घर वृन्दावन हो जाए, तन चन्दन, मन कस्तूरी ।
हे मृगनयनी तुझसे ही, घर आँगन बनें कपूरी ।
छननन छननन नूपुर भी बोलें जैसे चिंखूरी।
घर वृन्दावन हो जाए, तन चन्दन मन कस्तूरी।
वेणी रजनीगन्धा की, महकी है सेज सुहाई।
पैरों में प्रीत महावर, हाथों में मेहँदी भाई।
कटि में पहनी करधनी, खनकाती घर में आई।
सौभाग्य माँग में चहके, बिन्दी ललाट की नूरी।
घर वृन्दावन हो जाए, तन चन्दन मन कस्तूरी ।
साँसों की लय पर दहके, कुन्दन सा तन बाहों में।
जीवन बगिया में महके, मन सुन्दरवन राहों में।
छम-छम करती तू घूमे, घर-आँगन अब छाहों में।
घर की अब होगी पूरी, मेरी हर आस अधूरी।
घर वृन्दावन हो जाए, तन चन्दन मन कस्तूरी ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें