28 जनवरी 2012

ओह ऋतुराज

Spring Season



ओह ऋतुराज न करना संशय आना ही है
तुमको दूषि‍त प्रकृति‍ पर जय पाना ही है

धरा प्रदूषण का हालाहल पीकर मौन
जीवन को संरक्षण तब देगा कौन

ग्रीष्म शरद बरखा ने अपना कहर जो ढाया
देख रहे अब शीत शि‍शि‍र का रूप पराया

तुम भी कहीं न सोच बैठे हो साथ न दोगे
कैसे तुम तब वसुन्धबरा का मान करोगे

जगत् जननी के पतझड़ आँचल को लहराओ
वसन्तदूत भेजा है हमने फौरन आओ

दो हमको संदेश पुन: जीवन का भाई
भेजो पवन सुमन सौरभ की जीवनदायी

हम संघर्ष करेंगे हर पल ध्यानन रखेंगे
उपवन कानन प्रकृति‍ धरा की शान रखेंगे

स्वच्छ धरा नि‍र्मल जल सुरभि‍त पवन बहेगी
वसुधा वासन्ती आँचल को पहन खि‍लेगी।




(जीवन की गूँज से)

26 जनवरी 2012

सूरज तुम चलते रहना

दि‍न पर दि‍न हो प्रचण्ड हे मार्तण्ड तुम धरा को
न देना घाव गँभीर न ऐसा कोई प्रभाव ही देना
बस सिंहावलोकन करते रहना
सूरज तुम चलते रहना


यह धरा सहि‍ष्णु है कभी नहीं जतलाएगी
कष्ट सहेगी दृष्टि कभी भी नहीं मि‍लाएगी
न लेना अर्थ अन्यथा सृष्टि सौंदर्य भाव ही देना
बस सिंहावलोकन करते रहना
सूरज तुम चलते रहना।
युग बीते, इस धरा ने कभी अपना धैर्य न खोया
हुए प्रलय इस धरा ने कभी भी बीज बैर न बोया
प्रकृति‍ पर कर रहम धरा को सहज स्वभाव ही देना
बस सिंहावलोकन करते रहना
सूरज तुम चलते रहना।

प्रति‍रोध वि‍रोध होंगे,प्रकृति‍ कुछ ऐसी है मानव की
स्व ओर अहं की लड़ाई में बन जाती है दानव सी
घि‍रे समस्याओं से जूझें सम्हलें ऐसा दाँव ही देना
बस सिंहावलोकन करते रहना
सूरज तुम चलते रहना।
प्रकृति‍, उदधि‍ के रौद्ररूप से वि‍चलि‍त है जन जीवन
फि‍र भी जीने को उत्सुक है हर संभव जन जीवन
अर्घ्य दे रहा हूँ ‘आकुल’ तुम नेह अलाव ही देना
बस सिंहावलोकन करते रहना
सूरज तुम चलते रहना।

कुछ इस तरह मनायें छब्‍बीस जनवरी इस बार


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सुधाकर अमृतवर्षा दि‍वाकर रश्मि ‍मणि‍ बि‍खेरे इस बार।
स्वाति‍ गि‍रे धरा कुमकुम का शृंगार करे इस बार।
क्षि‍ति‍ज पर फहराये वि‍जयी वि‍श्व ति‍रंगा इस बार।
कुछ इस तरह मनायें छब्बीस जनवरी इस बार।
दो देश करते हैं जैसे वि‍कास के लि‍ए कोई करार।।

ग़रीबों के हक़ की बातें करें।
इन्सानि‍यत के दुश्मनों का करें बहि‍ष्कार।
बच्चों की सेहत पर दें ध्यान नारी न हो कहीं शर्मसार।
बुजुर्गों का आदर हो और घर घर में पनपें संस्कार।
कुछ इस तरह सुधरे नेताओं की छवि‍ इस बार।
दो देश करते हों जैसे प्रत्यर्प्रण करार।।

राम और कृष्ण की भूमि‍ महाशक्ति बने
देश का नाम हो जगत् में सि‍रमौर।
दूध की नदि‍याँ बहें फि‍र धन सम्पदा वैभव बि‍खरा हो हर ओर।
गाँधी के रामराज्य की साँझ हो,नेहरू के पंचशील का हो भोर।
कुछ इस तरह बनायें सरकार इस बार।
दो देश करते हों जैसे नि‍रस्त्रीकरण करार।।

न बनें सरहदें,न टूटें कोई राज्य न बँटें ज़मीनें।
न दि‍लों में नफरत पले न आँखें हों ग़मग़ीनें।
इंसाफ़ का परचम फहरे न रि‍श्तों पे उठें संगीनें।
कुछ इस तरह अमन चैन का हो राज हो इस बार।
दो देश करते हों जैसे आव्रजन करार।।

कुछ इस तरह मानायें छब्बीर जनवरी इस बार।
दो देश करते हैं जेसे वि‍कास के लि‍ए कोई करार।।

(जीवन की गूँज से)

15 जनवरी 2012

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1 जनवरी 2012

गुलदस्ता तारीखों का ले कर आया दो हजार बारह

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कड़वी मीठी यादों संग वि‍दा दो हजार ग्‍यारह।
ढेर उमंगों को ले कर आया दो हजार बारह।।

छेड़ी मुहि‍म है सब ने खुशहाल हो जन जन जन
भ्रष्टाचार से मुक्ति मि‍ले जगे अब जन जन जन
धरती को हर प्रदूषण से परे करे जन जन जन
वन सघन की खाति‍र वृक्ष लगाये जन जन जन

आरक्षण का सि‍र दर्द दे गया दो हजार ग्यारह
उम्मीदों का सूरज ले कर आया दो हजार बारह

हाथ दो हैं काम करें दुगनी गति‍ से हर दम
पाँव दो हैं मंजि‍ल चढें मंथर गति‍ से हर दम
दो आँख हैं चौकन्ने रहें व्यति‍ गति‍ से हर दम
कान दो हैं सुने पर करें अपनी म‍‍ति‍ से हर दम

वक्‍त ने कब बख्शा चला गया दो हजार ग्यारह
नया वक्त‍ फि‍र ले कर आया दो हजार बारह

न दें मौके न जाने वक्त का मि‍जाज कब बदले
ख़ुदा न जाने कि‍स मर्ज का इलाज कब बदले
नयी फ़ज़र में न जाने कि‍स का ताज कब बदले
बेशक़ीमती साल की तारीखों का अंदाज कब बदले


कई तारीखों को तारीख़ बना गया दो हजार ग्यारह
गु़लदस्ता तारीखों का ले कर आया दो हजार बारह