7 मई 2018

कृष्‍ण सुदामा मिलन पर कुछ सवैये


छंद - मत्तगयंद सवैया (वार्णिक छंद )
शिल्प विधान- 7 भगण +22
मापनी - 211 211 211 211 211 211 211 22
(उक्त छंद में गुरु के स्थान पर दो लघु की छूट नहीं होती है, पर मात्रा पतन के प्रयोग की छूट ली है )
(कृष्‍ण और सुदामा की मित्रता पर लिखे सवैयों में से कुछ अवलोकनार्थ)
1
पीर हि पीर बसी मन में, कछु सूझत नाहि कहूँ कछु द्वारे.
नंदकुमार हमार सखा, बहु साथ रहे सँग साँझ सकारे.
जाय कहो नट नागर सौं हम विप्र सुदाम हुँ मित्र तुम्हारे.
बाँध कठोर कियो मन जाय कही मुख द्वारहुँ जाय के' ठारे
2
जौंहि कहौ कि सुदाम खड़े उत्तरि ले उठ बेगहिं किलकारे.
दौरि परे सुन मित्र सुदाम सुँ द्वारहि आकुल बाँह पसारे.
बोल सके न कछू उर भींच सुदाम भि बोल सकै कछु नारे
देख भये चकिताचित द्वार हुँ रानिजु रुक्मिनि कौन पधारे.
3
लेय चले कटि में रख हाथ सौं साँस भई जु सुगंध सुँ भारी.
इत्र फुलेल बसौ तन में मन देख अचंभित हैं नर नारी.
विप्र सुदाम सों’ मित्र न देख्यो कि द्वारिकानाथ भये बलिहारी,
धन्य भये सब देवधिदेव करी बरसा नभ सौं फुलझारी.
4
देखि चकाचुँधियाय सुदाम भई म‍ति कुंठित बोल न पाये.
कृष्ण प्रफुल्ल कि उत्तरि ज्‍यों लिपटे पग इत उत खोल न पाये.
जाय बिठाय सिंहासन पै पग धोय रहे दृग सौं लिपटाये.
देख भई पटरानि विभोरहिं भूल गयीं घर कौन हैं’ आये.

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