छंद-
विध्वंकमाला
मापनी-
221 221 221 22
पदांत-
देना
समांत-
अक्ति
सद्बुद्धि देना, हमें शक्ति
देना,
भजते रहें हम तुम्हें भक्ति
देना.
तेरी शरण आज लेना हमें भी,
तुम में हमेशा ही’ आसक्ति
देना.
हों ना विमुख और नास्तिक
नहीं हो,
ऐसा न कोई हमें व्यक्ति
देना.
देखूँ सभी को प्रकृति की है’
रचना,
स्नेहिल भरी आत्म अभिव्यक्ति
देना.
सुंदर जगत् है असुंदर न हो
बस
ऐसी अटल आज अविभक्ति देना.
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