24 नवंबर 2012

देव जगे हैं

देव जगे हैं, देव दीपावली मनायें।
प्रेम, स्‍नेह, सौहार्द भाव से दीप जलायें।
घर-घर हो प्रकाश का अमित उजाला,
दें आशीष देव आयें घर, वंदनवार सजायें।।

फुलझड़ियाँ, अनार, पटाखों से जगमग हो।
दूर प्रदूषण हो, परिवार कभी ना, अलग थलग हो।
आज जरूरत है महती, ह‍म सब जागरूक हों,
महँगाई का दौर है, आवश्‍यकता लगभग हो।
सर्वोपरि है, प्रगति देश की, सब जुट जायें।।

प्रेम, स्‍नेह, सौहार्द भाव से दीप जलायें।
देव जगे हैं, देव दीपावली मनायें।।

जनसंख्‍या विस्‍फोट रुके, खुलें विकास की राहें।
ना मतभेद, न ही मनभेद हों, खुली हों सबकी बाहें।
नित्‍य मने उत्‍सव, त्‍योहार, दिवाली घर-घर,
वसुधैवकुटुम्‍बकम् के दर्शन हों, सभी सराहें।
नफ़रत की चौखट पर, सबको गले लगायें।।

प्रेम, स्‍नेह, सौहार्द भाव से दीप जलायें।
देव जगे हैं, देव दीपावली मनायें।।

18 नवंबर 2012

पुत्र की सफलता पर कुण्‍डलिया

            कुण्‍डलिया 
Peeyush Bhatt


तुमने बेटा कर दिया, सपना इक साकार।

बन कर डॉक्‍टर रूस से, लौटे ले उपहार।।

लौटे ले उपहार, पास की एमसिआई।

दीवाली इस बार, सुखद इस घर में आई।।

कह ‘आकुल’ कविराय, कृपा ऐसी की प्रभु ने।

मात-पिता की साख, बढ़ाई दुगनी तुमने।।


बेटे द्वारा रूस से डॉक्‍टर बन कर लौटने और प्रथम प्रयास में ही एम0सी0आई0 की FMGE की परीक्षा उत्‍तीर्ण कर अनमोल उपहार दिया है। इस अवसर भावोद्गार। 

13 नवंबर 2012

दीप जले हैं जब जब छँट गये अँधेरे



दीप जले हैं जब जब
छँट गये अँधेरे।

अवसर की चौखट पर
खुशियाँ सदा मनायें
बुझी हुई आशाओं के
नवदीप जलायें
हाथ धरे बैठे
ढहते हैं स्‍वर्ण घरोंदे
सौरभ के पदचिह्नों पर
जीवन महकायें

कदम बढे हैं जब जब
छँट गये अँधेरे।

कलघोषों के बीच
आहुति देते जायें
यज्ञ रहे प्रज्‍ज्‍वलित
सिद्ध हों सभी ॠचायें
पथभ्रष्‍टों की प्रगति के
प्रतिमान छलावे
कर्मक्षेत्र में जगती रहतीं
सभी दिशायें

अडिग रहे हैं जब जब
छँट गये अँधेरे

आतिशबाजी से मन के
मनुहार जताते जायें
घर घर देहरी आँगन
दीपाधार सजाते जायें
जहाँ अँधेरे भाग्‍य बुझाते
सूने रहते सपने
फुलझड़ियों से गलियों में
गुलज़ार बनाते जायें

हाथ मिले हैं जब जब
छँट गये अँधेरे।

मन मंजूषा में गोखरु के
मनके नहीं पिरोयें
गढ़ के कंगूरों में अब
संगीनें नहीं पिरोयें
विश्‍वासों के पतझड़ में
शिकवा क्‍या फूलों से
तुलसी माला में गुंजा के
मनके कभी पिरोयें

