(चुटकुला साहित्यिक उछलकूद की एक मोहक शैली है और छंद प्रदेश की धरा से जुड़ा लोक साहित्य है। कहावतें जहाँ सामाजिक परिवेश में संस्कारों का प्रतिनिधित्व करती हैं, वहीं छंदों के माध्यम से कवि द्वारा कही गई कोई भी रचना उसकी रस प्रधानता को एक सामाजिक स्तर प्रदान करती है। उसी क्रम में ब्रज भाषा और रौला छंद में निबद्ध ‘सखा बत्तीसी’संस्कारों के प्रदूषण को छाँटती हुई एक सांस्कृतिक चुटकी है,जिसकी आज महती आवश्यकता है। आज मित्र दिवस है। मेरी पुस्तक 'जीवन की गूँज'से सखा बत्तीसी का आनंद उठायें। सभी पाठक मित्रों को 'मित्र दिवस' की बहुत बहुत शुभकामनायें।-आकुल)
गूलर भुनगा साथ ज्यौं, भौंरा कमल समाय।
मृत्युपर्यंत साथ दै, वो ही सखा कहाय।
वो ही सखा कहाय, साथ हो सच्च सरीखौ।
स्वाद कह्यो ना जाय, गरल मीठौ कै फीकौ।।1।।
हरौ पान चूना चढ़ै, जीभ करै नहीं लाल।
चढ़ै कपित्थ सखा संग ऐसौ, करै करेजा लाल।
करै करेजा लाल, सखा की महिमा ऐसी।
दधि माखन हिय रखै, दूध की गरिमा जैसी।।2।।
दूध फटै छैना बनै, दही जमै जब दूध।
अकसमात जब बनै, सखाई माँगे नहीं सबूत।
माँगे नहीं सबूत, हाल हर देवै हत्था।
मोम बनै बिन शहद, मुहर को जैसे छत्ता।।।3।।
‘आकुल’गुन औगुन ना परखै,काल सखा और सर्प।
आँख खुली रक्खै, ना रक्खै संग कोई भी दर्प।
संग कोई भी दर्प, काल की घड़ी विदारक।
सखा रहै बस संग, सर्प को दंश सँहारक।।4।।
परिचै तो राखौ घनौ, सखा रखौ कछु एक।
कौन घड़ी आ पड़ै काज तुम, मिलौ सबन सूँ नेक।
मिलौ सबन सूँ नेक, सखा सूँ प्रीत बढ़ाय।
कस्तूरी मृग ज्यौं रिसै, जहाँ पहुँचै महकाय।।5।।
घी लिपटै ऊपर चढ़ै, तेल चढ़ै तह ताहिं।
जग माया ऊपर दिखे, मातु सखा मन माहिं।
मातु सखा मन माहिं, प्रेम कछु ऐसौ राखैं।
तन कठोर मन निर्मल, श्रीफल जैसौ राखैं।।6।।
हंस चुगे मोती, चातक अंगार ही खावै।
सखा छोड़ मनसखा कभी, गंगा नहीं न्हावै।
नहीं न्हानवै वनराज, भलै जंगल कौ राजा।
सखा बिना बारात सजै ना, घोड़ी बाजा।।7।।
सखा संग ऐसौ जैसे द्रुम नीम तमाल।
कड़वौ कै औषध हो, वाकौ मन विशाल।
मन विशाल हो सखा मिलै, बस ऐसौ ‘आकुल’।
संग छोड़ कै जाय तौ, घर-बर सब व्याकुल।।8।।
नीर-क्षीर-विवेक और मणिकांचन कौ योग।
संग सखा की बात कहा, जो ऐसौ हो संयोग।
ऐसौ हो संयोग कि,घी से खिचरी निखरै।
नाम सखा कौ होय, मनसखा भी ना बिखरै।।9।।
चून चढै़ गावै मृदंग, चून बिना गुन जान।
सखा साथ है तौ बसंत, सखा बिना सुनसान।
सखा बिना सुनसान, रात ज्यौं बिना सितारे।
बिना चाँदनी चाँद, बिना बदरी के धारे।।10।।
