस्थान में राजा विराट् का स्थान सर्वोपरि रहा है। रियासत कालीन संस्कृति के कारण यहाँ गुप्त भाषाओं का उद्भव हुआ और संस्कृत व प्राकृत भाषा के साथ साथ लोकभाषाएँ प्रचलन में रहीं, जो क्षेत्र के अनुसार ग्रामीण अंचलों में सर्वाधिक बोली जाती रहीं। जैसे मेवाड़ी, मायड़, हाड़ौती, मारवाड़ी आदि को परिष्कृत कर समृद्ध साहित्यिक भाषा हिन्दी का विकास हुआ। यही कारण है कि कालांतर में हिदी राजस्थान की प्रमुख भाषा बनी और आज हिन्दी राजस्थान की राज्य भाषा है।
चुरु के कन्हैयालाल सेठिया को
आधुनिक राजस्थान के प्रथम हिंदी व राजस्थानी साहित्यकार के रूप में जाना जाता
है। उनकी रचित पुस्तक ‘धरती धौरां री’ कालजयी कृति है। राजस्थान के प्रख्यात गद्य लेखक रांगेय
राघव को कौन नहीं नहीं जानता। उनके उपन्यास घरोंदे, मुर्दों का टीला, कब तक पुकारूं, आखिरी आवाज चर्चित रहे हैं। फिल्मी
गीतों के माध्यम से चर्चित गीतकार हसरत जयपुरी राजस्थान के रत्न के रूप में ख्यात
रहे हैं। राजस्थान के सर्वाधिक चर्चित उपन्यासकार बीकानेर के यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’
हिंदी में लिखने वाले राजस्थान के अग्रणी साहित्यकार रहे हैं। जिनके उपन्यास
‘खम्मा अन्नदाता’ ‘मिट्टी का कलंक’ ‘जनानी
ड्योढ़ी’ ‘एक और मुख्यमंत्री’ व ‘हजार घोड़ों का सवार’ प्रख्यात रहे हैं। हाड़ौती के शीषर्स्थ दरबारी
कवि बूँदी के ‘सूर्यमल्ल मिश्रण’ रहे हैं जिनकी महान् कृति ‘वंश भास्कर’
रही है, जिसमें बूँदी के चौहान शासकों का इतिहास है। कर्नल टाड का ‘बूंदी का
इतिहास’ प्रख्यात ऐतिहासिक दस्तावेज है। हाड़ौती में हाड़ा वंश के साम्राज्य
झालावाड़ का इतिहास भी साहित्यिक दृष्टि से बहुत समृद्ध रहा है, जिसमें गिरधर
कवि उच्च स्तरीय कवि रहे हैं।
दरबारी कवि भँवर लाल भ्रमर का ‘भ्रमर उत्सव’ पठनीय छंद साहित्य
में रचा काव्य ग्रंथ है। भट्ट गिरधारी
लाल ‘कवि किंकर’ दरबारी कवि रहे हैं। शकुंतला ‘रेणु’ महिला साहित्यकारों
में प्रमुख रहीं हैं। धर्म, संस्कृति और
प्रकृति के लेखन के लिए प्रख्यात पं. गदाधर भट्ट प्रख्यात हिंदी निबंधकार
रहे हैं, जिन्हें राजस्थान साहित्य अकादमी का देवराज उपाध्याय सम्मान दिया
गया था । उनके हिंदी व संस्कृत साहित्य को कक्षा दस की पाठ्य पुस्तकों में
सम्मिलित किया गया। आप राजस्थान संस्कृत साहित्य अकादमी के निदेशक भी रहे। कोटा के उपन्यासकार सुरेश वर्मा
थे। धार्मिक एवं आध्यात्म पर प्रख्यात हिंदी
साहित्यकार डॉ. रामचरण महेंद्र ने गीता प्रेस गोरखपुर की मासिक पत्रिका
‘कल्याण’ के लिए नियमित सैंकड़ों रचनाऍं लिखीं। कोटा के गद्यकारों में लेखक प्रशासनिक
अधिकारी नरेंद्र चतुर्वेदी, उनकी पत्नी
सुश्री क्ष्मा चतुर्वेदी, प्रख्यात व्यंग्य कार श्री औंकारनाथ
चतुर्वेदी, भारतेंदु मंडल के जयपुर के श्री अंबिका दत्त, हिंदी राजस्थानी
