31 मार्च 2023

पहले यह समझ

 गीतिका

छंद- गीतिका
मापनी- 2122 2122 2122 212
पदांत- यह समझ
समांत- अहले

साँँस चलती है समय से तेज पहले यह समझ,
चल सके तो वक्‍़त के ही संग बहले यह समझ।

पंचतत्‍वों से बना अनमोल है यह तन मिला,
ये बचें इनके लिए हर कष्‍ट सहले यह समझ।

यह अगर है संतुलित तो मान ले तू है सुखी,
शेष सुख तो हैं क्षणिक की मौज़ कहलेे यह समझ।

सूूूर्य चन्‍दा हैं अडिग चंचल युगों से है धरा,
है तभी हलचल कदाचित्, रोज़ दहले यह समझ। 

इसलिए आकुल का कहना मान धरती को सजा,
फिर हवाओं जंगलों से कर सुलह ले यह समझ।    

गिरत पड़त रामचन्‍द्र (रामनवमी के अवसर पर)

 मूल छंद- उड़ि‍याना 

गिरत पड़़त रामचंद्र, सीखत घुटमनियाँ ।

चलत देख बलिहारी, माँ लेय बलैयाँ ।।  

हाथ लिए धनुष बाण, देखत चितवन सौं ।

उछर उछर सुनत रहे, पग की नुपरन कौं ।।

 मुक्‍तक 

गिरत पड़़त रामचंद्र, सीखत घुटमनियाँ 

चलत देख बलिहारी, माँ लेय बलैयाँ।।  

हाथ लिए धनुष बाण, देखत चितवन सौं।

उछर-उछर करत रहे, गोदी ले मैयाँ ।।

30 मार्च 2023

पहले यह समझ

गीतिका

छंद- गीतिका
मापनी- 2122 2122 2122 212 
पदांत- यह समझ
समांत- अहले

साँँस चलती है समय से तेज पहले यह समझ।
चल सके तो वक्‍त के ही संग बहले यह समझ।

पंचतत्‍वों से बना अनमोल है यह तन मिला,
यह बचें इनके लिए हर कष्‍ट सह ले यह समझ।

यह अगर है संतुलित तो मान ले तू है सुखी,
शेष सुख तो हैं क्षणिक की मौज कहले यह समझ।

सूर्य चन्‍दा हैं अडिग चंचल युगों से है धरा
हैं तभी हलचल कदाचित् रोज दहले यह समझ।

इसलिए 'आकुल' का कहना मान धरती को सजा,
फिर हवाओं जंगलों से कर सुलह ले यह समझ।

29 मार्च 2023

चैत्र नवरात्रि

 

मुक्तक-1

देवी के अनगिनत रूप हैं, मातृभवानी जानिए।

कहीं अर्द्धनारीश्वर में है, शिवा शिवानी जानिए।

चामुण्डा , माँ अम्बे काली, है विंध्‍याचलवासिनी,

महामाया है कालरात्रि है, यही सयानी जानिए।

मुक्तक-2

सप्‍त मातृकायें दस विद्या, नौ दुर्गा नवरात्रि में।

व्रत कर फलाहार लें करना जगराता नवरात्रि में।

माँ कल्‍याण करे होती है, भक्‍तों के सान्निध्‍य भी,

क्षमाशील बन पूजें करती, चमत्‍कार नवरात्रि में।

28 मार्च 2023

मन हो जाए गंगा-यमुना-सरस्‍वती

 गीतिका

छंद- लावणी

हे वागीशा हंसवाहिनी,वीणापाणि माँ सरस्‍वती ।

श्‍वेत पुष्‍प चरणों में अर्पित, माँ स्‍वीकारों है विनती ।1।

माते है साष्‍टांग दंडवत, निर्मल मन मेरा कर दो,

बुद्धि प्रखर हो ऐसा वर दो, कभी न मुझसे हो गलती ।2।

गति जीवन की हो निर्बाधित, चलती रहे लेखनी बस,

समय कठिन हो कण्‍टकीर्ण पथ, साँसें तुझे रहें भजती ।3।

ना दुर्वचन कहे जिह्वा ना आए ही दुर्भाव कभी,

जीवन हो निष्‍काम कर्म को सदा समर्पित हो हस्‍ती ।4।

सबको ही सद्बुद्धि मिले माँ, हे पद्मजा प्रगति श्रेया,

आकुल का मन हो जाए माँ गंगा-यमुना-सरस्‍वती ।5।

27 मार्च 2023

सच बोल भी सकता नहीं

गीतिका 
छंद- मनहंस (वार्णिक)
मापनी- 112 121 121 211 212 (स ज ज भ र)
पदांत- भी सकता नहीं
समांत- ओल
 
