हिंदी दिवस के उपलक्ष्‍य पर 12 सितम्‍बर को 'इंद्रधनुष बन जाऊँ मैं' के विमोचन समारोह में 'आकुल' का वक्‍तव्‍य

यह पुस्‍तक काव्‍य की गीतिका विधा पर सम्‍पूर्ण छंदों पर आधारित है। सौ छंदों पर सौ गीतिकाएँ। गीतिका ग़ज़ल जैसी होती  है पर ग़ज़ल नहीं होती। ग़ज़ल का विधान अलग है और गीतिका का अलग। हालाँकि ग़ज़ल की सभी बह्र हिंदी संस्‍कृत छंदों की मापनियाँ ही हैं, पर ग़ज़ल के लिए इसके अतिरिक्‍त बह्र, बह्र का नाम, रदीफ़, क़ाफ़ि‍या, रुक्‍न, शेर, मिसरे, मक्‍ता, मत्‍तला, नुक्‍ता आदि का ज्ञान बहुत जरूरी है और सबसे जरूरी है कि आप उर्दू लिपि यानि अरबी फारसी लिपि को लिखना पढ़ना जानते हैं या नहीं, क्‍योंकि इससे आपकी बोलने का लहज़ा बदलता है। यही ग़ज़ल लिखने के लिए सबसे बड़ी आवश्‍यकता है, कयेंकि ग़ज़ल नवीस अपनी रचनाएँ उर्दू लिपि में लिख कर लाते हैं गोष्ठियों और मंचों पर अपनी रचना पढ़ते हैं।

पर यहाँ छंद पर थोड़ा प्रकाश डालूँगा, थोड़ी अपनी बात कहूँगा और दो दोहे कह कर वाणी को विराम दूँगा। यहाँ बहुत से विद्वज्‍जन हैं जिनका प्रवचन अहम् है, हिंदी दिवस पर उनसे आज की दशा दिशा पर व्‍याख्‍यान होंगे।  

छंद हमारे काव्‍य का आधार हैं। प्रलय के बाद वेद पुराण उपनिषद काल से चली आ रही हमारी साहित्‍य परंपरा की नींव माँ शारदे की कलम से ही रखी गई जब यह उत्‍तरदायित्‍व उन्‍हें त्रिदेवों में एक सृष्टि के निर्माता सर्वप्रथम ब्रह्मा ने मानस पुत्रों की उत्‍पत्ति की और सरस्‍वती को वाणी भरने के लिए उन्‍हें उत्‍तरदायित्‍व  सौंपा, इसलिए माँ शारदे को वागीशा, वाग्‍देवी कहा जाता है।

वेदों के छ: अंग हैं। शिक्षा, व्‍याकरण, छंद, कल्‍प, निरुक्‍त और ज्योतिष। छंद को वेद पुरुष का पाद कहा गया है। पाद अर्थात् पाँव, पैर, पद, चरण। विचार करिए यदि पैर न हों तो जिस प्रकार व्‍यक्ति अपंग हो जाता है, पंगु कहा जाता है। अगर रचना में छंद का आधार नहीं है तो आप समझ सकते हैं कि काव्‍य की क्‍या दशा हो जाती है। जिस प्रकार निश्‍चित दूरी पर पैर रखते हुए हम बिना सोचे विचारे आगे बढ़ते जाते हैं उसी प्रकार छंद का काव्‍य में प्रयोग करें तो बड़ी सहजता से साहित्‍य को जैसा चाहें रचा जा सकता है। पर ऐसा हो नहीं रहा। देखिए हमारे साहित्‍य का पतन। वेद पुराण, उपनिषद्, गीता, महाभारत रामचरित मानस से विशाल ग्रंथों से चलता हुआ हमारा साहित्‍य आज हाइकु तक पहुँच गया। लोग हाइकू के संग्रह बना कर पुस्‍तकें छपवा लेते हैं और साहित्‍यकार बन जाते हैं। विडम्‍बना यह नहीं है, विडम्‍बना यह है कि हमने प्रख्‍यात गज़लकार, फिल्‍मी गीतकार, निर्माता निर्देशक गुलजार की त्रिवेणी को स्‍वीकार नहीं किया और हाइकु को अपना लिया। त्रिवेणी हाइकू की तरह थी गंगा यमुना और अंत:सलिला सरस्‍वती का संगम। छंदों के ज्ञान अर्जन करने से अच्‍छा आज के अधिकतर कवियों ने छंदमुक्‍तक रचनाओं को लिखना श्रेयस्‍कर समझा।  

