समांत- आदा
पदांत- है
कहो सबसे दोस्ती
करने का इरादा है,
बुझे चिराग
रोशन करेंगे ये वादा है.
मुद्दतों
से रहीं हैं दिन-रात की दूरियाँ,
दूर करने
को अब उफ़ुक भी आमादा है.
सुना है महलों
में कभी नींद नहीं आती,
सोते हैं
जिनका जीवन सीधा सादा है.
फ़लक़ की
क़िस्मत में, कारवाँ है तारों का
जमीं को तो
आफ़ताब भी कुछ ज़ियादा है,
दोस्ती
वही करे जिसे दोस्ती पर नाज़ हो,
दोस्ती एक
जज़्बा है एक मर्यादा है.
थाम ले हाथ
मौका मिलेगा न फिर ‘आकुल’,
दोस्ती कर
सब से ये वक़्त का तगादा है.
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