बहराइच। 1 जून 2011 को बहराइच उ0प्र0 को एक भव्य समारोह में कोटा के जनवादी कवि और साहित्यकार गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ को पं0 बृज बहादुर पांडेय स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया। 11 बजे आरंभ हुए समारोह में सर्वप्रथम डॉ0 अशोक ‘गुलशन’ ने सम्मानित किये जाने वाले और समरोह में हाजिर हुए सभी साहित्यकारों का परिचय पढ़ कर सुनाया। उन्होंने साहित्यकारों के जून 2010 से मई 2011 की अवधि में प्रकाशित उनकी पुस्तक और उनकी साहित्यिक यात्रा के बारे में विस्तार से बताया। तुरंत बाद ही मंच की स्थापना हुई, जिसमें उ0 प्र0 से बाहर से पधारे साहित्यकार कोटा राजस्थान के श्री ‘आकुल’ को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया। अध्यक्ष पद उन्नाव से पधारे वयोवृद्ध साहित्यंकार श्री विष्णु दयाल सिंह चौहान ‘विष्णु’ ने ग्रहण किया। ‘आकुल’ को उनकी साहित्यिक यात्रा और पुस्तक ‘जीवन की गूँज’ पर यह सम्मान दिया गया।
कार्यक्रम का आरम्भ ‘आकुल’ द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से किया गया। इसके पश्चात् वीणापाणि सरस्वती और स्व0 बृज बहादुर पाण्डेय की तस्वीर पर माल्यार्पण किया गया। मंचासीन सभी साहित्यकारों को समारोह आयोजक और स्व0 शारदा देवी एवं बृज बहादुर पाण्डेय के पुत्र डॉ0 अशोक पाण्डेय गुलशन ने माला पहना कर स्वागत किया। कार्यक्रम का आरंभ समारोह में पधारे सभी मीडियाकर्मियों को मुख्य अतिथि श्री आकुल द्वारा शॉल, प्रशस्तिपत्र, स्मृतिचिह्न एवं पुस्तकें भेंट कर सम्मानित किया गया। साहित्यकारो में सर्वप्रथम श्री आकुल को समारोह के अध्यक्ष श्री विष्णु दयाल सिंह चौहान ‘विष्णु’ एवं डॉ0 गुलशन द्वारा शाल उढ़ा कर किया गया। उन्हें श्री गुलशन ने प्रशस्तिपत्र, स्मृति चिह्न और पुस्तकें दे कर सम्मानित किया। लखनऊ से पधारी श्रीमती शोभा दीक्षित ‘भावना’ को डॉ0 गुलशन की चिकित्सक पत्नी ने स्व0 शारदा देवी स्मृति सम्मान दिया। बाद में अध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार श्री ‘विष्णु’ और इस सम्मान के लिए चयनित सभी साहित्यकारों को मुख्य अतिथि श्री आकुल और डॉ0 गुलशन ने सम्मानित किया। अपने संक्षिप्त भाषण में श्री आकुल ने कहा कि मेरी अब तक की साहित्य यात्रा में यह सम्मान इसलिए और भी स्मरणीय बन गया है कि एक तो यह मंच से लिया जाने वाला पहला सम्मान है, मणिकांचन संयोग यह कि इसे श्री गुलशन की अति उदारता कहूँगा कि उन्होंने मुझे मुख्य अतिथि के रूप में यहाँ मंच दिया। मैंने हमेशा एकांत में सृजन किया है। कभी सम्मान की अभिलाषा नहीं की। ‘बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख’ उक्ति आज चरितार्थ हो गई। मैं यह सम्मान पाकर अभिभूत हो गया। डॉ0 गुलशन की इस अथक यात्रा और पुण्य कार्य से मुझे मेरा एक दोहा याद आ रहा है ‘आकुल नियरे राखिये जननी जनक सदैव, ज्यों तुलसी को पेड़ हो घर में श्री सुख देव’ श्री आकुल ने डॉ0 गुलशन के परिवार के इस पुनीत कार्य को अक्षुण्ण और अनवरत करते रहने के लिए शुभकामनायें दी और कहा कि साहित्य समाज का दर्पण होता है, और दर्पण को आदर्श भी कहा जाता है। अपने माता पिता के आदर्शों पर चलते हुए 15 वर्ष पूर्ण कर उन्होंने इस यज्ञ को अखण्ड करते रहने का जो संकल्प लिया है वह अभिभूत कर देने वाला है। साहित्यकारों का सम्मान आज एक महती आवश्यकता है। साहित्यकार सम्मान