29 जून 2019

वर्तमान को सुधार (गीतिका)


छंद- मल्लिका छंद (वार्णिक)
मापनी- 21 21 21 21
पदांत- 0
समांत- आर

क्‍यों नहीं कभी कभार.
आदमी करे विचार.

प्‍यार से बड़ा न धर्म
कर्ज से बड़ा न भार

जिंदगी मिली सशर्त,
मौत है मिली उधार.

देव की मिली न योनि 
क्‍यों बने रँगा सियार.

सूर्य में न देख अग्नि,
धूप से मिटें विकार.

जिंदगी उदारता व
सद्विचार से सँवार.

जन्म क्‍यों हुआ न सोच,
वर्तमान को सुधार.

23 जून 2019

सफलता यदि मिले, रोना नहीं (गीतिका)


छंद- पीयूष वर्षी
मापनी- 2122 2122 212
विधान- शिल्प:- १२+७ या १०+९=१९मात्राएँ, अंत में
लघु गुरु अथवा १११ (नगण) भी हो सकता है।
पदांत-नहीं
समांत- ओना

कम सफलता यदि मिले, रोना नहीं.
हाल हर जीवन कभी, खोना नहीं.

बातियों से रोशनी, हो ना बहुत,
जुगनुओं से रोशनी होनी नहीं.

कौन है बैठे हुए, जो खुश रहा,
व्‍यर्थ बैठे तू बदन, ढोना नहीं.

है सफलता सूत्र बस, कर्मण्‍य बन,
हो हमेशा ही खरा, सोना नहीं. 

क्‍यों नहीं संतुष्‍ट है, इंसाँ यहाँ,
है सफलता टोटका, टोना नहीं

आज तुझसे जिंदगी करें बहस,
हार कर करना कभी, कोना नहीं.

श्रम सदा करना मिलेगा, फल तुझे,
तीर्थ जाके पाप तू, धोना नहीं

22 जून 2019

जैसी मिली है भगवान ने दी, ये जिंदगी है, चलती रहेगी (गीतिका)



छंद- इंद्रवज्रा (वार्णिक)
मात्रा- 11 मात्रा भार. अंत दो गुरु से.
मापनी- 221 221 121 22

(लय के लिए गीत-  जो प्‍यार तूने मुझको दिया था,
वो प्‍यार तेरा मैं’ लौ’टा रहा हूँ.

जैसी मिली है भगवान ने दी, ये जिंदगी है, चलती रहेगी.
रो के बितायें, हँस के बितायें, जैसी बितायें, फलती रहेगी.

प्रारब्‍ध में है उतना मिलेगा, कोई भरेगा नहीं जिंदगी में,
ज्‍यादा न आशा करना कभी भी, ये जिंदगी को छलती रहेगी.

आजाद हो के न उड़ ऐ परिंदे, होंगे अकेले कुछ हादसे भी,
जो हौसलों के दम पे जलाई, लौ जिंदगी की जलती रहेगी.

हालात का है इनसान मारा, ना चाहता है फिर भी जिया है 
थोड़ी या ज्‍यादा सबको मिली है, ये आपबीती पलती रहेगी.

यूँ जिंदगी से मत हो खफा तू, राजा भिखारी इसने बनाये 
वो ही बना है इतिहास तूने, जैसा रचा है, ढलती रहेगी

20 जून 2019

पीने के पानी जैसा मन, निर्मल शुद्ध करें (गीतिका)


छंद- विष्‍णुपद सम मात्रिक
विधान- 16, 10. अंत गुरु से.
पदांत- शुद्ध करें
समांत- अल
  
पीने के पानी जैसा मन, निर्मल शुद्ध करें,
नहीं प्रदूषण का प्रभाव हो, परिमल शुद्ध करें.

अपकर्मों से शहर बस्तियाँ, त्रस्‍त हैं गाँव डगर,
इतनी तो हो कोशिश सबकी, कलिमल शुद्ध करें.

लगा सकें यदि वृक्ष नहीं तो, उन्‍हें उजाड़े क्‍यों,
पर्वत भी दृढ़ रखें हृदय को, जंगल शुद्ध करें.

अप्राकृतिक उपयोग बढ़ रहे, खान-पान बिगड़ा,
साँस साँस हो रही प्रदूषित, हर पल शुद्ध करें.

घर में लें उपयोग सभी जो, मिलें प्राकृतिक हों, 
रखें सहेज घरों में सब्‍जी, सब फल शुद्ध करें.

परिशीलन हो संस्‍कार और, परम्‍पराओं का,
रही ढील क्‍यों मंथन कर अब, प्रतिफल शुद्ध करें.

सर्वधर्म समभाव सही, पर कुछ परिवर्तन हों, 
जनसंख्‍या पर करें नियंत्रण, तब कल शुद्ध करें