31 अगस्त 2020

हमें भी कुछ कहना है !

विशेष पोस्ट
हमें भी कुछ कहना है!
साथियो,
कई बार सुनने पढ़ने देखने को भी मिला कि लोग ‘दोहा-ग़ज़ल’ पर व्‍यर्थ में बहस करने से नहीं चूकते. बे-बह्र ग़ज़लों को बहुत तरजीह (प्राथमिकता) नहीं दी जाती और न ही ज्‍यादा तवज्‍जह (ध्‍यान) दी जाती है, यानि दूसरे शब्‍दों में कहें तो बे-बह्र ग़ज़ल को बहुत अच्‍छी तरह से नहीं देखा जाता. जब रचनाकार उसे ग़ज़ल कहता है तो उसे नज़्म (कविता) भी नहीं कहा जा सकता. हालाँकि स्‍वच्‍छंद भी रचना लिखी जाती हैं, जिसे छंद मुक्‍त कह कर संतोष कर लिया जाता है क्‍योंकि हमें रचना की लय व मात्रा व्‍यवस्‍था के अनुसार छंदों के बारे में ज्ञान न होने के कारण उसे छंदमुक्‍त कह देते हैं. विद्वानों का तो यह भी कहना है कि कवितायें भी छंदबद्ध होती हैं, क्‍योंकि उन्‍हें तुकांत व समान मात्रा से लय में ढाला जाता है.
वैसे सच्चाई तो यह है कि जहाँ ग़ज़ल का बहुत बड़ा इतिहास और विधान नहीं है तो बे-बह्र ग़ज़ल के बारे में ज्यादा बात करने का कोई औचित्‍य भी नहीं है. वैसे उर्दू काव्‍य में लगभग 32 जानी-पहचानी अथवा दूसरे शब्‍दों में 32 प्रचलित बह्रों (मापनियों) का उल्‍लेख मिलता है, जिस पर ज्‍यादातर रचनायें की जाती रही हैं और की जा रही हैं, वे सभी किसी न किसी हिंदी छंद साहित्‍य के छंदों पर आधारित हैं. इसका उल्‍लेख मैंने अपने सद्य प्रकाशित छंदाधारित गीतिका द्विशतक ‘’हौसलों ने दिए पंख’’ में किया है कि ग़ज़ल की कौनसी बह्र हमारे हिंदी छंद साहित्‍य में कौनसा छंद है. उदाहरण स्‍वरूप कुछ बह्र देखिए-
(1)
अ. बह्र का नाम- बहरे कामिल मुसम्‍मन सालिम
आ. बह्र का विस्तार- मुतफ़ाएलुन मुतफ़ाएलुन मुतफ़ाएलुन मुतफ़ाएलुन
इ. बह्र (मापनी)- 11212 11212 11212 11212
ई. हिंदी छंद साहित्य का छंद- मुनिशेखर
(2)
(अ) बह्र का नाम- बह्रे मज़ारिअ मुसम्‍मन मक्‍फ़ूफ़ मक्‍फ़ूफ़ मुख़न्‍नक मक़्सूर
(आ) बह्र का विस्तार- मफ़ऊलु फ़ाएलातुन मफ़ऊलु फ़ाएलातुन
(इ) बह्र- 221 2122 221 2122
(ई) हिंदी छंद साहित्य का छंद- दिग्‍पाल
(3)
(अ) बह्र का नाम- बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
(आ) बह्र का विस्तार- फ़ऊलन फ़ऊलन फ़ऊलन फ़ऊलन
(इ) बह्र- 122 122 122 122
(ई) हिंदी छंद साहित्य का छंद- भुजंग प्रयात
(4)
(अ) बह्र का नाम- बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़
(आ) बह्र का विस्तार- फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलुन
(इ) बह्र- 2122 2122 2122 212