के बिना अधूरा है, वैसे ही जैसे स्त्री मातृत्व के बिना अधूरी है। मातृत्व सुख पा कर स्त्री समाज में स्थापित होती है और सम्मान पा कर रचनाकार साहित्य जगत् में स्थापित होता है। उसका साहित्य स्थापित होता है। कार्यक्रम के प्रथम सत्र में साहित्यकारों में जिन्हें सम्मानित किया गया वे थे वाजितपुर उन्नाव के श्री विष्णु दयाल सिंह चौहान 'विष्णु' को उनकी पुस्तक 'वन-पथ पर राम' काव्य पर, लखनऊ के श्री हरी प्रकाश ‘हरि’ को उनकी पुस्तक जयघोष पर, उदयपुर से डॉ0 श्याम मनोहर व्यास, ललितपुर से पं0 रामसेवक पाठक ‘हरिकिंकर’, बिजनौर से डॉ0 हितेश कुमार शर्मा, लखनऊ से ही श्री राजेन्द्र कृष्ण श्रीवास्तव को उनकी पुस्तक सरहज महिमा और डॉ0 शैलेन्द्र शुक्ल, रायबरेली से इन्द्र बहादुर सिंह ‘इन्द्रेश’ को अवधी भाषा की 'बस यहै म्रड़इया है हमारि' परऔर उन्नाव से श्री चंद्र किशोर सिंह को उनके महाकाव्य परिताप (उत्तरार्थ रामकथा) थे। मीडियाकर्मियों में नेपाल से पधारी सबा खान, ई-टीवी (यूपी) से सैयद मश्हूद अली कादरी, सहारा समय से सैयद कल्बे अब्बास, स्टार न्यूज से परवेज रिज्वी, डी डी न्यूज से जयचंद सोनी, हिन्दुस्तान से अजय त्रिपाठी, दैनिक जागरण से विनोद त्रिपाठी, अमर उजाला से अतुल अवस्थी, महुआ चैनल से अभिषेक शर्मा, राष्ट्रीय सहारा से गोपाल शर्मा, लाइव इंडिया से विनोद श्रीवास्तव और इंडिया इनसाइट से जावेद जाफरी और मो0 कासिफ़। यह समारोह कजरा इण्टरनेशनल फिल्म्स समिति गोण्डा, साहित्य एवं सांस्कृतिक अकादमी बहराइच, शिक्षा साहित्य कला विकास समिति, श्रावस्ती , अवध भारती समिति बाराबंकी व अन्य सहयोगी संस्थानों के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया।
पहले सत्र के समापन के बाद भोजन लिया गया तत्पश्चात् दूसरा सत्र कवि सम्मे़लन के रूप में आरंभ हुआ। कवि सम्मेलन की अध्यक्षता राधाकृष्ण शुक्ल‘पथिक’ ने की और अन्य साहित्यकार जिन्होंने कवि सम्मेकन में काव्य पाठ किया वे थे लक्ष्मीकांत त्रिपाठी ‘मृदुल’, हरी सिंह ‘हरि’, शिवकुमार सिंह रैगवार, आदित्य भान सिंह, संतोष ‘तन्मंय, गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’, आर एस वर्मा ‘जलज’ , पी के प्रचण्ड, कल्याण गोंडवी, बालकवि शुभांग शर्मा, प्रमोद कुमार मिश्र, श्यामजी तिवारी, डॉ0 डी एस0 राज और जे0 यदुवंशी । स्थानीय कवियों ने अवधी भाषा और हिन्दी में काव्य पाठ किया। डॉ0 गुलशन ने भी अपने ‘बाबूजी’ पर बहुत ही भावभीनी कविता पढ़ कर हृदय द्रवित कर दिया। शायद ही कोई श्रोता हो जिसकी आँखें नहीं छलछला उठीं हों। अंत में डॉ0 गुलशन ने सभी पधारे अतिथियों और साहित्यकारों को धन्यवाद दिया। शाम सात बजे समारोह के समापन के बाद डॉ0 गुलशन ने आकुल के साथ कुछ समय बिताया और बहराइच और अपनी साहित्यिक यात्रा के बारे में बताया। आकुल को उन्होंने बताया कि वे अब तक लगभग 251 पुरस्कार, सम्मान और मानद सम्मानोपाधियाँ ले चुके हैं। हाल ही में वे अखिल भारतीय साहित्य संगम उदयपुर से साहित्य कल्पतरु और एक अन्य महादेवी वर्मा सम्मान से सम्मानित हुए हैं। वे अनेकों साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्थाओं के पदाधिकारी और सदस्य हैं। फिल्म राइटर्स एसोसिएशन मुंबई के भी सदस्य हैं। उनकी पत्नी चिकित्सक हैं और ‘आख्या’ क्लिनिक चलाती हैं। वे स्वयं आयुर्वेदाचार्य है।