संकल्‍प लिये हैं जब जब
छँट गये अँधेरे।

12 नवंबर 2012

घर घर दीप जलाइये

-दोहे-

लाये घर दीपावली, सुख समृद्धि उजास।
कृपा करे लक्ष्‍मी सदा, भरा रहे आवास।।1।।

लक्ष्‍मी पूजन कीजिए, सुख वैभव घर आय।
घर आँगन दीपक धरें, अंधकार हर जाय।।2।।

रोशन हो घर आँगना, छत दहलीज मुँडेर।
घर घर दीप जलाइये, क्‍या अपने क्‍या गैर।।3।।

मुँह मीठा करवाइये, गले मिलो दिल खोल।
नये वसन धारण करो, यह उत्‍सव अनमोल।।4।।

फि‍र लौटे दीपावली, लेकर यह संदेश।
रहे प्रदूषण मुक्‍त तब, अपना भारत देश।।5।।

11 नवंबर 2012

धनतेरस


कुण्‍डलिया
योग बना इस बार है, धनतेरस का पर्व।
मना रहे सब संग हैं, शिक्षा दिवस सगर्व।।
शिक्षा दिवस सगर्व, अनोखा उत्‍सव आया।
श्रीगणेश के संग, शारदा लक्ष्‍मी लाया।।
कह ‘आकुल’ कविराय, यह मणिकांचन संयोग।
शिक्षा संग सुयोग, है धनतेरस का योग।।  

10 नवंबर 2012

भक्ति‍ में शक्ति‍

मन भज राम राम राम, सीता राम राम राम। छूटेगा मैली काया से, पहुँचेगा सुख धाम।।
राधे श्‍याम श्‍याम श्‍याम, सीता राम राम राम। मन भज राम राम राम, सीता राम राम राम।।
तन की चिन्‍ता, धन की चिन्‍ता, अब तक छोड़ सका ना। 
घर की चिन्‍ता, माया से तू, मन को मोड़ सका ना।
क्‍या पाया, क्‍या खोया, जाना, फि‍र भी ना पहचाना।
उलझा रहा परायों में, ना, अपनों का मन जाना।
अब तो मन उलझाले, ले ले, दो क्षण प्रभु का नाम।।
राधे श्‍याम श्‍याम श्‍याम, सीता राम राम राम। मन भज राम राम राम, सीता राम राम राम।।
काम, क्रोध, मद, लोभ, वासना, विषय, भोग सब पाये।
कुछ भी जाये साथ न तेरे, फि‍र क्‍यूँ मोह बढ़ाये।
मति बिगड़ी, तू बिगड़ा, बिगड़े अपने, हुए पराये।
जैसी करनी, वैसी भरनी, अब तू क्‍यों पछताये।
सुमिरन कर ले, अब तक भूला, ले ले हरि का नाम।।
राधे श्‍याम श्‍याम श्‍याम, सीता राम राम राम। मन भज राम राम राम, सीता राम राम राम।।
कल पर ही छोड़ा था सब कुछ, आज भी कल की पड़ी है।
कल कल करते गई उमरिया, मति भी अब बिगड़ी है।
कल की छाया आज दिखी है, साँस भी अब उखड़ी है।
जीवन का विश्‍वास डिगा है, कैसी विकट घड़ी है।
ऐसी राह दिखा मन प्रभु के, चरणों में हो शाम।।
राधे श्‍याम श्‍याम श्‍याम, सीता राम राम राम। मन भज राम राम राम, सीता राम राम राम।।



8 नवंबर 2012

मेले


मेले खुशियों का जहान होते हैं
ज़मीं पे जन्‍नत का गुमान होते हैं
मिलते हैं अजनबी भी मुहब्‍बत से यिहाँ
इसमें कोई भी नहीं बदज़बान होते हैं
नाज़नीनों की शोख अदाओं के जल्‍वे
गुलबाज़ों के क़सीदों के मीज़ान होते हैं
छू छू के निकलते हैं सभी एक दूजे से जैसे
पर्व पर तीरथ में गंगा स्‍नान होते है
तहज़ीब, नेक इरादे, अम्‍नोवफ़ा के देते हैं पैग़ाम
जो जिएँ दूसरों के लिए वही इनसान होते हैं
'आकुल' मनते रहें उर्स, पर्व, त्‍योहार, मेले सदा
ऐसे जश्‍ने अज़ीमों से देश महान् होते हैं


जन्‍नत- स्‍वर्ग, तहज़ीब- सभ्‍यता, संस्‍कृति,  नाज़नीन- सुंदरी,
गुलबाज़ों- सुंदरियों पर फूल फैंकने वाले (आशिक़),  मीज़ान- मस्जिद में अजान की जगह,  
क़सीदों- प्रशंसा में कहे गये शब्‍द, एक प्रकार की नज्‍़म, जश्‍ने अज़ीमों- बड़े पर्व या त्‍योहार