27 नवंबर 2023

मुक्‍तक-लोक केे'चित्र मंथन समारोह 494' का 'सृजन सम्‍मान'

दिनांक 22.11.2023 को फेसबुक समूह 'मुक्‍तक-लोक

द्वारा चित्र मंथन समारोह- 494 में पुरुष वर्ग में श्रेष्‍ठ रचना के रूप में निम्‍न गीतिका के  चयन पर मिला 'सृजन सम्‍मान'

गीतिका

छन्‍द आवृत्तिका (सार्द्ध चौपाई) 

पदांत- 0 समांत- आए

जीवन क्षणभंगुर है जाने, कब खो जाए।

जाना है सबको जो भी इस, जग में आए ।

पानी का बुदबुद है, तय है उसका खोना,

जब तब देखा प्रकृति अनोखे, खेल दिखाए।

कभी घरोंदों को लहरों से ढहते देखा,

कभी दामिनी जीवन को पल, भर में ढाए।

जीता है इनसान घिसट कर, कभी-कभी तो,

कभी-कभी इक ठोकर जीवन, को बिखराए,

करे लिहाज न मौत उम्र का, ‘आकुल’ कहता,

मोह न रखना मौत सीख सब, को समझाए।

23 नवंबर 2023

जीवन क्षणभंगुर है

छन्‍द आवृत्तिका (सार्द्ध चौपई) 

पदांत- 0 समांत- आए

जीवन क्षणभंगुर है जाने, कब खो जाए।

जाना है सबको जो भी इस, जग में आए ।

पानी का बुदबुद है, तय है उसका खोना,

जब तब देखा प्रकृति अनोखे, खेल दिखाए।

कभी घरोंदों को लहरों से ढहते देखा,

कभी दामिनी जीवन को पल, भर में ढाए।

जीता है इनसान घिसट कर, कभी-कभी तो,

कभी-कभी इक ठोकर जीवन, को बिखराए,

करे लिहाज न मौत उम्र का, ‘आकुल’ कहता,

मोह न रखना मौत सीख सब, को समझाए।

12 नवंबर 2023

एक नई दस्तक देनी है (नवगीत)

त्योहारों-पर्वों को भी अब
आए पहले देव कनागत,
हुई देवियों की भी आगत
बाद दिवाली और दशहरा
होना नव सत्ता का स्वागत
रामराज्य के लिए
लगा अब
अग्नि परीक्षा तक देनी है
अपने ही अपनों से आहत,
होगा कौन-कौन शरणागत
अहं और बल की शह पर प्रभु
हो न एक और महाभारत
लोकतंत्र के
शाने पर अब
कुछ को तो रुखसत देनी है
उत्साहों में कमी नहीं पर
पैरों में अब जमीं नहीं पर
लागू है आचार संहिता
खुशियाँ ही हैं गमी नहीं पर
तूफाँ से पहले की शांति है
आहुतियाँ अब
तय देनी है
चलो दीप से दीप जलाएँ
एक सूत्र बँध पर्व मनाएँ
देखें अब उजास उन्नति का
प्रेम और सौहार्द बढ़ाएँ
फैले प्रभा
क्षितिज तक किरणें
धरती से नभ तक देनी है

- आकुल
१ नवंबर २०२३
('अनुभूति' के दीपावली विशेषांक में प्रकाशित)

शुभ दीपावली 2023


 

7 नवंबर 2023

घर वृन्‍दावन हो जाए (गीत)

घर वृन्दावन हो जाए, तन चन्दन, मन कस्तूरी । 
हे मृगनयनी तुझसे ही, घर आँगन बनें कपूरी । 
मेरे घर की बगिया में, अब फूल खिलें सिन्दूरी। 

छननन छननन नूपुर भी बोलें जैसे चिंखूरी।
घर वृन्दावन हो जाए, तन चन्दन मन कस्तूरी। 

वेणी रजनीगन्धा की, महकी है सेज सुहाई। 
पैरों में प्रीत महावर, हाथों में मेहँदी भाई। 
कटि में पहनी करधनी, खनकाती घर में आई। 

सौभाग्य माँग में चहके, बिन्दी ललाट की नूरी। 
घर वृन्दावन हो जाए, तन चन्दन मन कस्तूरी । 

साँसों की लय पर दहके, कुन्दन सा तन बाहों में। 
जीवन बगिया में महके, मन सुन्दरवन राहों में। 
छम-छम करती तू घूमे, घर-आँगन अब छाहों में।

घर की अब होगी पूरी, मेरी हर आस अधूरी। 
घर वृन्दावन हो जाए, तन चन्दन मन कस्तूरी ।