दिन पर दिन हो प्रचण्ड हे मार्तण्ड तुम धरा को
न देना घाव गँभीर न ऐसा कोई प्रभाव ही देना
बस सिंहावलोकन करते रहना
सूरज तुम चलते रहना
न देना घाव गँभीर न ऐसा कोई प्रभाव ही देना
बस सिंहावलोकन करते रहना
सूरज तुम चलते रहना
यह धरा सहिष्णु है कभी नहीं जतलाएगी
कष्ट सहेगी दृष्टि कभी भी नहीं मिलाएगी
न लेना अर्थ अन्यथा सृष्टि सौंदर्य भाव ही देना
बस सिंहावलोकन करते रहना
सूरज तुम चलते रहना।
युग बीते, इस धरा ने कभी अपना धैर्य न खोयाकष्ट सहेगी दृष्टि कभी भी नहीं मिलाएगी
न लेना अर्थ अन्यथा सृष्टि सौंदर्य भाव ही देना
बस सिंहावलोकन करते रहना
सूरज तुम चलते रहना।
हुए प्रलय इस धरा ने कभी भी बीज बैर न बोया
प्रकृति पर कर रहम धरा को सहज स्वभाव ही देना
बस सिंहावलोकन करते रहना
सूरज तुम चलते रहना।
प्रतिरोध विरोध होंगे,प्रकृति कुछ ऐसी है मानव की
स्व ओर अहं की लड़ाई में बन जाती है दानव सी
घिरे समस्याओं से जूझें सम्हलें ऐसा दाँव ही देना
बस सिंहावलोकन करते रहना
सूरज तुम चलते रहना।
प्रकृति, उदधि के रौद्ररूप से विचलित है जन जीवन
फिर भी जीने को उत्सुक है हर संभव जन जीवन
अर्घ्य दे रहा हूँ ‘आकुल’ तुम नेह अलाव ही देना
बस सिंहावलोकन करते रहना
सूरज तुम चलते रहना।
फिर भी जीने को उत्सुक है हर संभव जन जीवन
अर्घ्य दे रहा हूँ ‘आकुल’ तुम नेह अलाव ही देना
बस सिंहावलोकन करते रहना
सूरज तुम चलते रहना।
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