13 नवंबर 2012

दीप जले हैं जब जब छँट गये अँधेरे



दीप जले हैं जब जब
छँट गये अँधेरे।

अवसर की चौखट पर
खुशियाँ सदा मनायें
बुझी हुई आशाओं के
नवदीप जलायें
हाथ धरे बैठे
ढहते हैं स्‍वर्ण घरोंदे
सौरभ के पदचिह्नों पर
जीवन महकायें

कदम बढे हैं जब जब
छँट गये अँधेरे।

कलघोषों के बीच
आहुति देते जायें
यज्ञ रहे प्रज्‍ज्‍वलित
सिद्ध हों सभी ॠचायें
पथभ्रष्‍टों की प्रगति के
प्रतिमान छलावे
कर्मक्षेत्र में जगती रहतीं
सभी दिशायें

अडिग रहे हैं जब जब
छँट गये अँधेरे

आतिशबाजी से मन के
मनुहार जताते जायें
घर घर देहरी आँगन
दीपाधार सजाते जायें
जहाँ अँधेरे भाग्‍य बुझाते
सूने रहते सपने
फुलझड़ियों से गलियों में
गुलज़ार बनाते जायें

हाथ मिले हैं जब जब
छँट गये अँधेरे।

मन मंजूषा में गोखरु के
मनके नहीं पिरोयें
गढ़ के कंगूरों में अब
संगीनें नहीं पिरोयें
विश्‍वासों के पतझड़ में
शिकवा क्‍या फूलों से
तुलसी माला में गुंजा के
मनके कभी पिरोयें

संकल्‍प लिये हैं जब जब
छँट गये अँधेरे।

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