ओह ऋतुराज न करना संशय आना ही है
तुमको दूषित प्रकृति पर जय पाना ही है
धरा प्रदूषण का हालाहल पीकर मौन
जीवन को संरक्षण तब देगा कौन
ग्रीष्म शरद बरखा ने अपना कहर जो ढाया
देख रहे अब शीत शिशिर का रूप पराया
तुम भी कहीं न सोच बैठे हो साथ न दोगे
कैसे तुम तब वसुन्धबरा का मान करोगे
जगत् जननी के पतझड़ आँचल को लहराओ
वसन्तदूत भेजा है हमने फौरन आओ
दो हमको संदेश पुन: जीवन का भाई
भेजो पवन सुमन सौरभ की जीवनदायी
हम संघर्ष करेंगे हर पल ध्यानन रखेंगे
उपवन कानन प्रकृति धरा की शान रखेंगे
स्वच्छ धरा निर्मल जल सुरभित पवन बहेगी
वसुधा वासन्ती आँचल को पहन खिलेगी।
तुमको दूषित प्रकृति पर जय पाना ही है
धरा प्रदूषण का हालाहल पीकर मौन
जीवन को संरक्षण तब देगा कौन
ग्रीष्म शरद बरखा ने अपना कहर जो ढाया
देख रहे अब शीत शिशिर का रूप पराया
तुम भी कहीं न सोच बैठे हो साथ न दोगे
कैसे तुम तब वसुन्धबरा का मान करोगे
जगत् जननी के पतझड़ आँचल को लहराओ
वसन्तदूत भेजा है हमने फौरन आओ
दो हमको संदेश पुन: जीवन का भाई
भेजो पवन सुमन सौरभ की जीवनदायी
हम संघर्ष करेंगे हर पल ध्यानन रखेंगे
उपवन कानन प्रकृति धरा की शान रखेंगे
स्वच्छ धरा निर्मल जल सुरभित पवन बहेगी
वसुधा वासन्ती आँचल को पहन खिलेगी।
(जीवन की गूँज से)
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