छंद-
पारिजात
मापनी-
2122 1212 22
पदांत-
है क्यों
समांत-
अर
आग
सा जल रहा शहर है क्यों .
बाग का जल रहा शजर है क्यों.
अतिक्रमण
खत्म हो लगें पौधे,
आदमी
को नहीं असर है क्यों
अब
नहीं राज गंदगी का हो
हर
तरफ पल रहा ज़हर है क्यों.
बात
हो यदि विकास की जब भी
भ्रष्टता
पर सदा नजर है क्यों
सोचता
है सदा यही ‘आकुल’
आदमी
को नहीं सबर है क्यों
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