(ई) हिंदी छंद साहित्य का छंद- गीतिका (मात्रिक/वाचिक)
ध्यानाकर्षण- मुनिशेखर छंद यदि वार्णिक हो तो वह 20 वर्णीय ‘गीतिका वृत्त’ कहलाता है. इसलिए उपर्युक्‍त गीतिका छंद (मात्रिक/वाचिक) है.
ग़ज़ल की अन्‍य बह्रें महालक्ष्‍मी, चंद्र, बाला, अरुण, मधुमालती, नराचिका, मधुवल्‍लरी, हरिगीतिका, मनोरम आदि छंदों पर आधारित हैं.
उपर्युक्‍त विश्‍लेषण का अर्थ यह नहीं कि मैं ग़ज़ल का विरोधी हूँ, बल्कि यह स्‍पष्‍ट करना चाहता हूँ, कि उपर्युक्‍त बह्रों पर रची ग़ज़लों को ही उर्दू काव्‍य में प्राथमिकता दी जाती है. ज्‍यादातर ग़ज़लें आपको उपर्युक्‍त चौथी बह्र या गीतिका छंद पर आधारित ही मिलेंगी. अन्‍य पर भी कई ग़ज़ले लिखी गई हैं, जिनको विद्वानों ने विधान से नहीं अपितु फिल्‍मी गीतों के उदाहरण दे कर समझाया है. (आप चाहें तो गूगल पर सर्च करके देख लें.) उर्दू का विधान बहुत क्लिष्‍ट है, जबकि हिंदी छंद साहित्‍य का विधान बहुत ही सुलझा हुआ है. ऊपर उल्लिखित ग़ज़ल की बह्रों के नाम, उनका विस्‍तार देख कर अनुमान लगा सकते हैं. जहाँ तक गज़ल में रदीफ़-काफ़ि‍या का प्रश्‍न है वह हिंदी छंद साहित्‍य के समांत-पदांत से थोड़ा भिन्‍न है, यही विशेषता उसे गीतिका से अलग करती है.
‘गीति काव्य’ को संक्षिप्‍त कर गीतिका (व्‍य) नाम दिया हमारे प्रातस्‍स्‍मरणीय पद्मभूषण ‘नीरज’ जी ने. इसका मुख्‍य उद्देश्‍य रचनाकारों द्वारा हिंदी ग़ज़ल के भ्रामक जाल से बचने के लिए क्‍योंकि हिंदी ग़ज़ल के नाम से रचनाकार न तो ग़ज़ल समाज का भला कर रहा है और न हीं हिंदी छंद साहित्‍य का. ग़ज़ल का यदि विधान है तो उसे समझने के लिए आपको उर्दू (अरबी/फारसी) का अच्‍छा ज्ञान भी आवश्‍यक है. अनेक ग़ज़लनवीस ग़ज़ल को उर्दू (फ़ारसी) लिपि में लिख कर मजलिसों (बैठकों) में पढ़ते हैं. यही एक सही तरीका है ताकि उसमें नुक्‍ता आदि से सही शब्‍द लिखा जा सके, क्‍योंकि कई उर्दू शब्‍दों का प्रयोग तो लोग कर लेते हैं किंतु नुक्‍ता लगाने की भूल कभी कभी ठेठ उर्दू मजलिसों में उपहास का रूप या हास्‍यास्‍पद बन जाती है. वहीं, हिंदी छंद साहित्‍य में थोड़ा गहराई से सोचें तो हम पायेंगे कि हमारा हिंदी छंद साहित्‍य संस्‍कृत के छंद साहित्‍य से परिष्‍कृत हो कर तद्भव व तत्‍सम की तरह सरलता से बोधगम्य है. हर छंद का अपना विधान है. विधान को बहुत ही विस्‍तार से बताया हुआ है.