सच जान के सच बोल भी सकता नहीं।
तब जान लो दिल खोल भी सकता नहीं।
 
कम तोल के व्‍यवसाय जीवन में किया,
हर वक्‍़त वो कम तोल भी सकता नहीं।
 
समभाव भी रखना जरूरत वक्‍़त पे,   
कटुता कहीं पर घोल भी सकता नहीं।
 
अपराध तो अपराध है इलज़़ाम को 
हर शख्‍़स के सर ढोल भी सकता नहीं।
 
नुकसान दे हर चीज को कम आंकना,
जब चीज़ बंद टटोल भी सकता नहीं। 

6 मार्च 2023

निर्मल मन मेरा कर दो ( सरस्‍वती वंदना)

गीतिका
छंद- लावणी

हे वागीशा हंसवाहिनी,वीणापाणि माँँ सरस्‍वती।
श्‍वेत पुष्‍प चरणों में अर्पित, माँ स्‍वीकारो है विनती।

माते है साष्‍टांग दण्‍डवत, निर्मल मन मेरा कर दो,
बुद्धि प्रखर हो ऐसा वर दो, कभी न मुझसे हो गलती।

गति जीवन की हो निर्बाधित, चलती रहे लेखनी बस,
समय कठिन, हो कण्‍टकीर्ण पथ, साँँसे तुझे रहें भजती।

ना दुर्वचन कहे जिह्वा ना, आए ही दुर्भाव कभी,
जीवन हो निष्‍काम कर्म को, सदा समर्पित हो हस्‍ती।

सबको ही सद्बुद्धि मिले माँँ,  हे पद्मजा प्रगति श्रेया,
'आकुल' का मन हो जाए माँँ, गंगा-यमुना-सरस्‍वती।

3 मार्च 2023

याद है

गीतिका

छंद- मरहट्ठा माधवी

विधान- 29 मात्रा भार। 16, 13 पर यति अंत 212

पदांत- याद है

समांत- अड़ी

ज्‍वर में दलिया और मूँग की, सौंधी खिचड़ी याद है।

घी में पड़े हुए कपड़े से, रोटी चिपड़ी याद है ।

उधड़े बंदरटोपा, स्‍वेटर, शाल, रजाई ठंड भी,

सर्दी में दिन भर जलती वो, टूटी सिगड़ी याद है ।

लाते जंगल से झड़बेरी, छिप कर खाते बाँट कर,

खेलों में गुलामडाली की, धौलें पिछड़ी याद है ।

गर्मी की वो छाछ राबड़ी, उमस, मसहरी, लाय सब ,

कभी घमोरियों में मुल्‍तानी मिट्टी रगड़ी याद है।

होरी पर गाते रसिया पर, सब ठंडाई भाँग पी,

चौपालों में बैठ ताश की, खेली छकड़ी याद है।

सब्जी और किराना मिलता, था बदले में अन्न के,

बनिया जो करता जल्दी से टेढ़ी तखड़ी याद है ।

रखते देखा माँ को कुछ-कुछ, कभी ताख या नाज में,

जब भी बापू मदद माँगते, खुलती हटड़ी याद है ।

महामारियों की तो जैसे, जन्‍म जात दुश्‍मनी रही,

चेचक से भाई बिछड़ा, इक बेटी बिछड़ी याद है।   

लोग अंधविश्‍वासों की अब, ‘आकुल’ भेंट चढ़ें नहीं,

खालीपन तो भर जाता पर, लगे थेगड़ी याद है। 

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