मापनी- 2122 212
पदांत- नहीं
समांत- अना
सर्प सा चलना नहीं
दर्प तू रखना नहीं.
चार दिन की जिंदगी,
कर्म से भगना नहीं.
जो करे नि:स्वार्थ कर,
फ़र्क तू करना नहीं.
देश पर कुर्बान हो,
शर्म से मरना नहीं.
सभ्यता, संस्कृति तथा
धर्म से कटना नहीं.
मातृ भू को छोड़ कर,
स्वर्ग में रहना नहीं.
ढाई’ आखर प्रेम के,
मर्म
की तुलना नहीं.
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