बे-बह्र यानि बिना मापनी या दूसरे शब्‍दों में हमारे छंद साहित्‍य में इसे मापनी मुक्‍त श्रेणी कह सकते हैं. हमारा छंद साहित्‍य इतना विशाल और इतना उदार है कि मापनी-मुक्‍त छंदों की भी एक लंबी फेहरिस्‍त (सूची) है, उसका विधान है. एक एक मात्रा के विचलन से अनेकों छंदों का उल्‍लेख हमें हिंदी छंद साहित्‍य में देखने को मिलता है. जैसे चंद्र छंद वार्णिक बन जाए तो बाला छंद बन जाता है. सोमराजी छंद वाचिक बन जाये तो वह नयन छंद बन जाता है, पीयूष वर्षी छंद, आनंदवर्धक छंद बन जाता है. कुंडल छंद के अंत में 2 गुरु के सथान पर लघु गुरु हो जाए तो वह उड़ियाना छंद बन जाता है. तमाल छंद में अंत गुरु लघु के स्थान पर लघु गुरु हो जाये तो वह नरहरि छंद बन जाता है, दोहा का केवल सम चरण अभीर/अहीर छंद बन जाता है, केवल विषम छंद हो तो जनक छंद की रचा जाता है आदि. उसी प्रकार संगीत में भी एक एक स्‍वर के विचलन से अनेक रागों के निर्माण हुए है. हमारा छंद साहित्‍य, हर साहित्यिक समस्‍या का समाधान देता है.इसका कारण है कि हम छंद साहित्‍य को समझने के लिए हिंदी भाषा, व्‍याकरण का अच्‍छा ज्ञान रखते हैं.
हमारा संस्‍कृत छंद साहित्‍य प्राचीन काल से या यूँ कहिए वेद काल से चला आ रहा है. विश्‍व का सबसे बड़ा काव्‍य महाभारत, वाल्‍मीकि रामायण, चारों वेद, पुराण, उपनिषद्, महाभारत का सार ग्रंथ गीता (श्रीमद्भागवत पुराण) आदि सम्‍पूर्णत: छंदाधारित हैं.हमारे संस्‍कृत काव्‍य के प्रचलित श्‍लोकों, स्‍तोत्रों, मंत्रों से हम इसके छांदसिक स्‍वरूप का पान कर सकते हैं, क्‍योंकि इनके छांदसिक स्‍वरूप को ही विद्वानों ने हिंदी में अनुवाद कर हिंदी छंद साहित्‍य का विकास किया.रामचरित मानस इसका साक्षात् उदाहरण है. हिंदी छंद साहित्‍य को बहुत समीप से समझना हो तो प्रचलित गीतों, दोहों, चौपाइयों आदि के स्‍वरूपों को आत्‍मसात कर सकते हैं. संस्‍कृत छंद साहित्‍य में कुछ स्तोत्र, श्‍लोकों को देखें-
इंद्रवज्रा छंद
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेंद्र हारं ।।
उपेंद्रवज्रा छंद
सदावसंतं हृदयारविंदे भवं भवानी सहितं नमामि ।।
चौपाई
अधरं मधुरं वदनं मधुरं, नयनं मधुरं हसितं मधुरं।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरं।।
अनुष्टुभ छंद
श्रीकृष्‍ण शरणं मम (अष्‍टाक्षर मंत्र)
अरुण छंद
अच्‍युतं केशवं कृष्‍ण दामोदरं, रामनारायणं जानकी वल्‍लभ।।
शार्दूल विक्रीडित छंद
या कुंदेंदु तुषार हार धवला या शुभ्रवस्‍त्राव्रता......
वंशस्थ छंद
सशंखचक्रं सकिरीटकुंडलं, सपीतवस्‍त्रं सरसीरुहेक्षणं ।
सहारवक्षस्‍थल कौस्‍तुभश्रियं नमामि विष्णु शिरसा चतुर्भुजं ।।

