18 फ़रवरी 2019

जीता वही है जो सदा चलता रहा (गीतिका)

छंद- मधुवल्‍लरी        
मापनी- 2212 2212 2212
पदांत- रहा
समांत- अता

जीता वही है जो सदा चलता रहा.
हारा पिछड़ कर भी सदा बढ़ता रहा.

सीखा नहीं यदि ग़लतियों से आदमी,
नुकसान जीवन में सदा भरता रहा.

इतिहास नि:संदेह लिखता है वही,
जो सत्‍य की खातिर सदा मरता रहा.

जिसके लिए है बात की कीमत बड़ी,
वह धार पर तलवार की चलता रहा.

जीवन नहीं जिसमें नहीं संघर्ष है,
सोना खरा ही आग में तपता रहा. 

कहते गरजते हैं बरसते वे नहीं,
थोथा चना ही भाड़ में बजता रहा.

‘आकुल’ लिये आया जगत् में कर्ज तू,
यूँ ही नहीं तू गर्भ में पलता रहा.

17 फ़रवरी 2019

नित सर्द सूर्य भिनसारे से (गीतिका)

छंद- पदपादाकुलक चौपाई
पदांत- से
समांत- आरे

नित सर्द सूर्य भिनसारे से
हर हाल उगे मन मारे से

है नहीं तभी अब तक जीता 
तम हारा है उजियारे से.

सूरज से जीवन क्रम चलता
ऋतु चलती एक इशारे से .

ठिठुरन से चाहे पाये तन,
राहत अलाव अंगारे से

हारा हो सूरज वर्षा या
सर्दी के बढ़ते पारे से

चाहे कोहरे में रहे छिपा
बर्फीली सर्दी से हारे से

तब प्रलय समझ लेना उस दिन,
भूले ना उगे बिसारे से.

15 फ़रवरी 2019

यही सही श्रद्धांजलि होगी.. (गीतिका )

छंद- ताटंक
पदांत- बाकी
समांत- उनना

ख़त्म हुई अब सहनशीलता, क्या कहना-सुनना बाकी.
दहशतगर्दों के घर घुसकर, अब उनको धुनना बाकी.

अपने ही घर के लोगों को, ढाल बना छिप के बैठे,
बीच उन्हीं में से बढ़ के अब, बस उनको चुनना बाकी.

दें जवाब ऐसा वर्षों तक, रहें पीढ़ियाँ दहशत में,
जितना हो जल्दी हिसाब का, अब स्वरूप बुनना बाकी.

अपने घर परिवार देश से, नहीं उन्हें लेना देना,
नहीं सोचने का अब अवसर, ना पढ़ना-गुनना बाकी.

सोच सके ना काँप उठे अरि, दें सामान उसे ऐसा,
रह जाये खिसियानी बिल्ली, सा कुढ़ना कुनना बाकी.

दिल दिमाग निष्क्रिय हो जायें, उनको दंड मिले ऐसा,
रह जाये दीमक सा दर, घर, दीवारें घुनना बाकी.

लोहा भी है गर्म यही है, समय चोट अब करने का,
यही सही श्रद्धांजलि होगी, अवसर का भुनना बाकी.

कुनना- नोचना, खरोंचना
-आकुल

14 फ़रवरी 2019

हौसलों के बल किया हर काम संभव नारियों ने (गीतिका)

छंद- माधव मालती
मापनी- 2122 2122 2122 2122
पदांत- नारियों ने
समांत- अव

हौसलों के बल किया हर, काम संभव नारियों ने.
की सफलता नाम अपने, कर पराभव नरियों ने. 

तोड़ कर दस्‍तूर, सीमायें, नया संसार देखा,
कुछ अगर खोया लिया भी, खूब अनुभव नारियों ने.

खेल हो या हो कला, संस्‍कृति निपुणता सिद्ध की है,
सम्मिलित हो के त्रिबल में, आज सौरव नारियों ने.

नारियों ने क्षण हरिक जीया, समझ कर इक चुनौती 
देश का ऊँचा किया है, नाम गौरव नारियों ने.

कर गुजरने की लिये जब, ठान ली पाई विजय तब,
है मनाया संग परिवारों के’, उत्‍सव नारियों ने. 

सौरव- देवी, सुंदर.  

10 फ़रवरी 2019

धरती पर अब छाया बसंत (गीतिका)

छंद- पद्धरि
विधान- चार चरण सम मात्रिक छंद,यति 8,8 या 10, 6 और अंत लघु गुरु लघु (121). त्रिकल के बाद त्रिकल आवश्‍यक ताकि लय न टूटे.
(लय राधेश्‍यामी चौपाई की तरह)
पदांत- बसंत 
समांत- आया 
धरती पर अब, छाया बसंत.
जन जन को अब, भाया बसंत.

आते जब भी, त्योहार, पर्व,
हर उत्सव सँग, आया बसंत.

बदले भ्रमरों के, हाव भाव,
बुलबुल ने जब, गाया बसंत.

मनुहार करें, प्रेमिल पखेरु
मन पुलकित शरमाया बसंत.

पीली चूनर को ओढ़ भूमि
,
झूमी तब हरसाया बसंत.

है धरा प्रदूषित, रोज-रोज
फिर भी मौसम, लाया बसंत

अब कहीं नही हो, तंत्र भ्रष्ट,
फैले ऐसी, माया बसंत.