गद्य लेखक श्री जितेंद्र निर्मोंही, दोहाकर श्री रामनारायण ‘हलधर’, अष्टछाप कवियों में एक कवि छीतस्वामी के वंशज
कोटा के जनवादी कवि श्री महेंद्र नेह,
एवं प्रख्यात हिंदी उर्दू के शायर
कोटा के ऐहितशाम अख्तर, कुंवर जावेद, पुरुषोत्तम ‘यकीन’, शकूर अनवर डॉ. नलिन
आदि चर्चित साहित्यकार हैं। बाल साहित्य में बारां के टीकमचंद ढोढरिया, कोटा
की कृष्णा कुमारी कमसिन साहित्य अकादमी से पुरस्कृत बाल साहित्यकार हैं। सांगोंद की आशा रानी ‘आशा’, सुरेश चंद्र सर्वहारा
भी बाल साहित्य में ख्यात नाम लेखक हैं।
कोटा के प्रख्यात हिंदी उर्दू के साहित्यकार सौवर्ष के समीप पहुँचने वाले एक मात्र वरिष्ठ साहित्यकार हैं ‘बशीर अहमद ‘मयूख’, जिन्हें गंगा-जमुनी तहज़ीब का पुरोधा माना जाता है। आप हिंदी और संस्कृत के ग्रंथों पर शोध के लिए प्रख्यात हैं और आपकी रचित पुस्तकें कई विदेशी विश्वविद्यालयों के हिंदी पाठ्यक्रम में सम्मिलित हैं। आपने कोटा में विज्ञाननगर कॉलोनी में ‘मयूखेश्वर महादेव’ मंदिर की स्थापना कर उर्दू-हिंदी के साथ-साथ हिंदू-मुस्लिम एकता व सौहार्द की मिसाल पेश की है।
मुझ अकिंचन के हिंदी के साहित्यिक अवदान को भी कई
संस्थाओं से आशीर्वाद मिला है। उसी के परिणामस्वरूप मैं आज यहाँ उपस्थित हूँ।
जयपुर में जन्मा और हाड़ौती में शिक्षा-दीक्षा के बाद कर्मभूमि कोटा में निवास कर
रहा हूँ। मैंने साहित्य की हर विधा में साहित्य रचा है। 13 पुस्तकें प्रकाशित
हैं, प्रमुखत: छंद साहित्य पर 5 पुस्तकें
और महाभारत के पात्र कर्ण पर लिखित ‘प्रतिज्ञा’ नाटक को बदायूँ में सम्मान मिला,
नवगीत और गीतों पर महाराष्ट्र के नासिक में अखिल हिंदी साहित्य सभा द्वारा सम्मानित
किया गया तथा दिल्ली की हिंदी अकादमी द्वारा भी सम्मानित किया गया। यह आत्मप्रवंचना
नहीं बस आप सुधी रचनाकारों के मध्य अपना एक संक्षिप्त परिचय है।
वक्तव्य के अंत में जयपुर के प्रख्यात दो साहित्यकारों का नाम लेना नहीं भूलूँगा, वे हैं हिंदी- संस्कृत के अग्रणी शिक्षाविद् श्री कलानाथ शास्त्री, प्रख्यात प्रशासनिक अधिकारी और जिला प्रतापगढ़ के कलेक्टर रहे श्री हेमन्त शेष।
राजस्थान में हिन्दी साहित्य का विपुल भंडार है यह आप फेसबुक समूह कविताकोश में देख सकते हैं, यह इस बात से भी पुष्टि की जा सकती है कि राजस्थान में लगभग 500 से भी अधिक रचनाकार साहित्य की सभी गद्य-पद्य विधाओं में रचनाएँ करते हैं।
आज राजस्थानी भाषाओं हाड़ौती और जयपुर की मायड़ भाषा को संविधान की अनुसूची में स्थान के लिए आंदोलन हो रहे हैं। राष्ट्रभाषा के लिए 70 वर्ष से तरस रही हिंदी को ऐसे ही कई आंदोलनों के कारण अभी तक उचित स्थान व सम्मान नहीं मिला है जो हिंदी साहित्य के लिए चिंता का विषय है।
राजस्थान में हिंदी साहित्य अन्य राज्यों की तुलना में वरेण्य है।
-आकुल
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