छन्द आवृत्तिका (सार्द्ध चौपई)
पदांत-
0 समांत- आए
जीवन क्षणभंगुर है जाने, कब खो जाए।
जाना है सबको जो भी इस, जग में आए ।
पानी का बुदबुद है, तय है उसका खोना,
जब तब देखा प्रकृति अनोखे, खेल दिखाए।
कभी घरोंदों को लहरों से ढहते देखा,
कभी दामिनी जीवन को पल, भर में ढाए।
जीता है इनसान घिसट कर, कभी-कभी तो,
कभी-कभी इक ठोकर जीवन, को बिखराए,
करे लिहाज न मौत उम्र का, ‘आकुल’ कहता,
मोह न रखना मौत सीख सब, को समझाए।
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