1-आती है दिन रात हवा
दीवाने की, मीठी यादें,
लाती है, दिन-रात हवा।
मेरे शहर से, चुपके-चुपके,
जाती है, दिन-रात हवा।
तितली बन कर,
जुगनू बन कर,
आती है, दिन रात हवा।
सूना पड़ा है, शहर का कोना,
अब भी यादें करता है।
पत्ता-पत्ता, बूँटा-बूँटा,
अपनी बातें करता है।
पाती बन कर,
खुशबू बन कर,
आती है, दिन-रात हवा।
फिर महकेगा, कोना-कोना,
सपनों को संसार मिला।
शहर की उस वीरान गली को
फिर से इक गुलज़ार मिला।
रुन-झुन बन कर,
गुन-गुन बन कर,
आती है दिन रात हवा।।
मेहँदी लगी है, हलदी लगी है,
तुम आओगे ले बारात।
संगी साथी, सखी सहेली,
बन जाओगे ले कर हाथ।
मातुल बन कर,
बाबुल बन कर,
आती है दिन रात हवा।
2-यह शहर
तिनका तिनका जोड़ रहा
मानव यहाँ शाम-सहर।
आतंकी साये में पीता
हालाहल यह शहर।
ढूँढ़ रहा है वो कोना जहाँ
कुछ तो हो एकांत
है उधेड़बुन में हर कोई
पग-पग पर भयाक्रांत
सड़क और फुटपाथ सदा
सहते अतिक्रम का बोझ
बिजली के तारों के झूले
करते तांडव रोज
संजाल बना जंजाल नगर का
कोलाहल यह शहर।
दिनकर ने चेहरे की रौनक
दौड़धूप ने अपनापन
लूटा है सबने मिलकर
मिट्टी के माधो का धन
पर्णकुटी से गगनचुंबी का
अथक यात्रा सम्मोहन
पाँच सितारा चकाचौंध ने
झौंक दिया सब मय धड़कन
हृदयहीन एकाकी का है
राजमहल यह शहर।
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