2 जुलाई 2024

क्षिति जल पावक गगन समीर

गीतिका
छंद- चौपई
पदांत- 0
समांत- ईर

क्षिति जल पावक गगन समीर।
पंचतत्‍व से बना शरीर।1।

रखना मानव इन्‍हें सम्‍हाल,
रख न सके तो सहना पीर।2।

वृक्ष काट मत करो उजाड़,
वृक्ष हैं धरती की जागीर।31

जल को नहीं बहाना व्‍यर्थ,
जीवन जलना तय बिन नीर।4।

दावाग्नि, जठराग्नि बड़वाग्नि,
सदा बनाती जगत अधीर।5।

नभ है अंतरिक्ष का मार्ग,
मानव जाते उसको चीर।6।

पवन समीर हवा के रूप,
साँसों पर इनकी तासीर।7।

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