हिंदी छंद साहित्‍य मे प्रख्‍यात गीतों, चौपाइयों, दोहों से हिंदी छंदों के बारे में जानकारी से रचना करने में बहुत मदद मिलती है. वैसे तो तरंगिनी छंद समारोह में अक्‍सर प्रदत्‍त छंद पर प्रचलित रचनाओं, छंदों, गीतों, श्‍लोकों का उल्‍लेख होता रहता है, फिर भी मैं कुछ प्रचलित रचनाओं का उल्‍लेख यहाँ करना उचित मान रहा हूँ-
सार छंद
जन गण मन अधिनायक जय है, भारत भाग्‍य विधाता (राष्‍ट्रगान)
सुखदा छंद
ओम जय जगदीश हरे... (आरती)
द्विवाचिक यशोदा छंद
तुम्‍हीं हो माता तुम्‍हीं पिता हो, तुम्‍हीं हो बंधु सखा तुम्‍हीं हो.
कुंडल छंद
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा....
उड़ि‍याना छंद
ठुमक चलत राम चंद्र बाजत पैंझनियाँ
मुक्तामणि छंद
नंद के आनंद भये, जय कन्‍हैया लाल की
राधेश्यामी छंद/द्विगुणित पदपादाकुलक छंद
उठ जाग मुसाफिर भोर भई
गंगोदक छंद
मेरे रश्‍के कमर तूने पहली नज़र...
दिग्पाल छंद
सारे जहाँ से अच्‍छा हिंदोसताँ हमारा....
चौपई छंद
हिंदी- हिंदू- हिंदुस्‍तान (नारा)
सुमेरु छंद
मेरे हाथों में नौ नौ चूड़ि‍याँ हैं
इंद्रवज्रा छंद-
हे कृष्‍ण गोविंद हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवा
बॉलिवुड में संगीत के शिखर पर स्‍थापित रहे संगीतकारों ने सदा शास्‍त्रीय संगीत और अभ्‍यास को महत्‍व दिया और अमर गीतों की रचना की. 90 के दशक से पूर्व कुछ अपवाद छोड़ दें तो पहले गीतों की रचना होती थी, फि‍र उस पर शास्‍त्रीय संगीत से या सुगम संगीत में ढाल कर गीत रचे जाते थे, किंतु कालांतर में पहले संगीत/लय रची जाने लगीं और उसे गुनगुना कर गीत की रचना गीतकार कहानी के अनुरूप गीत लिखने लगे. यहीं से आरंभ हुआ शास्‍त्रीय संगीत और छंद आग्रह का पतन और उसी चलन पर बॉलिवुड चल रहा है परिणामस्‍वरूप जो गीत रचे जा रहे हैं वे लंबे समय तक याद नहीं रखे जा सकते.
छंद दीपिका में इस बार दोहा छंद दिया गया था. प्रख्‍यात दोहा छंद के बारे में बहुत लिखा जा चुका है. पिछले तरंगिनी छंद समारोह में कुंडलिया छंद के अंतर्गत ‘हमें कुछ कहना है’’ में, मैंने दोहा के बारे बहुत विस्‍तार से भी लिखा है. दोहा ग़ज़ल के भ्रामक प्रचार के संदर्भ में ऊपर लिखा ही है. इसलिए दोहा छंद के बारे में कुछ और बात एवं दोहा गीतिका के संदर्भ में थोड़ी बात.
दोहा छंद हिंदी छंद साहित्‍य का सर्वाधिक रचा जाने वाला प्रख्‍यात एवं प्रचलित छंद है. 13, 11 का 24 मात्रा वाला यह छंद इतना प्रख्‍यात है कि इससे बने छंदों को मिला कर छंद परिवार का निर्माण भी हुआ है. यानि इन छंदों को दोहा परिवार के छंदों में माना जाता है जैसे- रोला, सोरठा, उल्‍लाला, जनक, अभीर, कुंडलिया छंद आदि. दोहा उलटा कर दें और लय व विधान को ध्‍यान में रखें तो दो छंद बनते हैं, रोला और सोरठा. रोला के बारे में पिछले समारोह में दोहा के साथ रोला के बारे में भी विस्‍तार से बताया हुआ है. इसी प्रकार केवल दोहा के विषम चरण से जनक छंद, सम चरण से अभीर/अहीर छंद. दुमदार दोहों का भी चलन है. दोहा गीत, दोहा मुक्‍तक, दोहा गीतिका आदि दोहा परिवार के छंद हैं. मात्राओं के कलन या गुरु लघु के विभिन्‍न क्रमचय संचय से 23 प्रकार के दोहों के बारे में भी उल्‍लेख हैं ये हैं मंडूक, करभ, मर्कट, नर, सर्प आदि.विद्वानों ने दोहा को इतना स्‍वतंत्र कर दिया कि उसे लघु ओर गुरु मात्राओं के उपयोग/प्रयोग के आधार पर नाम तक दे दिये जैसे यदि किसी दोहे में गुरु वर्ण 18 और लघु वर्ण 12 हैं तो वह मंडूक दोहा कहलाता है, इसके बारे में मैंनें विस्‍तार से मुक्‍तक-लोक प्रस्‍तुति दोहा मुक्‍‍तक संकलन ''तन दोहा मन मुक्तिका'' में उल्‍लेख किया है. आदि.
दोहा गीतिका में प्राय: सभी अपदांत रचनायें रचते हैं. थोड़ा प्रयास करें तो हम पदांत समांत के साथ दोहा गीतिका रच सकते हैं. मेरी एक गीतिका देखें-
दोहा गीतिका
पदांत- गीतिका मित्र
समांत- अढ़ी
मात्र मापनी में नहीं, गढ़ी गीतिका मि‍त्र.
सहज और स्‍वच्‍छंद थी, पढ़ी गीतिका मित्र.
कथ्‍य शिल्‍प में जान थी, पैठी मन में बात,
नहीं एक विद्वान पर, चढ़ी गीतिका मित्र.
हिंदी के थे शब्‍द सँग, प्रचलित उर्दू शब्‍द,
ले खटास मन में बनी, कढ़ी गीतिका मित्र.
अलग-थलग होने लगी, रचनाएँ स्‍वच्‍छंद,
छंद किताबों में रही, मढ़ी गीतिका मित्र.
अब स्‍वच्‍छंद गगन उड़ी लेकर युग्‍म प्रवीण,
'मुक्‍तक-लोक' विधान से, बढ़ी गीतिका मित्र.
विश्‍वास है कि इस आलेख से आप कुछ तो ग्रहण करेंगे. किमधिकम्.
-आकुल

24 अगस्त 2020

कुंडलिया छंद के बारे में

साथियो,
‍वैसे तो हर छंद पर विस्‍तार से बहुत लिखा जा सकता है. नवांकुरों को इस छंद को आद्योपांत विस्‍तार से समझने के लिए इसकी आवश्‍यकता इसलिए भी अनुभव की है कि साहित्‍यकारों द्वारा छंदों पर समीक्षा, टिप्‍पणियों पर समीक्षा नहीं की जाती. त्रुटिपूर्ण होने पर भी टिप्‍पणियों में तारीफ़ों के रटे रटाये शब्‍दों का उल्‍लेख कर रचनाकार को भ्रमित रखा जाता है. रचनाकार भी पिन पोस्‍ट में उल्लिखित विधान को गंभीरता से नहीं देखता या पढ़ता. आज समीक्षा का दिन भी है. इसलिए इस छंद पर पिन पोस्‍ट के विधान पर बिल्‍कुल भी छेड़ छाड़ किये बिना इस छंद को और अधिक सरल कर कुंडलिया छंद लिखने वालों को कुछ कहा है. आशा है यह आलेख उपयोगी सिद्ध होगा.
विस्‍तार से समझाने हेतु और अधिक स्‍पष्‍ट करते हुए यह उपयोगी सिद्ध हो और अधिक से अधिक लोग छंद के इस अप्रतिम स्‍वरूप को शिव के गले में कुंडलिया डाले सर्प की भाँति नामकरण को सिद्ध करते इसके विस्‍तार को समझें, इस आलेख में कुछ कहने के लिए उद्यत हुआ हूँ. शिव की ही कृपा रही होगा जो इस छंद का आविष्‍कार हुआ. इसीलिए आलेख के अत में मैंने शिववंदना कर आलेख का समापन किया है. शिव आपको और मु्झे समार्थ्‍य दे-
आज तरंगिनी छंद समारोह का सम्‍मानार्थ आयोजन है. आज का छंद है ‘कुंडलिया’. यह छंद दो छंदों को मिला कर बनाया गया अर्द्ध सम मात्रिक छंद है. यानि एक पद अर्थात् चार चरण जिसमें दो दो चरणों में अलग अलग समान मात्राओं के दो दो चरण हैं. दूसरे शब्दों में, दो विषम चरण समान मात्रा के दो सम चरण समान मात्रा के.
सर्वप्रथम कुंडलिया छंद का एक उदाहरण लें-
मौसम कोई भी रहे, क्या गरमी क्या ठंड।
जो चलता विपरीत है, मौसम देता दंड।। -दोहा
मौसम देता दंड, बदन की शामत आती।
बेमौसम बरसात, सदा ही आफ़त ढाती।।- रोला
भोजन अरु व्यवहार, निभायें जितना हो दम।
चलें प्रकृति अनुसार, बचायें उतना मौसम।। -रोला
-----------------------------------आकुल
अर्थात् एक दोहा और दो राेला मिल कर एक कुंडलिया छंद बनता है.
आइए, दोहा, रोला को समझते हुए कुंडलिया छंद को समझें-
दोहा- 13, 11 कुल 24 मात्रा का छंद है. जैसा कि पिन पोस्‍ट में बताया गया है- चार चरण ,दो तुकान्त । विषम चरणों में 13 मात्रा, आरम्भ में 121 स्वतंत्र शब्द वर्जित, चरणान्त में 12 /111 अनिवार्य । सम चरण 11 मात्रा, सम चरण के अंत में 21 अनिवार्य ।
इसे दिये गए उदाहरण में सिद्ध करके देखें-
(अ) चार चरण दो तुकांत –
चार चरण- विषम चरण (2) 1. मौसम कोई भी रहे (13 मात्रा) 2. जो चलता विपरीत है (13 मात्रा). सम चरण (2)- 3. क्‍या गरमी क्‍या ठंड (11 मात्रा). 4. मौसम देता दंड (11 मात्रा).