छंद हमारे चारों ओर बिखरे हुए हैं, पर हम उन्‍हें पहचानते नहीं। गाते हैं गुगनाते हैं, कंठस्‍थ तक हैं हमें वे रचनाएँ जो छंदों में रची हुई हैं, पर हम पहचानते नहीं। कारण हैं हमें साहित्‍य का शास्‍त्रीय ज्ञान नहीं। या ज्ञान प्राप्‍त नहीं करना चाहते। लेखनी उठा ली और कवि बन गए, लेखक बन गए।

हमारी स्थिति उस बच्‍चे की तरह है जो बचपन से पाठशाला जाने के पहले तक सब कुछ जान लेता है, अपने घर के संस्‍कारों में रम जाता है, घर, समाज, रिश्‍ते-नाते, देश दुनिया को जानने लगता है। बस उसे शिक्षा का शास्‍त्रीय ज्ञान नहीं होता। इसलिए उसे पाठशाला में प्रवेश कराया जाता है और वह पूर्णशिक्षित हो कर सेवार्थ प्रस्‍थान करता है।

शास्‍त्रीय ज्ञान, यानि किसी भी विधा या विद्या का शास्‍त्रोक्‍त निर्वहन।

जिस प्रकार शास्‍त्रीय संगीत में 10 थाटों से सैंकड़ों राग-रागनियाँ बनी हैं, उसी प्रकार काव्‍य में भी 8 गणों से हजारों छंदों का निर्माण हुआ है। मैंने कहा न, छंद हमारे चारों ओर बिखरे हुए हैं पर हम उन्‍हें पहचानते नहीं। हमारे चारों ओर गीत, भजन, आरती, आह्वान, मंत्र, आहुतियाँ, मंगलाचरण, श्‍लोक, देशगान, प्रार्थना आदि अनेक विधाओं की रचनाएँ हमें याद हैं, सुनते हैं, अच्‍छी लगती हैं, कई कंठस्‍थ हैं। पर हम जानते नहीं कि ये किस छंद में रचित हैं-

1.  माँ शारदे की वंदना-  छंद शार्दूल विक्रीडित पर- या कुन्‍देन्‍दुतुषार हार धवला। या शुभ्रवस्‍त्रावृता। यावीणावरदंड मंडितकरा, या श्‍वेतपद्मासना। याब्रह्माच्‍युत शंकर प्रभृत‍िभिर्देव: सदावन्‍दिता, सा मां पातु सरस्‍वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा।।   2. शिव स्तिुति – कर्पूरगौरं करुणावतारं भुजगेंद्रहारं संसार सारं ( छंद इंद्रवज्रा छंद) सदावसन्‍तं हृदयारविन्‍दे, भवं भवानी, सहितं नमामी।। (उपेंद्रवज्रा) 3. इंद्रवज्रा छंद पर अन्‍य वंदना-  हे कृष्‍ण गोविंद हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेवा। 4. इंद्रवज्रा छंद पर आधारित ही फिल्‍मी गीत है- जो प्‍यार तूने मुझको दिया था वो प्‍यार तेरा मैं लौटा रहा हूँ। 5. वंशस्‍थ छंद पर आधारित मंगलाचरण देखें- सशंखचक्रं सकिरीटकुंडलम सपीतवस्‍त्रं सरसीरूहेक्षणं । सहारवक्षस्‍थकौस्‍तुभश्रियं नमामि विष्‍णुं शिरसाचतुर्भुजं।। 6. दूसरा मंगला चरण देखे-  छंद मंदाक्रांतापर - शांताकारं भुजग शयनं पद्मनाभं सुरेशं, विश्‍वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभांगम. लक्ष्‍मीकांतं कमलनयनं योगभिर्ध्‍यानगम्‍यं, वंदे विष्‍णु भवभयहरं सर्वालोकैकनाथं।। 7. कालिदास कृत मेघदूत भी सम्‍पूर्ण मंदाक्रांत छंद पर आधारित है।

8. एक प्रख्‍यात जप और ध्‍यान के लिए हम मन ही मन अष्‍टाक्षर मंत्र का जाप करते हैं ‘श्री कृष्‍णशरणं मम।‘ इसमें आठ वर्ण है इसमें। आठ वर्ण वाला यह मंत्र अनुष्‍टुप् छंद है। श्रीकृष्‍णवचनामृतं श्रीमद्भागवत गीता सम्‍पूर्ण अनुष्‍टुप छंद पर आधारित है। गीता में 700 श्‍लोक हैं, सभी श्‍लोक अनुष्‍टुप् छंद पर आधारित हैं-  उदाहरण स्‍वरूप गीता के सबसे ज्‍यादा प्रचारित और प्रसारित 10 श्‍लोकों में दो श्‍लोक का उदाहरण देता हूँ बताता हूँ किस तरह यह अनुष्‍टुप छंद में बने हैं- यदायदाहिधर्मस्य (8 वर्ण) ग्लानिर्भवतिभारत (8) । अभ्युत्थानमधर्मस्य (8) तदात्मानंसृजाम्यहं (8) ॥ 2. परित्राणायसाधूनां (8) विनाशायचदुष्‍कृतां (8) । धर्मसंस्‍थापनार्थाय (8)  संभवामियुगेयुगे (8) ॥ 3. कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते (8) मा फलेषुकदाचन (8)

4. जीवन बीमा निगम के शुभंकर पर लिखा आदर्श वाक्‍य ‘योगक्षेम वहाम्‍यहं (8 वर्ण) गीता से ही लिया गया है। 5. विश्‍व कल्‍याण के लिए शांति पाठ का मंत्र - सर्वे भवन्‍तु सुखिन: (8 वर्ण) सर्वे संतु निरामया (8) सर्वे भद्राणि पश्‍यंतु (8) मा कश्चित् दु:ख भाग्‍भवेत् (8)

9. प्रख्‍यात  यमुनाष्‍टक ‘नमामि यमुनां महं सकल सिंद्ध हेतुं मुदा ... छंद पृथ्‍वी और संगीत में यमन कल्‍याण राग में  भारत रत्‍न लता जी ने गाया है। 10. जन गण मन अधिकनायक जय है.... छंद सार पर 11. हे प्रभो आनन्‍द दाता ज्ञान हमको दीजिए .... छंद- गीतिका 12. तुम गगन के चन्‍द्रमा हो मैं धरा की धूल हूँ..... छंद- गीतिका13. जीना यहाँ मरना यहाँ..... छंद- हरिगीतिका 14. बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ.... छंद- सुशीला15. ठुमक चलत रामचन्‍द्र बाजत पैंझनिया- छंद- उडियाना  

अंत में आकुल ने चार दोहे सुना कर श्रोताओं को मंत्रमुग्‍ध कर दिया-  


घर आए जब भी अतिथि देना यह सुख चार । 
आसन, जल, वाणी मधुर, यथा शक्ति आहार ।1।

पूँजी दे बस ब्‍याज ही, भाड़ा भवन दिलाय। 
कर्माश्रयभृति ही मिले, साहस भाग्‍य जगाय ।2।

खोटा सिक्‍का भी चले, चले फटा भी नोट । 
चकाचौंध में अर्थ की छिप जाते हैं खोट ।3।

खुर ऊँचा कर हो खड़ा, वह घोड़ा बलहीन । 
उसका जीवन न्‍यून है, जो बैठे बिन जीन ।4।

समारोह में उन्‍हें हिंदी सेवी अलंकरण सम्‍मान से सम्‍मानित किया गया। 

  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें