5 सितंबर 2014

शिक्षक दिवस पर रचना एवं हाल ही प्रकाशित शब्‍द प्रवाह वार्षिक काव्‍य विशेषांक 2014

शिक्षक दिवस पर मेरी कविता पढ़ें-




हाल ही में प्रकाशित श्री संदीप सृजन सम्‍पादित 'शब्‍द प्रवाह' वार्षिक काव्‍य विशेषांक 2014 को पढ़ें और उन्‍हें अपने विचार अवश्‍य प्रेषित करें-

3 सितंबर 2014

सबमें समाया है (नवगीत)

दिन ब दिन इक डर 
सब में समाया है।

किस मुँह से 
संस्‍कारों की बात करें
अपने ही जब 
अपनों पर घात करें
बढ़ती महँगाई, 
हर तरफ प्रदूषण
कौनसा व्रत, मौन, 
कैसा पर्यूषण
कैसी व्‍यवस्‍था 
सुविधाओं की बात
नियम कायदे कानून 
किताबी बात
अंगद पाँव 
अनिष्‍ट ने जमाया है।

शहरों में मशीनी 
जीवन हो गये 
गाँवों में ज़मीनी 
जीवन खो गये
पाणिग्रहण, यज्ञोपवीत 
जैसे जेल।
गुड्डे व गुड़ियाओं के 
जैसे खेल
सम्‍वेदनायें खोईं 
बढ़े स्‍वार्थ
भ्रम में ही रहेगा 
हर एक पार्थ
इस चलन से किसने 
क्‍या कमाया है

दिन ब दिन इक डर 
सब में समाया है।

1 सितंबर 2014

किससे क्‍या शिकवा (नवगीत)

किससे क्‍या है शिकवा
किसको क्‍या शाबाशी

नहीं कम हुए बढ़ते
दुष्‍कर्मों को पढ़ते
बेटे को माँ बापों पर
अहसाँ को गढ़ते
नेता तल्‍ख सवालों पर
बस हँसते-बचते
देख रहे गरीब-अमीर
की खाई बढ़ते
कितनी मन्‍नत माँगे
घूमें काबा काशी

फि‍र जाग्रति का
बिगुल बजेगा जाने कौन
फि‍र उन्‍नति का
सूर्य उगेगा जाने कौनछा
छाएगी कब घटा
घनेरी बरसेगा सुख,
फि‍र संस्‍कृति की
हवा बहेगी जाने कौन
स्‍वप्‍न नहीं यह
अभिलषा के कुसुमाकाशी।

छोड़ेंगे यदि 
संस्‍कार होंगे बेहतर कब
पालेंगे यदि 
बहिष्‍कार होगें कमतर कब
रिश्‍तों की गरमाहट को
लग गई नज़र कब
भूलेंगे यदि 
परिष्‍कार होंगे बरतर कब
कैसे बदले हवा
फूल कब हों पालाशी