(आ) दो तुकांत- दूसरे शब्‍दों में दोहा में सम चरण तुकांत होता है. प्रस्‍तुत उदाहरण में देखें
(1) क्‍या गरमी क्‍या ठंड.
(2) मौसम देता दंड.
(3) दोहा के आरंभ में 121 (जगण) वाले स्‍वतंत्र शब्‍द वर्जित- जैसे सुधार, कपाल, अधीर, मनीष आदि. उदाहरण में देखें आरंभ में सभी द्विकल या चौकल वाले शब्‍द हैं, मौसम, जो, इससे लय बनती है, जगण वाले शब्‍द के आरंभ से लय खटकती है.
(इ) चरणांत में 12/111 अनिवार्य- अर्थात विषम चरण में लघु गुरु या लघु लघु लघु अनिवार्य. दृष्‍टव्‍य है कि लघु लघु लघु सदा लघु गुरु होता है. दोहा में विद्वानों में लय की प्रधानता को ध्‍यान रखते हुए विषम चरणांत 212 (रगण) को प्राथमिकता दी है श्रेष्‍ठ माना है. यानि, विषम चरणांत ‘गुरू लघु गुरु (212) या (11, 1, 11 या 3, 2) इस प्रकार विषम चरणांत में 111 / 12 सिद्ध होता है. उदाहरण में देखें- 1. भी रहे 2. विप रीत है
(ई) विशेष- विद्वानों ने दोहा के लिए शीघ्र याद रह सके संक्षेप में बताया है कि निम्न मात्रा संयोजन से दोहा आसानी से बनाया जा सकता है-
(1) विषम चरण – 4, 4, 3, 2 या 3, 3, 2, 3, 2
(2) सम चरण - 4, 4, 3 या 3, 3, 2, 3
आगे दिये उदाहरण से इसे सिद्ध करते हैं- प्रत्‍येक पंक्ति को देखें-
मौसम कोई भी रहे, क्या गरमी क्या ठंड ।
मौसम/कोई/भी/रहे (4,4,3,2) ‘क्या गर/मी क्या/ ठंड (4,4,3)’।
जो चलता विपरीत है, मौसम देता दंड ।।
जो चल/ता विप/रीत/ है (4,4,3,2) मौसम/देता/दंड (4,4,3)।।
इसी प्रकार पिन पोस्‍ट में रोला के संदर्भ में विधान बताया है-
रोला- 11, 13 कुल 24 मात्रा का छंद है. जैसा कि पिन पोस्‍ट में बताया गया है- 2 रोला यानि 8 चरण, चार तुकान्त ।( तुकान्त दो दो पंक्ति का भी मान्य होता है) रोला के विषम चरणों में 11 मात्रा चरणान्त में त्रिकल अनिवार्य । सम चरणों में 13 मात्रा, आरम्भ में त्रिकल अनिवार्य अंत में गुरु अनिवार्य, अंत में 22. इसे प्रदत्‍त उदाहरण से स्‍पष्‍ट/सिद्ध करते हैं-
(अ) 8 चरण चार तुकांत-
मौसम देता दंड, बदन की शामत आती।
बेमौसम बरसात, सदा ही आफत ढाती।। (रोला-1)
भोजन अरु व्यवहार, निभायें जितना हो दम।
चलें प्रकृति अनुसार, बचायें उतना मौसम।। (रोला-2)
(आ) विषम चरण में 11 मात्रा चरणांत में त्रिकल (21) अनिवार्य और सम चरण में 13 मात्रा आरंभ में त्रिकल अनिवार्य और अंत में गुरु अनिवार्य अंत 22 (22/211/112/1111)
(इ) मौसम देता दंड, बदन की शामत आती
बेमौसम बरसात, सदा ही आफत ढाती।। (रोला-1)
भोजन अरु व्यवहार, निभायें जितना हो दम।
चले प्रकृति अनुसार, बचाये उतना मौसम।(रोला-2)
(ई) विशेष- विद्वानों ने रोला के लिए शीघ्र याद रह सके संक्षेप में बताया है कि निम्‍न मात्रा संयोजन से रोला आसानी से बनाया जा सकता है-
(3) विषम चरण – 4, 4, 3 या 3, 3, 2, 3
(4) सम चरण - 3,2,4,4, या 3,2,3,3,2