बहराइच नेपाल बोर्डर पर उत्तर प्रदेश का सीमा जनपद है। बहराइच से नेपाल सीमा लगभग 65 किलोमीटर के अंतर पर है। लगभग 35किलोमीटर की दूरी पर प्रख्या।त दर्शनीय व बौद्ध धर्म तीर्थ श्रावस्ती है, जहाँ भगवान बुद्ध ने 25 वर्षाकाल व्यतीत किये थे। डॉ0 गुलशन ने बताया कि बहराइच का नामकरण त्रिदेवों में एक भगवान् ब्रह्माजी के आगमन के कारण ब्रह्माइच से अप्रभ्रंश हो कर पड़ा है। 1 जून की रात को बहराइच से श्री आकुल को श्री गुलशन ने रेल में बैठा कर अनेकों स्मृतियों के साथ विदा किया।
कार्यक्रम का आरम्भ ‘आकुल’ द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से किया गया। इसके पश्चात् वीणापाणि सरस्वती और स्व0 बृज बहादुर पाण्डेय की तस्वीर पर माल्यार्पण किया गया। मंचासीन सभी साहित्यकारों को समारोह आयोजक और स्व0 शारदा देवी एवं बृज बहादुर पाण्डेय के पुत्र डॉ0 अशोक पाण्डेय गुलशन ने माला पहना कर स्वागत किया। कार्यक्रम का आरंभ समारोह में पधारे सभी मीडियाकर्मियों को मुख्य अतिथि श्री आकुल द्वारा शॉल, प्रशस्तिपत्र, स्मृतिचिह्न एवं पुस्तकें भेंट कर सम्मानित किया गया। साहित्यकारो में सर्वप्रथम श्री आकुल को समारोह के अध्यक्ष श्री विष्णु दयाल सिंह चौहान ‘विष्णु’ एवं डॉ0 गुलशन द्वारा शाल उढ़ा कर किया गया। उन्हें श्री गुलशन ने प्रशस्तिपत्र, स्मृति चिह्न और पुस्तकें दे कर सम्मानित किया। लखनऊ से पधारी श्रीमती शोभा दीक्षित ‘भावना’ को डॉ0 गुलशन की चिकित्सक पत्नी ने स्व0 शारदा देवी स्मृति सम्मान दिया। बाद में अध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार श्री ‘विष्णु’ और इस सम्मान के लिए चयनित सभी साहित्यकारों को मुख्य अतिथि श्री आकुल और डॉ0 गुलशन ने सम्मानित किया। अपने संक्षिप्त भाषण में श्री आकुल ने कहा कि मेरी अब तक की साहित्य यात्रा में यह सम्मान इसलिए और भी स्मरणीय बन गया है कि एक तो यह मंच से लिया जाने वाला पहला सम्मान है, मणिकांचन संयोग यह कि इसे श्री गुलशन की अति उदारता कहूँगा कि उन्होंने मुझे मुख्य अतिथि के रूप में यहाँ मंच दिया। मैंने हमेशा एकांत में सृजन किया है। कभी सम्मान की अभिलाषा नहीं की। ‘बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख’ उक्ति आज चरितार्थ हो गई। मैं यह सम्मान पाकर अभिभूत हो गया। डॉ0 गुलशन की इस अथक यात्रा और पुण्य कार्य से मुझे मेरा एक दोहा याद आ रहा है ‘आकुल नियरे राखिये जननी जनक सदैव, ज्यों तुलसी को पेड़ हो घर में श्री सुख देव’ श्री आकुल ने डॉ0 गुलशन के परिवार के इस पुनीत कार्य को अक्षुण्ण और अनवरत करते रहने के लिए शुभकामनायें दी और कहा कि साहित्य समाज का दर्पण होता है, और दर्पण को आदर्श भी कहा जाता है। अपने माता पिता के आदर्शों पर चलते हुए 15 वर्ष पूर्ण कर उन्होंने इस यज्ञ को अखण्ड करते रहने का जो संकल्प लिया है वह अभिभूत कर देने वाला है। साहित्यकारों का सम्मान आज एक महती आवश्यकता है। साहित्यकार सम्मान के बिना अधूरा है, वैसे ही जैसे स्त्री मातृत्व के बिना अधूरी है। मातृत्व सुख पा कर स्त्री समाज में स्थापित होती है और सम्मान पा कर रचनाकार साहित्य जगत् में स्थापित होता है। उसका साहित्य स्थापित होता है। कार्यक्रम के प्रथम सत्र में साहित्यकारों में जिन्हें सम्मानित किया गया वे थे वाजितपुर उन्नाव के श्री विष्णु दयाल सिंह चौहान 'विष्णु' को उनकी पुस्तक 'वन-पथ पर राम' काव्य पर, लखनऊ के श्री हरी प्रकाश ‘हरि’ को उनकी पुस्तक जयघोष पर, उदयपुर से डॉ0 श्याम मनोहर व्यास, ललितपुर से पं0 रामसेवक पाठक ‘हरिकिंकर’, बिजनौर से डॉ0 हितेश कुमार शर्मा, लखनऊ से ही श्री राजेन्द्र कृष्ण श्रीवास्तव को उनकी पुस्तक सरहज महिमा और डॉ0 शैलेन्द्र शुक्ल, रायबरेली से इन्द्र बहादुर सिंह ‘इन्द्रेश’ को अवधी भाषा की 'बस यहै म्रड़इया है हमारि' परऔर उन्नाव से श्री चंद्र किशोर सिंह को उनके महाकाव्य परिताप (उत्तरार्थ रामकथा) थे। मीडियाकर्मियों में नेपाल से पधारी सबा खान, ई-टीवी (यूपी) से सैयद मश्हूद अली कादरी, सहारा समय से सैयद कल्बे अब्बास, स्टार न्यूज से परवेज रिज्वी, डी डी न्यूज से जयचंद सोनी, हिन्दुस्तान से अजय त्रिपाठी, दैनिक जागरण से विनोद त्रिपाठी, अमर उजाला से अतुल अवस्थी, महुआ चैनल से अभिषेक शर्मा, राष्ट्रीय सहारा से गोपाल शर्मा, लाइव इंडिया से विनोद श्रीवास्तव और इंडिया इनसाइट से जावेद जाफरी और मो0 कासिफ़। यह समारोह कजरा इण्टरनेशनल फिल्म्स समिति गोण्डा, साहित्य एवं सांस्कृतिक अकादमी बहराइच, शिक्षा साहित्य कला विकास समिति, श्रावस्ती , अवध भारती समिति बाराबंकी व अन्य सहयोगी संस्थानों के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया।
पहले सत्र के समापन के बाद भोजन लिया गया तत्पश्चात् दूसरा सत्र कवि सम्मे़लन के रूप में आरंभ हुआ। कवि सम्मेलन की अध्यक्षता राधाकृष्ण शुक्ल‘पथिक’ ने की और अन्य साहित्यकार जिन्होंने कवि सम्मेकन में काव्य पाठ किया वे थे लक्ष्मीकांत त्रिपाठी ‘मृदुल’, हरी सिंह ‘हरि’, शिवकुमार सिंह रैगवार, आदित्य भान सिंह, संतोष ‘तन्मंय, गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’, आर एस वर्मा ‘जलज’ , पी के प्रचण्ड, कल्याण गोंडवी, बालकवि शुभांग शर्मा, प्रमोद कुमार मिश्र, श्यामजी तिवारी, डॉ0 डी एस0 राज और जे0 यदुवंशी । स्थानीय कवियों ने अवधी भाषा और हिन्दी में काव्य पाठ किया। डॉ0 गुलशन ने भी अपने ‘बाबूजी’ पर बहुत ही भावभीनी कविता पढ़ कर हृदय द्रवित कर दिया। शायद ही कोई श्रोता हो जिसकी आँखें नहीं छलछला उठीं हों। अंत में डॉ0 गुलशन ने सभी पधारे अतिथियों और साहित्यकारों को धन्यवाद दिया। शाम सात बजे समारोह के समापन के बाद डॉ0 गुलशन ने आकुल के साथ कुछ समय बिताया और बहराइच और अपनी साहित्यिक यात्रा के बारे में बताया। आकुल को उन्होंने बताया कि वे अब तक लगभग 251 पुरस्कार, सम्मान और मानद सम्मानोपाधियाँ ले चुके हैं। हाल ही में वे अखिल भारतीय साहित्य संगम उदयपुर से साहित्य कल्पतरु और एक अन्य महादेवी वर्मा सम्मान से सम्मानित हुए हैं। वे अनेकों साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्थाओं के पदाधिकारी और सदस्य हैं। फिल्म राइटर्स एसोसिएशन मुंबई के भी सदस्य हैं। उनकी पत्नी चिकित्सक हैं और ‘आख्या’ क्लिनिक चलाती हैं। वे स्वयं आयुर्वेदाचार्य है।
बहराइच नेपाल बोर्डर पर उत्तर प्रदेश का सीमा जनपद है। बहराइच से नेपाल सीमा लगभग 65 किलोमीटर के अंतर पर है। लगभग 35किलोमीटर की दूरी पर प्रख्या।त दर्शनीय व बौद्ध धर्म तीर्थ श्रावस्ती है, जहाँ भगवान बुद्ध ने 25 वर्षाकाल व्यतीत किये थे। डॉ0 गुलशन ने बताया कि बहराइच का नामकरण त्रिदेवों में एक भगवान् ब्रह्माजी के आगमन के कारण ब्रह्माइच से अप्रभ्रंश हो कर पड़ा है। 1 जून की रात को बहराइच से श्री आकुल को श्री गुलशन ने रेल में बैठा कर अनेकों स्मृतियों के साथ विदा किया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें