आज कुंडलिया छंद दिवस की शुभकामनाएँँ। आज कुछ छंद इस दिवस को समर्पित
1
धीरज कम इंसान में, रहे
उग्र दिन रैन
कम रखते वाणी मधुर, खोते
सब का चैन ।।
खोते सब का चैन, पड़ें
उलझन में खुद भी ।
लेते झगड़े मोल, और खोते
सुधबुध भी ।।
कह ‘आकुल’ कविराय, पंक में पलता नीरज ।
सबका मिले निदान, रखे
मानव जो धीरज ।।
2
मात पिता गुरु राष्ट्र ही, जीवन का आधार ।
पथ प्रशस्त करते यही, है इनसे संसार ।।
है इनसे संसार, सफलता चरण चूमती ।
मिलता मान अपार, विजयश्री संग घूमती ।।
इन्हें मान आदर्श, कार्य जो करते हैं शुरु ।
डिगते नहीं कदापि, धन्य वे मात-पिता-गुरु ।।
3
कर्मनिष्ठ का कर्म से, होता है उत्थान ।
अकर्मण्य के भाग में, सोता अभ्युत्थान ।।
सोता अभ्युत्थान, नहीं मंजिल को छूते,
भाग्य और दुर्भाग्य, कर्म के ही बलबूते ।।
होता है सम्मान, यथा घर में वरिष्ठ को ।
दिलवाता सम्मान, कर्म ही कर्मनिष्ठ का ।।
4
धर्म-कर्म बिन जीव का,
जीवन पतन समान ।
जैसे गुरु बिन ज्ञान का, मोल मिले कम मान ।।
मोल मिले कम मान, चोर चाहे दे सोना ।
चोरी का लो माल, चैन घर का है खोना ।।
आँचल बिन अब शीश, आँख भी
आज शर्म बिन।
शायद जीवन मूल्य, खो गए धर्म-कर्म बिन ।।
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