परिचय पुस्‍तक ‘इंद्रधनुष बन जाऊँ मैं’ का और अपनी बात

यह पुस्‍तक काव्‍य की गीतिका विधा पर सम्‍पूर्ण छंदों पर आधारित है। सौ छंदों पर सौ गीतिकाएँ। गीतिका ग़ज़ल जैसी होती  है पर ग़ज़ल नहीं होती। ग़ज़ल का विधान अलग है और गीतिका का अलग। हालाँकि ग़ज़ल की सभी बह्र हिंदी संस्‍कृत छंदों की मापनियाँ ही हैं, पर ग़ज़ल के लिए इसके अतिरिक्‍त बह्र, बह्र का नाम, रदीफ़, क़ाफ़ि‍या, रुक्‍न, शेर, मिसरे, मक्‍ता, मत्‍तला, नुक्‍ता आदि का ज्ञान बहुत जरूरी है और सबसे जरूरी है कि आप उर्दू लिपि यानि अरबी फारसी लिपि को लिखना पढ़ना जानते हैं या नहीं, क्‍योंकि इससे आपकी बोलने का लहज़ा बदलता है। यही ग़ज़ल लिखने के लिए सबसे बड़ी आवश्‍यकता है, कयेंकि ग़ज़ल नवीस अपनी रचनाएँ उर्दू लिपि में लिख कर लाते हैं गोष्ठियों और मंचों पर अपनी रचना पढ़ते हैं। 

पर यहाँ छंद पर थोड़ा प्रकाश डालूँगा, थोड़ी अपनी बात कहूँगा और दो दोहे कह कर वाणी को विराम दूँगा। यहाँ बहुत से विद्वज्‍जन हैं जिनका प्रवचन अहम् है, हिंदी दिवस पर उनसे आज की दशा दिशा पर व्‍याख्‍यान होंगे।  

छंद हमारे काव्‍य का आधार हैं। प्रलय के बाद वेद पुराण उपनिषद काल से चली आ रही हमारी साहित्‍य परंपरा की नींव माँ शारदे की कलम से ही रखी गई जब यह उत्‍तरदायित्‍व उन्‍हें त्रिदेवों में एक सृष्टि के निर्माता सर्वप्रथम ब्रह्मा ने मानस पुत्रों की उत्‍पत्ति की और सरस्‍वती को वाणी भरने के लिए उन्‍हें उत्‍तरदायित्‍व  सौंपा, इसलिए माँ शारदे को वागीशा, वाग्‍देवी कहा जाता है।

वेदों के छ: अंग हैं। शिक्षा, व्‍याकरण, छंद, कल्‍प, निरुक्‍त और ज्योतिष। छंद को वेद पुरुष का पाद कहा गया है। पाद अर्थात् पाँव, पैर, पद, चरण। विचार करिए यदि पैर न हों तो जिस प्रकार व्‍यक्ति अपंग हो जाता है, पंगु कहा जाता है। अगर रचना में छंद का आधार नहीं है तो आप समझ सकते हैं कि काव्‍य की क्‍या दशा हो जाती है। जिस प्रकार निश्‍चित दूरी पर पैर रखते हुए हम बिना सोचे विचारे आगे बढ़ते जाते हैं उसी प्रकार छंद का काव्‍य में प्रयोग करें तो बड़ी सहजता से साहित्‍य को जैसा चाहें रचा जा सकता है। पर ऐसा हो नहीं रहा। देखिए हमारे साहित्‍य का पतन। वेद पुराण, उपनिषद्, गीता, महाभारत रामचरित मानस से विशाल ग्रंथों से चलता हुआ हमारा साहित्‍य आज हाइकु तक पहुँच गया। गद्य लघुकथा तक पहुँच गया। लोग हाइकू और लघुकथाओं के संग्रह बना कर पुस्‍तकें छपवा लेते हैं और साहित्‍यकार बन जाते हैं। विडम्‍बना यह नहीं है, विडम्‍बना यह है कि हमने प्रख्‍यात गज़लकार, फिल्‍मी गीतकार, निर्माता निर्देशक गुलजार की त्रिवेणी को स्‍वीकार नहीं किया और हाइकु को अपना लिया। त्रिवेणी हाइकू की तरह थी गंगा यमुना और अंत:सलिला सरस्‍वती का संगम। छंदों के ज्ञान अर्जन करने से अच्‍छा आज के अधिकतर कवियों ने छंदमुक्‍तक रचनाओं को लिखना श्रेयस्‍कर समझा।  

छंद हमारे चारों ओर बिखरे हुए हैं, पर हम उन्‍हें पहचानते नहीं। गाते हैं गुगनाते हैं, कंठस्‍थ तक हैं हमें वे रचनाएँ जो छंदों में रची हुई हैं, पर हम पहचानते नहीं। कारण हैं हमें साहित्‍य का शास्‍त्रीय ज्ञान नहीं या ज्ञान प्राप्‍त नहीं करना चाहते। लेखनी उठा ली और कवि बन गए, लेखक बन गए।

हमारी स्थिति उस बच्‍चे की तरह है जो बचपन से पाठशाला जाने के पहले तक सब कुछ जान लेता है, अपने घर के संस्‍कारों में रम जाता है, घर, समाज, रिश्‍ते-नाते, देश दुनिया को जानने लगता है। बस उसे शिक्षा का शास्‍त्रीय ज्ञान नहीं होता। इसलिए उसे पाठशाला में प्रवेश कराया जाता है और वह शिक्षित हो कर सेवार्थ प्रस्‍थान करता है।

शास्‍त्रीय ज्ञान, यानि किसी भी विधा या विद्या का शास्‍त्रोक्‍त निर्वहन। जिस प्रकार शास्‍त्रीय संगीत में 10 थाटों (कल्‍याण, बिलावल, खमाज, काफी, पूर्वी, मारवा, भैरव, भैरवी, आसावरी और तोड़ी) से सैंकड़ों राग-रागनियाँ बनी हैं, उसी प्रकार काव्‍य में भी 8 गणों (रगण, जगण, मगण, सगण, भगण, तगण, नगण, यगण) से हजारों छंदों का निर्माण हुआ है। छंद हमारे चारों ओर बिखरे हुए हैं पर हम उन्‍हें पहचानते नहीं।हमारे चारों ओर गीत, भजन, आरती, आह्वान, मंत्र, आहुतियाँ, मंगलाचरण, श्‍लोक, देशगान, प्रार्थना आदि अनेक विधाओं की रचनाएँ हमें याद हैं, सुनते हैं, अच्‍छी लगती हैं, कई कंठस्‍थ हैं। पर हम जानते नहीं कि ये किस छंद में रचित हैं-

1. माँ शारदे की वंदना-

या कुंदेदु तुषार हार धवला या शुभ्र वस्त्रावृता।

या वीणादंडमंडितकरा, या श्‍वेतपद्मासना।

या ब्रह्माच्‍युत शंकर प्रभृतिभिर्देव सदा वंदिता,

सा मां पातु भगवती सरस्‍वती नि:शेषजाड्यापहा।। (छंद- शार्दूल विक्रीडित)

2. शिव स्तिुति –

कर्पूरगौरं करुणावतारं भुजगेंद्रहारं संसार सारं। ( छंद- इंद्रवज्रा छंद)

सदावसन्‍तं हृदयारविन्‍दे भवं भवानी, सहितं नमामी (छंद- उपेंद्रवज्रा)

3. इंद्रवज्रा छंद पर अन्‍य वंदना-  हे कृष्‍ण गोविंद हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेवा।

4. इंद्रवज्रा छंद पर आधारित फिल्‍मी गीत- जो प्‍यार तूने मुझको दिया था वो प्‍यार तेरा मैं लौटा रहा हूँ।

5. मंगलाचरण देखें-

सशंखचक्रं सकिरीटकुंडलम सपीतवस्‍त्रं सरसीरूहेक्षणं।

सहारवक्षस्थलकौस्‍तुभश्रियं, नमामि विष्‍णुंशिररसाचतुर्भुजं।। (वंशस्‍थ छंद)

6. दूसरा मंगला चरण देखे- 

शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

विश्‍वाधारां गगनसदृशं मेघवर्णं शुभांगं

लक्ष्‍मीकांतं कमलनयनं योगभध्यिानगम्‍यं

वंदेविष्णुभवभयहरं सर्वलोकैकनाथं।। (मंदाक्रांता छंद )

 7. कालिदास कृत मेघदूत भी सम्‍पूर्ण मंदाक्रांत छंद पर आधारित है।

8. एक प्रख्‍यात जप और ध्‍यान के लिए हम मन ही मन अष्‍टाक्षर मंत्र का जाप करते हैं ‘श्री कृष्‍णशरणं मम।‘ इसमें आठ वर्ण है इसमें। आठ वर्ण वाला यह मंत्र अनुष्‍टुप् छंद है। श्रीकृष्‍णवचनामृतं (8 वर्ण, अनुष्‍टुम छंद) श्रीमद्भागवत गीता सम्‍पूर्ण अनुष्‍टुप छंद पर आधारित है। गीता में 700 श्‍लोक हैं, सभी श्‍लोक अनुष्‍टुप् छंद पर आधारित हैं-  उदाहरण स्‍वरूप गीता के सबसे ज्‍यादा प्रचारित और प्रसारित 10 श्‍लोकों में दो श्‍लोक का उदाहरण देता हूँ बताता हूँ किस तरह यह अनुष्‍टुप छंद में बने हैं-

1. यदा यदा हि धर्मस्य (8 वर्ण)/ ग्लानिर्भवति भारत (8 वर्ण)  

अभ्युत्थानमधर्मस्य (8 वर्ण)  तदात्मानं सृजाम्यहं  (8 वर्ण)

2. परित्राणाय साधूनां (8 वर्ण) / विनाशाय च दुष्‍कृतां (8 वर्ण) । 

धर्मसंस्‍थापनार्थाय (8 वर्ण)  संभवामि युगे युगे (8 वर्ण)

3. कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते (8 वर्ण) मा फलेषुकदाचन (8वर्ण)....

4. जीवन बीमा निगम के शुभंकर पर लिखा आदर्श वाक्‍य ‘योगक्षेम वहाम्‍यहं (8 वर्ण) गीता से ही लिया गया है।
5. विश्‍व कल्‍याण के लिए शांति पाठ का मंत्र –

सर्वे भवन्‍तु सुखिन:  (8 वर्ण)

सर्वे संतु निरामय (8 वर्ण)

सर्वे भद्राणि पश्‍यंतु ( 8 वर्ण)

मा कश्चित् दु:ख भाग्‍भवेत् (8 वर्ण)

इस  श्‍लोक से हम दीपावली पर माता लक्ष्‍मी हमे धनधान्‍य से परिपूरित करें शुभकामनायें देते हैं वह अनुष्‍टुम् छंद पर आधारित है- 

शुभं करोति कल्‍याणं (8 वर्ण)

आरोग्‍यं धनसंपदा (8 वर्ण)

शत्रु-बुद्धि विनाशय (8 वर्ण)

दीपज्‍योति नमोस्‍तुते (8 वर्ण)

ये सभी लोगों को कंठस्‍थ हैं। अनुष्‍टुप् छंद पर आधारित हैं पर हम नहीं जानते ये किस छंद पर हैं।

  

9. प्रख्‍यात  यमुनाष्‍टक ‘नमामि यमुनां महं सकल सिंद्ध हेतुं मुदा ... छंद पृथ्‍वी और संगीत में यमन कल्‍याण राग में  भारत रत्‍न लता मंगेशकर जी ने गाया है। 

10. जन गण मन अधिकनायक जय है.... छंद सार पर है

11. हे प्रभो आनन्‍द दाता ज्ञान हमको दीजिए .... छंद- गीतिका पर आधारित प्रार्थना है

12. तुम गगन के चन्‍द्रमा हो मैं धरा की धूल हूँ..... छंद- गीतिका पर आधारित फिल्‍मी गीत है

13. जीना यहाँ मरना यहाँ..... छंद- हरिगीतिका पर आधारित है  

14. बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ.... छंद- सुशीला पर आधारित नीरज का लिखा फिल्‍मी गीत है  

 15. ठुमक चलत रामचन्‍द्र बाजत पैंझनिया- छंद- उडियाना  

16. बिहारी सतसई के सातसौ मुक्‍तक दोहा छंद पर आधारित है।

17. रामचरित मानस, हनुमानचालीसा सम्‍पूर्ण चौपाई और दोहा छंद पर आधारित है।

18. फिल्‍मी गीत ‘बहारो फूल बरसाओ मेरा मेहबूब आया है..... विधाता छंद पर आधारित है । इसी प्रकार चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनों भी विधाता छंद पर आधारित है। सैंकड़ों गीत हैं जो शासत्रीय संगीत पर और छंदों पर आधारित हैं।  

19. त्‍वमेव माता च पिता, 

त्‍वमेव बंधुश्‍च सखा त्‍वमेव, 

त्‍वमेव विद्या द्रविणं त्‍वमेव, 

त्‍वमेव सर्वं मम देव देव। यह प्रार्थना/श्‍लोक उपेंद्रवज्रा छंद पर आधारित है। इसका हिंदी अनुवाद ‘तुम्‍ही हो माता तुम्‍ही पिता हो तुम्‍ही हो बंधु संखा तुम्‍ही हो। यह छंद वाचिक स्रिग्‍वणी/रजनी छंद पर आधारित है।

छंद दो प्रकार के होते हैं वर्णिक एवं मात्रिक। वर्णिक जिनमें केवल पूर्ण वर्ण गिने जाते हैं। आधे वर्ण कहीं भी हों नहीं गिने जाते। इसी प्रकार मात्रिक वर्ण में मात्रा गिनी जाती हैं। ‘लाल’ शब्‍द में वर्ण 2 हैं ल, ल जबकि मात्रा 3 हैं। (ला-2 ल-1) प्राचीन काल के सभी ग्रंथ संस्‍कृति और वर्णिक छंदों पर रचे गए। बाद में पंडितों, विद्वानों के वर्चस्‍व को खत्‍म करते हुए पहली बार उनका हिंदी में अनुवाद हुआ और सबसे पहले रामायण के उजले पक्ष को लेकर तुलसीदासजी ने रामचरित मानस रच कर उसे घर घर पहुँचाया। इसलिए युगों से पढ़े लिखे या अनपढ़ सभी जानते हैं कि रामचरित मानस चौपाई और दोहे पर आधारित है।

आज छंदों की जानकारी आज के युवाओं को तभी हो सकती है जब हम कम से कम माध्‍यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रमों में छंदों को भी शामिल करें। छंदों का ज्ञान होने पर छात्र वेदों की ओर मुड़ेंगे वेदों और पुराणों प्राचीन शास्‍त्रों में उनकी रुचि जाग्रत होगी। शोध होंगे। तब ही हम विश्‍वगुरु और वसुधैवकुटफम्‍बकम् की संकल्‍पना को साकार कर सकते हैं। 

छंद वेद के अंगों में एक है। हमारी शिक्षापद्धति में शिक्षा, व्‍याकरण और निरुक्‍त (शब्‍दशास्‍त्र) का सम्मिलित किया गया है पर छंद को नहीं। हम पाठ्यक्रमों में कबीर, रहीम के दोहे देते हैं पर छंद का आरंभिक ज्ञान तक हमारी शिक्षा पद्धति में नहीं है। यही कारण है कि युगों से चली आ रही छंद परम्‍प्‍रा में सैंकड़ों छंद लुप्‍त हो गये और धीरे धीरे अनेक छंद लुप्‍तप्राय हो रहे हैा।

 हम विश्‍वगुरु और वसुधैवकुटुम्‍बकम् (8 वर्ण अनुष्‍टुप् छंद ) की बात करते हैं यह तभी सम्‍भव है जब हम वेदों की ओर मुड़ें। हमारी संस्‍कृति को नई ऊर्जा देने के लिए हमारा वेदाध्‍यन करना अ‍त्‍यवश्‍यक है। विश्‍व में हमारे वेदों, पुराणों, महाभारत रामचरित मानस का सर्वोच्‍च स्‍थान है। महाभारत विश्‍व का सबसे बड़ा महाकाव्‍य है। वेदों के एक अंग कल्‍प की काल की गणना को गिनीज बुक में स्‍थान दिया गया है।

कुछ स्‍वरचि दोहे सुना कर अपनी वाणी को विराम दूँगा।      

 1. घर आए जब भी अतिथि देना यह सुख चार ।

आसन, जल, वाणी मधुर, यथा शक्ति आहार ।1।

2. पूँजी दे बस ब्‍याज ही, भाड़ा भवन दिलाय।

कर्माश्रयभृति ही मिले, साहस भाग्‍य जगाय ।2।

3. खोटा सिक्‍का भी चले, चले फटा भी नोट ।

चकाचौंध में अर्थ की छिप जाते हैं खोट ।3।

4. खुर ऊँचा कर हो खड़ा, वह घोड़ा बलहीन ।

उसका जीवन न्‍यून है, जो बैठे बिन जीन ।4।

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