21 मई 2024

श्रीराम जय जय

हुआ राम मय देश हमारा ।
गूँजेगा अब घर-घर सारा ।
बोलो हाथ उठा कर सारे, राघव राजा राम ।
जय श्रीराम जय जय श्रीराम ।। 

सुबह से ही सजी हुई है,
दीपमालिका दीपाधार ।
रंग बिरंगी लटक रही,
टिमटिम प्रकाश की वंदनवार ।
दीप चंद्रिका चमकेगी भू पर होते ही शाम ।
जय श्रीराम जय जय श्रीराम ।।

राम लला की अगवानी में,
दूर-दूर से आए लोग ।
अपनी श्रद्धा से सब लाए ,
आज लगेगा छप्‍पन भोग ।
सौभाग्‍य कि देख सकेंगे सब मुखचन्‍द्र सलोने राम ।
जय श्रीराम जय जय श्रीराम ।। 

सजी अयोध्‍या नगरी सारी,
सरयू नदी हुई बलिहारी ।
पथ-पथ सजी हुई रंगोली,
खेलेंगे फूलों से होली ।
हुआ आगमन राम लला का आज अयोध्‍या धाम।
जय श्रीराम जय जय श्रीराम ।।

16 मई 2024

सोच लीजे.....

 कविता

सोच लीजे ..... 
बस्तियों की सड़कें जब पैबंद वाली हों,
नालियाँ कीचड़ भरी सड़ाँध वाली हों,
नदियाँ जहाँ पर बाँध वाली हों,
सोच लीजे जीवन सफर की क्या कहें तुमसे....
लाइलाज अस्पतालों में इलाज,
बन गये कबाड़खाने भी गैराज,
खुद के पैरों कुल्हाड़ी मारी ज्यों पा के स्वराज,
सोच लीजे जीवन सफर की क्या कहें तुमसे....
स्वच्छ भारत में सफाई की दशा शोचनीय,
सुलभ शौचालयों की दशा अशोभनीय,
खुले आम मदिरालयों की दशा क्षेाभनीय,
सोच लीजे जीवन सफर की क्या कहें तुमसे.....
बैंकों का विलय कर आफत दे दी,
नोटबंदी की गंदी सियासत दे दी,
घोटाले करने की रियायत दे दी,
सोच लीजे जीवन सफर की क्या कहें तुमसे.....
हर जगह भाँग घुली है कहाँ जायें,
विकल्प ही नहीं छोड़ा कहाँ जायें,
गाँधीवादी बनें या वामपंथ अपनायें,
सोच लीजे जीवन सफर की क्या कहें तुमसे.....
रक्षक भक्षक हो रहे और आरक्षण की सौगातें,
तक्षक बनी डस रही हैं जात-पाँत की बातें,
नई नई समस्याओं से कैसे मिलेगी निजातें,
सोच लीजे जीवन सफर की क्या कहें तुमसे.....
दुष्कर्म, तीन तलाक, आरक्षण, घोटाले,
सफाईकर्मियों की पौ बारह, बैठे ठाले,
तकनीकी प्रदूषण से बस ईश्वर बचाले,
सोच लीजे जीवन सफर की क्या कहें तुमसे.....
आक्रोशित युवापीढ़ी को समझना आसान नहीं है,
स्थाई को पेंशन नहीं, निष्पक्ष कोई सम्मान नहीं है,
संविदाकर्मियों को समय पर भुगतान नहीं है,
सोच लीजे जीवन सफर की क्या कहें तुमसे.....
सोच लीजे..........

15 मई 2024

बरखा का संदेशा लेकर, बदली आई है

गीतिका
पदांत- है
समांत- आई

बरखा का संदेशा लेकर, बदली आई है।
संग पवन भी ठंडी-ठंडी, चली सुहाई है।1।

अंजुरि में भर लूँ अमरित घट, छलक रहा उससे,
ऋतु ने दे दी है आहट करनी अगुवाई है।2।

हर ऋतु की अपनी सुंदरता, प्रकृति भरे वैभव,
जिसका जो भी दृष्टिकोण हो, वैसी पाई है।3।

धरती होगी तृप्त खेत खलिहान रिझायेंगे,
दादुर बोले, खुश हो कर कोयलिया गाई है।4।

रश्मिरथी किरणों से इंद्रधनुष में रंग भरे,
जलधर ने हर बार बरस कर प्यास बुझाई है।5।

14 मई 2024

कोरोना काल में लिखी कुछ हिंग्लिश रचनाएँ

(1) दोहे

घर में रह कर कीजिए, कम से कम अब टॉक ।
मॉस्‍क लगा कर घूमिए, मुँह को करिए ब्‍लॉक ।1।

डाउन रखिए क्रोध को, इच्‍छाओं को लॉक ।
सुबह-सुबह नित कीजिए, छत पर मोर्निंग वॉक ।2।

सामाजिक दूरी रखें, जब तक डाउन लॉक ।
स्‍वस्‍थ रखें तन हाथ को, धोएँ राउण्‍ड क्‍लॉक ।3।

स्‍वास्‍थ्‍य-सफाई कर्मियों, पुलिस, प्रशासन, डॉक ।
यदि लक्षण देखें कभी,  करना इनको नॉक ।4।

नाचें गायें सुनें गीत सं-गीत, गेम टिक-टॉक ।
हो शास्‍त्रीय संगीत या, पश्चिम का हो रॉक ।5।

खूब योजना बनायें,  मन को कर अनलॉक ।
आगे बढ़ें न जब तलक, कोरोना का शॉक ।6।

संस्‍कारित कैसे करें, है क्‍या ऐसा ऐप 
मिटे वायरस बग करे,  कम जनरेशन गेप ।7।

एरर वा’यरस से भरा, है मानव मस्तिष्‍क
इसका एक निदान है, फार्मेटिँग हो डिस्‍क ।8।


(2) छंद- कुण्‍डलिनी

वाय-फाय से जुड़ गये, लेंड लाइन को भूल ।
मोबाइल का क्रेज है, गए रेडियो भूल ।।
गए रेडियो भूल, आज टीवी कम्‍प्‍यूटर
घर घर अब हैं कार,  बंद हो गए  स्‍कूटर ।।1।।

सभी युवाओं मे बना, प्रमुख एप टिक-टॉक
नहीं मधुर संगीत अब,  बजते डीजे रॉक ।।
बजते डीजे रॉक, डांस करते एक्‍सट्रा भी।
अब कैसेट रिकॉर्ड, बंद हैं आर्केस्‍ट्रा भी ।।2।।


(3) मूल छंद- मुक्‍तामणि 

मेहँदी, म्हावर भूल कर, करते हैं सब डाई 
हाई टैक से हुए युवा, अब तो  हाई-फाई ।।1।।
मॉम डैड का है चलन माँ बाबूजी भूले।
घर-घर माटी के नहीं, मिलें गैस के चूल्‍हे ।।2।।

12 मई 2024

देखा माँ को भाई, धी हमजोली में

गीतिका 
छंद- कुंडल
पदांत- में
समांत- ओली

देखा माँ को भाई, धी हमजोली में।
ईश्‍वर दिखता उसकी, सूरत भोली में।

माँ का नेह कभी कम, ना देखा चाहे,
रहती महलों में  हो, या वह खोली में।

रहती बसी हुई हर, दम यादें उसकी,
जैसे खुशबू मा‍थे, चंदन रोली में।

प्रेम  लुटाती आई है, वह जीवन भर,
मधुरस बिखरे उसकी, मीठी बोली में।

पर्वोत्‍सव दीवाली, होली पर बनती,
सदा दिखाई देती, है रंगोली में।

माँ तो बेटे-बेटी, दोनों की होती,
कहाँ भेद करते हम, आँख-मिचोली में

उऋण रहा हूँ उऋण रहूँगा जीवनभर,
देना जनम प्रभू उस, की ही झोली में।

क्‍या रक्‍खा है यारो, हँसी ठिठोली में

 गीतिका
छंद- कुंडल
विधान- प्रति चरण मात्रा 22, 12, 10 पर यति अंत दो गुरु वाचिक
पदांत- में
समांत- ओली

क्‍या रक्‍खा है यारो, हँसी ठिठोली में।
बातें हों जब भी हों, मीठी बोली में।1।

अपना लागे उससे ही, मिलना खुल कर,
ऐसे ही गुण होते हैं, हमजोली में।2।

संस्‍कारी हों तो घर, ऊर्जित होना तय,
जैसे रंग सुहाते, हैं रंगोली में।3।

मानो या ना मानो, धर्म एकता को,
देखा है बल मिलता, केवल टोली में।4।

नींव पड़े रिश्‍तों से, ही देखो ‘आकुल’,
ईद दिवाली हो या क्रिसमस होली में।5।

9 मई 2024

गरमी का मौसम सँग में रस की बहार लाया

गीतिका
पदांत- लाया
समांत- आर

गरमी का मौसम सँग में रस की बहार लाया।
कूलर, एसी, पंखों की ठंडी बयार लाया।

फल फूलों से लदे पेड़, उपवन कानन सारे,
फूलों कलियों के गजरों का सिँगार लाया।

आइसक्रीम, कुल्‍फी, खिरनी, फालसे, फालूदा,
खरबूजा, तरबूज, ईख रस भी बजार लाया।

रौनक तरह तरह के आमों, की बाजारों में,
लँगड़ा, केसर, हापुस तोतापरी उतार लाया।

पर सबसे पहले है गरमी में ठंडा पानी,
नहीं हैसियत फिर भी ‘आकुल’ फ्रिज उधार लाया।   

8 मई 2024

चल अब साँझ हुई जीवन की

 गीतिका
छंद- सार
पदांत- रे
समांत- अड़ी

चल अब साँझ हुई जीवन की अब है रात बड़ी रे।
ढूँढ सका ना अब तक मानव, संजीवनी जड़ी रे।

घर-सम्‍बन्‍धी, यार-मीत क्‍या, गाँव-शहर-खेड़ों की,
मिल कर विदा करेंगे आती सबकी अंत घड़ी रे।

करम किए खोटे-सच्चे मति, वैसी ही थी पाई,
त्‍याग मोह-माया-लालच ये दु:खों की तिकड़ी रे।  

प्रायश्चित ही करना है तो, कर तू प्रथम समर्पण,
पी कर बूँद चार गंगा की, छोड़ यहीं पगड़ी रे।

ना जाए धन-विद्या-वैभव, जाना खाली हाथों,
भज तू हरि को ये बदलेगा, गुदड़ी जो उधड़ी रे।

मिलना और बिछड़ना जग में रीत यही दुनिया की,
जीते जी का है यह खेला, छोटी सी जिंदड़ी रे।

रखा अमोघ अभेद्य अस्‍त्र है, अपने पाले ‘आकुल’,
करे नियंत्रित युगों-युगों से, उससे प्रकृति खड़ी रे।

 

7 मई 2024

जुगत लगाने में माहिर हों

मुक्तक
साम दाम अरु दण्ड भेद नेताओं के हथकण्डे हैं।
खा कर जाने क्या-क्या पेट दिखाई देते हण्डे हैं,
जुगत लगाने में माहिर हों दुनिया ऐसे लोगों की,
तीर्थ और धामों में भी मिल जाते ऐसे पण्डे हैं।  

6 मई 2024

दुख में करे जग जो सुखी प्रभु को करे यदि याद

मुक्‍तक 1
छंद- मणिमाल (वार्णिक)
सूत्र- स ज ज भ र स औ  
११२ १२१ १२१ २११ २१२ ११२ १
सुगम मापनी- ११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१

दुख में करे जग जो सुखी प्रभु को करे यदि याद।
सुख में सभी हटते र‍हे मन में भरे अवसाद।
कब स्‍वर्ग भी दुख से बचा इतिहास ‘आकुल’ देख,
कर याद तू मत मोल ले कलिकाल में प्रतिवाद

मुक्‍तक 2
मत्‍तगयंद सवैया मुक्‍तक
211/ 211/ 211/ 211/ 211/ 211/ 211/ 22

राम लला ढब देख रहे चहुँ माहिर नाटक में सब नेता।  
जो न मिले बरसों फिर रोज मिले घर जा कर के सब नेता।
लोक लुभावन बात करें चिकनी चुपड़ी चलते हर चालें,
बंद हुए मत भाग्‍य खुलें अब देख रहे सपने सब नेता।

1 मई 2024

बच्‍चों में संस्‍कार डालना बहुत जरूरी मित्र

गीतिका
छंद- सरसी
विधान- 16, 11 (चौपाई +दोहे का सम चरण ) अंत 21
पदांत- मित्र
समांत- ऊरी

बच्चों में संस्कार डालना, बहुत जरूरी मित्र।
रह जाए ना कोई शिक्षा, कहीं अधूरी मित्र ।

आत्मसुरक्षा के गुर सीखें, नित्य करें व्यायाम,
खेलों से भी उनकी रखना, कभी न दूरी मित्र।

आधारशिला है धर्म उन्हें, करवाना संज्ञान,
आहार-विहार सदा देता, ऊर्जा पूरी मित्र।

भृति, पूँजी, साहस और भवन, यही आय के स्रोत,
काम सही हो चाहे करनी, पड़े मजूरी मित्र।

'आकुल' देना सीख बन सकें, सुसंस्कृत व सम्भ्रान्त,
बिगड़े न व्यवहार हो कैसी, भी मजबूरी मित्र।
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