(उ) उदाहरण से इसे सिद्ध करते हैं-
‘मौसम/देता/दंड’ (4,4,3), बदन/की/शामत/आती (3,2,4,4) ।
बेमौ/सम बर/सात (4,4,3), सदा/ ही/ आफत/ ढाती/ (3,2,4,4)।।
भोजन/अरु व्यव/हार (4,4,3), निभा/यें/ जितना/ हो दम (3,2,4,4)।
चले/ प्रकृति/ अनु/सार (3,3,2,3), बचा/ये/ उतना/ मौसम (3,2,4,4)।।
कुंडलिया छंद-
उपर्युक्त विधान को ध्‍यान में रख कर एक दोहा और दो रोला मिला कर कुंडलिया छंद इस प्रकार बनता है-
1. पहले एक दोहा
2. दोहे का चौथा चरण (सम) अगले रोला का हूबहू प्रथम विषम चरण बनेगा. आगे, रोला में शेष चरण कथ्‍य के अनुसार तुकांत बनें.
3. दूसरे रोले का अंतिम चरण(सम) दोहे के प्रथम चरण (विषम) के शब्‍द या शब्‍द समूह से तुकांत बने ताकि रोला सिद्ध हो सके.
4. कुंडलिया छंद का मुख्‍य भाग है इसका अंतिम चरण यानि दूसरे रोला का अंतिम चरण (सम), जिसमें दोहे के प्रथम (विषम) चरण का आरंभिक शब्‍द या उससे लगे हुए आगे के शब्‍द समूह का आना अनिवार्य है. उसी के अनुरूप ही रोला तुकांत बने.
5. पहला व दूसरा रोला समान तुकांत आवश्‍यक नहीं.जैसा विधान में उल्‍लेख है.
आइये उदाहरण से इसे स्‍पष्‍ट करें-
मौसम कोई भी रहे, क्‍या गरमी क्‍या ठंड
जो चलता विपरीत है, मौसम देता दंड।। (दोहा-1)
मौसम देता दंड, बदन की शामत आती
बेमौसम बरसात, सदा ही आफत ढाती।। (रोला-1)
भोजन अरु व्‍यवहार, निभायें जितना हो दम
चलें प्रकृति अनुसार, बचाये उतना मौसम।। (रोला-2)
कुंडलिया छंद को सिद्ध कर देखें- (1) मौसम से आरंभ और मौसम से ही कुंडलिया का अंत है. (2) दोहे का चौथा चरण मौसम देता दंड, से पहला रोला आरंभ हो रहा है. (3) ठंड, दंडआती, ढाती हो दम –मौसम. तीनों तुकांत हैं. (4) दोनों रोला छंद के तुकांत अलग-अलग हैं.
अंत में-
ध्यानाकर्षण – (1) कुंडलिया के अंत में दोहे के प्रथम सम चरण के आरंभ के शब्‍द या शब्‍द समूह से तात्‍पर्य है कि यहाँ ‘’मौसम’’, ‘’मौसम कोई’’, ‘’मौसम कोई भी’’, ‘’मौसम कोई भी रहे’’. शब्‍द या शब्‍द समूह को लिया जा सकता है. ‘’कोई’’, ‘’कोई भी’’, ‘’मौसम भी’’, ‘’मौसम रहे’’, ‘’कोई भी रहे’’ नहीं प्रयुक्‍त किया जा सकता. उसी के अनुरूप दूसरे रोले का तुकांत तय किया जाता है. (2) आरंभ या बीच में त्रिकल है तो साथ ही एक त्रिकल भी होना अनिवार्य है (3) संक्षेप में दोहा या रोला के सम या विषम चरण का संयोजन दो में से कोई एक सिद्ध होना चाहिए (4) संपूर्ण कुंडली में शिल्‍प की तरह कथ्‍य में भी भाव स्‍पष्‍ट व प्रबल होना चाहिए.मुक्‍तक लोक के आज के तरंगिनी छंद समारोह में सम्‍मानार्थ आयोजन में प्रदत्‍त छंद 'कुंडलिया' लिखने में आप समर्थ होंगे.
मुझे पूरा विश्‍वास है कि आप इसे समझ कर सुगमता से कुंडलिया छंद का सृजन कर पायेंगे और आज के समारोह को उत्‍कर्ष पर पहुँचायेंगे.


रकार मित्रो, शास्‍त्र में दो छंदों को मिला कर बने छंदों को उपगीत छंद की संज्ञा दी गई है. कुंडलिया छंद इसी क्रम का एक छंद है. किंतु दोनों छंदों के बिना या यह कहें कि एक दूसरे के बिना यह छंद संपूर्ण नहीं होता इसलिए यह उपगीत से थोड़ा भिन्‍न है. शिववंदना के साथ उपगीत छंद के एक उदाहरण से मैं अपना यह लेख सम्‍पूर्ण करता हूँ-
कर्पूरगौरं करुणावतारं,
संसारसारं भुजगेंद्रहारं। (इंद्रवज्रा छंद)
सदावसंतं हृदयारविंदे,
भवं भवानी सहितं नमामी।। (उपेंद्रवज्रा छंद)

-आकुल, एडमिन मुक्‍तक लोक
 तरंगिनी छंद समारोह दिनांक 24.08.2020 है' में 'हमें भी कुछ कहना है' में प्रकाशित आलेख 

12 अगस्त 2020

कृष्‍ण का गोकुल यशोदा नंद का नँदगाँव लिख दूँ


गीत-
(आधार छंद- माधव मालती- 2122 2122 2122 2122)
कृष्‍ण का गोकुल यशोदा नंद का नँदगाँव लिख दूँ.
कृष्‍णप्‍यारी राधिका वृषभानुजा का गाँव लिख दूँ.
नीति का ऐसा अनोखा ग्रंथ देखा ना अभी तक,
कूटनीतिक, राजनीतिक द्यूत का हर दाँव लिख दूँ.
कृष्‍ण का गोकुल.....
जसुम‍ती का भाग देखो, देवकी का त्‍याग देखो,
गोपियों का राग देखो, कृष्‍ण का अनुराग देखो,
फि‍र बना ब्रजधाम मथुराधीश का परि-त्‍याग देखो,
द्वारिका के नाथ का गोकुल न लौटा पाँव लिख दूँ.
कृष्‍ण का गोकुल..........
गिरिशिखर को भी धरण कर, कंस का भी संहरण कर,
यादवों को भी उऋण कर, रुक्मिणी को भी शरण कर,
कृष्‍ण राधा के अनोखे, प्रेम की रज छू वरण कर,
धन्‍य है चैतन्‍य की ब्रज-भूमि भी है ठाँव लिख दूँ.
कृष्‍ण का गोकुल.....
पांडवों का पक्ष कर के, पार्थ का सारथ्य कर के,
कर्ण को निर्बल किया था, इंद्र ने भी स्‍वाँग धर के,
पांडवों ने भी घटोत्‍कच, वीर अभिमन्‍यू को' खोया,
कौरवों की हार से इस युद्ध का पटदाँव* लिख दूँ.
कृष्‍ण का गोकुल..........
कृष्‍ण का संदेश गीता आज भी है सिद्ध जग में,
प्रेम का सानी नहीं स्‍वयमेव यह है सिद्ध जग में,
मोक्ष की हर कामना का ग्रंथ है 'गीता' अनोखा,
दे सभी को मार्गदर्शन ध्‍येय सच्‍ची छाँव लिख दूँ.
कृष्‍ण का गोकुल..........
*पटदाँव- पटाघात, पटाक्षेप

5 अगस्त 2020

है देश राममय

छंद- चवपैया
विधान- 30 मात्रा, 10,8,12 पर यति. आरंभ द्विकल अंत 2 गुरु से.

दिन आया अद्भुत, खुश है तिरहुत, संग अयोध्यावासी.
है देश राममय, चले अयोध्या, चहूँ दिशा के वासी.
जय श्री राम
ज्यों पौ फटते ही, सूरज ने भी, दीप्ति बिखेरी स्वर्णिम,
हैं सप्त‍पुरी खुश, रामलला जो, हैं घट-घट के वासी.

{भावार्थ- अद्भुत दिन आया है, तिरहुत (जनक की नगरी मिथिला) और आयोध्‍यावासी खुश हैं. देश आज राममय हो गया है, सभी दिशाओं से लोग अयोध्‍या पहुँच रहे हैं. सूरज ने भी जैसे पौ फटते ही अयोध्‍या पर स्‍वर्णिम आभा बिखेरी है. सप्‍तपुरियाँ खुश हैं, सभी के मन में (घट-घट) रामलला जो बसे हैं.}

4 अगस्त 2020

रक्षा बंधन मात्र एक व्‍यवहार नहीं

हो रक्षाबंधन मात्र एक, व्‍यवहार नहीं.
हो बहिन-भाईका ही अब यह, त्योहार नहीं.

है आज अलग इक सोच हमें, पैदा करनी,
पीटी होगी कल पर लकीर, हर बार नहीं.

इतिहास टटोलें भेजी रक्षा, की सौगातें,
अब बातें करें अनुग्रह की, अधिकार नहीं.

रक्षा सूत्र सभी पहनें मिल, कर हाथों में,
रक्षाबंधन मात्र एक व्‍यवहार नहीं
है आवश्यकता, इसका हो, परिहार नहीं.

बढ़े प्रदूषण सुविधायें हों, खत्‍म सभी अब,
हो हलचल प्रकृति विरुद्ध कहीं, स्‍वीकार नहीं.

वृक्षों को संरक्षित करने, सूत्र बाँधिए,
है नहीं असंभव पर दुश्कर, दुश्‍वार नहीं.

प्रहरी हों  घर में शांति दूत, बच्‍चों के अब,
हो नहीं कहीं भी बिन बुजुर्ग, परिवार नहीं.

हर स्वप्‍न स्वच्‍छ भारत का हो, पूरा आकुल',
श्रमदान करें अरु दान करें, व्यापार नहीं.

1 अगस्त 2020

तैलंगकुलम् का 'मई - जुलाई 2020' का अंक


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