उलट तवा नाचै यदि,चिठिया आवै द्वार।
पलट वार ना करै सखाई, तिरिया जावै हार।
तिरिया जावै हार, सखा ना फूट करावै।
ना तंतर-मंतर-मारक, ना मूठ धरावै।।11।।
दाँत भलै बत्तीस, जीभ इतरावै ऐसी।
बिना अस्त्र के लड़ै, करै ऐसी की तैसी।
करे ऐसी की तैसी, सखा की थाती ऐसी।
दाँत बिना भी जीभ चलै, वैसी की वैसी।।12।।
जलै दीप कौ तेल, जलै बाती की लौ भी।
मोती बिना बनै कठोर, हिय सीपी कौ भी।
सीपी कौ भी मोल, कछू ना बिना रसोपल।
सखा बिना जग ऐसौ, जैसे नार बुझौवल।।13।।
रसना बिन ना रस, ना बिना सखा रसखान।
छप्पन भोग करै का रसना, बिना सखा का मान।
बिना सखा का मान, भले हौं भाग हमारे।
करम बुलावैं नेक सखा कूँ, अपने द्वारे।।14।।
हाथ करै ले मोल लड़ाई, बंदर और गमार।
शरम करै भूखौ मरै, रंगी और कुम्हार।
रंगी और कुम्हार चलै ना, हाथ करे रंग गार।
हाथ करे ना भिड़े सखा बिन, कैसौ भी रंगदार।।15।।
केकी रोये देख पग, वंध्या बिना जनाय।
पलक बिना फुफकारे भुजग, कितने ही बल खाय।
कितने ही बल खाय, व्यथा ‘आकुल’ की जैसे।
सखा बिना जग नीरस, अरन जलेबी जैसे।।16।।
‘आकुल’ दुखिया जब जगत, मूरख जो भी रोय।
हलुआ मिले भाग अभागा, दलिया को भी खोय।
दलिया को भी खोय, रहै भूखौ कौ भूखौ।
सखा बिना जीवन ऊसर, सूखौ कौ सूखौ।।17।।
गुरु बिन ज्ञान अधूरौ, जैसे बैयर बिना कुटुंब।
खाली मन डोले इत उत ज्यौं, अधजल छलकै कुंभ।
अधजल छलकै कुंभ, भिगोवै कपड़ा लत्ता।
बिना सखा दुनियादारी ना, निभै कभी अलबत्ता ।।18।।
मसजिद में अजान दै मुल्ला, मुर्गा पौ फटते ही।
सबकौ राम है रखवारौ, 'आकुल’ कौ सखा सनेही।
’आकुल’ कौ सखा सनेही, जो सुखदुख में साथ निभावै।
ना रहीम, ना राम, सखा ही, बखत पै पार लगावै।।19।।
घृना-ईरसा-बैर जुगों से, रचते रहे इतिहास।
का रामायण, महाभारत, का राजपाट कौ ह्रास।
राजपाट कौ ह्रास, सखाई से जीवित इतिहास।
जब तक सखा रहैगौ, बैरी कौ ही होगो नास।।20।।
धैर्य सिखावै सखा, क्रोध कूँ रोके हरदम।
कोई भी हो घाव, लगावै हरदम मरहम।
हरदम मरहम, ना उलाहना, छदम छलावा।
सखा साथ सूँ कभी नहीं, होवै पछतावा।।21।।
कनक सुलभ,धन सुलभ,सुलभ हैं समरथ कूँ बहुतेरे।
जर-जोरू-जमीन ने कीन्है, अनरथ भी बहुतेरे।
अनरथ भी बहुतेरे, अपने गुड़ चींटे से खावैं।
विपदा में बस सखा साथ दै, बाकी पीठ बतावैं।।22।।
बात कहा जो सखा मिलै, ज्यों कृष्ण सुदामा।
पहुँचे शिखर भलै निर्धन हो, सखा सुदामा।
सखा सुदामा पहुँचै, मिल बंशीधर अश्रु बहाये।
बैर भाव सब मिटें, सखा जो गले लगाये।।23।।
बजै फूँक से शंख, फूँक से शंठ जगै।
घर फूँक तमाशा देखै सीधौ, चंट ठगै।
चंट ठगै, देखै खड़ौ, देवै लाख दुहाई।
बिना सखा सब लूटें, जैसे बाट रुकाई।।24।।
निर्मल हिय या लोक में, सरै सखा बिन नाहिं।
गूँछ रखै श्रीफल, पानीफल, शूल रखै तन माहिं।
शूल रखै तन माहिं, बैरि कौ हाथ न जाय जरा सौ।
सखा संग संकट में, बाल न बाँकौ होय जरा सौ।।25।।
घर मुँडेर पै कागा बोलै, हर कोई दिय उड़ाय।
गावै कोयल डारन पीछै, सब कौ हिय हरसाय।
सब कौ हिय हरसाय, चतुर बड़बोला मान घटाय।
सखा होय मनसखा कभी ना, घर-घर जा बतराय।।26।।
बिल्ली काटै रस्ता समझौ,रुक कर करौ विचार।
जो उद्योग करौ सम्मति सौं, ये ही है परिहार।
ये ही है परिहार, सखा सौं सम्मति लैवै।
और करै विसवास सीख,‘आकुल’ भी दैवै।।27।।
छिपौ हुऔ रसखान में, सखा सनेही खोज।
सबरस मिलैं कबहूँ ना जग में, सखा मिलै बस रोज।
सखा मिलै बस रोज, बिना ना दुनियादारी भावै।
पड़ै कुसंग, लड़ै घर में, व्यतिपात, बिमारी लावै।।28।।
ये दुखिया बिन अरथ के, वो दुखिया बिन भूम।
मैं दुखिया बिन सखा सनेही, सबैं उड़ाऊँ धूम।
सबै उड़ाऊँ धूम, सभी हैं काँकर पाथर।
सखा मिलै बस धन्न ज्यूँ , भूखौ खाखर पाकर।।29।।
चींटी के जब पर आवैं और गीदड़ जब पुर जाय।
समझौ अंत निकट है उनकौ, जीवन कब उड़ जाय।
जीवन कब उड़ जाय, सखा सूँ नेह ना राखै।
पड़ै अकेलौ घर बिखरै, ना कोऊ वाकै।।30।।
बिल्ली सोवै सोलह घंटे, औचक घात लगाय।
मूरख सोवै दिन में वाके, हाथ कछू न आय।
हाथ कछू न आय, सखा संग बीती न बतराय।
समय, सखा और श्री खोवै, हाथ मलै पछताय।।31।।
दूध, मलाई, दही, छाछ, माखन सौ सोना।
गो रस सौ ना नौ रस में रस, मानौ च्यों ना।
मानौ च्यौं ना स्वस्थ रहौ, हँसौ बता बत्तीसी।
सखा मिलैगौ हीरा पढ़ ल्यौ, सखा बत्तीसी।।32।।
गूलर भुनगा साथ ज्यौं, भौंरा कमल समाय।
मृत्युपर्यंत साथ दै, वो ही सखा कहाय।
वो ही सखा कहाय, साथ हो सच्च सरीखौ।
स्वाद कह्यो ना जाय, गरल मीठौ कै फीकौ।।1।।
हरौ पान चूना चढ़ै, जीभ करै नहीं लाल।
चढ़ै कपित्थ सखा संग ऐसौ, करै करेजा लाल।
करै करेजा लाल, सखा की महिमा ऐसी।
दधि माखन हिय रखै, दूध की गरिमा जैसी।।2।।
दूध फटै छैना बनै, दही जमै जब दूध।
अकसमात जब बनै, सखाई माँगे नहीं सबूत।
माँगे नहीं सबूत, हाल हर देवै हत्था।
मोम बनै बिन शहद, मुहर को जैसे छत्ता।।।3।।
‘आकुल’गुन औगुन ना परखै,काल सखा और सर्प।
आँख खुली रक्खै, ना रक्खै संग कोई भी दर्प।
संग कोई भी दर्प, काल की घड़ी विदारक।
सखा रहै बस संग, सर्प को दंश सँहारक।।4।।
परिचै तो राखौ घनौ, सखा रखौ कछु एक।
कौन घड़ी आ पड़ै काज तुम, मिलौ सबन सूँ नेक।
मिलौ सबन सूँ नेक, सखा सूँ प्रीत बढ़ाय।
कस्तूरी मृग ज्यौं रिसै, जहाँ पहुँचै महकाय।।5।।
घी लिपटै ऊपर चढ़ै, तेल चढ़ै तह ताहिं।
जग माया ऊपर दिखे, मातु सखा मन माहिं।
मातु सखा मन माहिं, प्रेम कछु ऐसौ राखैं।
तन कठोर मन निर्मल, श्रीफल जैसौ राखैं।।6।।
हंस चुगे मोती, चातक अंगार ही खावै।
सखा छोड़ मनसखा कभी, गंगा नहीं न्हावै।
नहीं न्हानवै वनराज, भलै जंगल कौ राजा।
सखा बिना बारात सजै ना, घोड़ी बाजा।।7।।
सखा संग ऐसौ जैसे द्रुम नीम तमाल।
कड़वौ कै औषध हो, वाकौ मन विशाल।
मन विशाल हो सखा मिलै, बस ऐसौ ‘आकुल’।
संग छोड़ कै जाय तौ, घर-बर सब व्याकुल।।8।।
नीर-क्षीर-विवेक और मणिकांचन कौ योग।
संग सखा की बात कहा, जो ऐसौ हो संयोग।
ऐसौ हो संयोग कि,घी से खिचरी निखरै।
नाम सखा कौ होय, मनसखा भी ना बिखरै।।9।।
चून चढै़ गावै मृदंग, चून बिना गुन जान।
सखा साथ है तौ बसंत, सखा बिना सुनसान।
सखा बिना सुनसान, रात ज्यौं बिना सितारे।
बिना चाँदनी चाँद, बिना बदरी के धारे।।10।।
उलट तवा नाचै यदि,चिठिया आवै द्वार।
पलट वार ना करै सखाई, तिरिया जावै हार।
तिरिया जावै हार, सखा ना फूट करावै।
ना तंतर-मंतर-मारक, ना मूठ धरावै।।11।।
दाँत भलै बत्तीस, जीभ इतरावै ऐसी।
बिना अस्त्र के लड़ै, करै ऐसी की तैसी।
करे ऐसी की तैसी, सखा की थाती ऐसी।
दाँत बिना भी जीभ चलै, वैसी की वैसी।।12।।
जलै दीप कौ तेल, जलै बाती की लौ भी।
मोती बिना बनै कठोर, हिय सीपी कौ भी।
सीपी कौ भी मोल, कछू ना बिना रसोपल।
सखा बिना जग ऐसौ, जैसे नार बुझौवल।।13।।
रसना बिन ना रस, ना बिना सखा रसखान।
छप्पन भोग करै का रसना, बिना सखा का मान।
बिना सखा का मान, भले हौं भाग हमारे।
करम बुलावैं नेक सखा कूँ, अपने द्वारे।।14।।
हाथ करै ले मोल लड़ाई, बंदर और गमार।
शरम करै भूखौ मरै, रंगी और कुम्हार।
रंगी और कुम्हार चलै ना, हाथ करे रंग गार।
हाथ करे ना भिड़े सखा बिन, कैसौ भी रंगदार।।15।।
केकी रोये देख पग, वंध्या बिना जनाय।
पलक बिना फुफकारे भुजग, कितने ही बल खाय।
कितने ही बल खाय, व्यथा ‘आकुल’ की जैसे।
सखा बिना जग नीरस, अरन जलेबी जैसे।।16।।
‘आकुल’ दुखिया जब जगत, मूरख जो भी रोय।
हलुआ मिले भाग अभागा, दलिया को भी खोय।
दलिया को भी खोय, रहै भूखौ कौ भूखौ।
सखा बिना जीवन ऊसर, सूखौ कौ सूखौ।।17।।
गुरु बिन ज्ञान अधूरौ, जैसे बैयर बिना कुटुंब।
खाली मन डोले इत उत ज्यौं, अधजल छलकै कुंभ।
अधजल छलकै कुंभ, भिगोवै कपड़ा लत्ता।
बिना सखा दुनियादारी ना, निभै कभी अलबत्ता ।।18।।
मसजिद में अजान दै मुल्ला, मुर्गा पौ फटते ही।
सबकौ राम है रखवारौ, 'आकुल’ कौ सखा सनेही।
’आकुल’ कौ सखा सनेही, जो सुखदुख में साथ निभावै।
ना रहीम, ना राम, सखा ही, बखत पै पार लगावै।।19।।
घृना-ईरसा-बैर जुगों से, रचते रहे इतिहास।
का रामायण, महाभारत, का राजपाट कौ ह्रास।
राजपाट कौ ह्रास, सखाई से जीवित इतिहास।
जब तक सखा रहैगौ, बैरी कौ ही होगो नास।।20।।
धैर्य सिखावै सखा, क्रोध कूँ रोके हरदम।
कोई भी हो घाव, लगावै हरदम मरहम।
हरदम मरहम, ना उलाहना, छदम छलावा।
सखा साथ सूँ कभी नहीं, होवै पछतावा।।21।।
कनक सुलभ,धन सुलभ,सुलभ हैं समरथ कूँ बहुतेरे।
जर-जोरू-जमीन ने कीन्है, अनरथ भी बहुतेरे।
अनरथ भी बहुतेरे, अपने गुड़ चींटे से खावैं।
विपदा में बस सखा साथ दै, बाकी पीठ बतावैं।।22।।
बात कहा जो सखा मिलै, ज्यों कृष्ण सुदामा।
पहुँचे शिखर भलै निर्धन हो, सखा सुदामा।
सखा सुदामा पहुँचै, मिल बंशीधर अश्रु बहाये।
बैर भाव सब मिटें, सखा जो गले लगाये।।23।।
बजै फूँक से शंख, फूँक से शंठ जगै।
घर फूँक तमाशा देखै सीधौ, चंट ठगै।
चंट ठगै, देखै खड़ौ, देवै लाख दुहाई।
बिना सखा सब लूटें, जैसे बाट रुकाई।।24।।
निर्मल हिय या लोक में, सरै सखा बिन नाहिं।
गूँछ रखै श्रीफल, पानीफल, शूल रखै तन माहिं।
शूल रखै तन माहिं, बैरि कौ हाथ न जाय जरा सौ।
सखा संग संकट में, बाल न बाँकौ होय जरा सौ।।25।।
घर मुँडेर पै कागा बोलै, हर कोई दिय उड़ाय।
गावै कोयल डारन पीछै, सब कौ हिय हरसाय।
सब कौ हिय हरसाय, चतुर बड़बोला मान घटाय।
सखा होय मनसखा कभी ना, घर-घर जा बतराय।।26।।
बिल्ली काटै रस्ता समझौ,रुक कर करौ विचार।
जो उद्योग करौ सम्मति सौं, ये ही है परिहार।
ये ही है परिहार, सखा सौं सम्मति लैवै।
और करै विसवास सीख,‘आकुल’ भी दैवै।।27।।
छिपौ हुऔ रसखान में, सखा सनेही खोज।
सबरस मिलैं कबहूँ ना जग में, सखा मिलै बस रोज।
सखा मिलै बस रोज, बिना ना दुनियादारी भावै।
पड़ै कुसंग, लड़ै घर में, व्यतिपात, बिमारी लावै।।28।।
ये दुखिया बिन अरथ के, वो दुखिया बिन भूम।
मैं दुखिया बिन सखा सनेही, सबैं उड़ाऊँ धूम।
सबै उड़ाऊँ धूम, सभी हैं काँकर पाथर।
सखा मिलै बस धन्न ज्यूँ , भूखौ खाखर पाकर।।29।।
चींटी के जब पर आवैं और गीदड़ जब पुर जाय।
समझौ अंत निकट है उनकौ, जीवन कब उड़ जाय।
जीवन कब उड़ जाय, सखा सूँ नेह ना राखै।
पड़ै अकेलौ घर बिखरै, ना कोऊ वाकै।।30।।
बिल्ली सोवै सोलह घंटे, औचक घात लगाय।
मूरख सोवै दिन में वाके, हाथ कछू न आय।
हाथ कछू न आय, सखा संग बीती न बतराय।
समय, सखा और श्री खोवै, हाथ मलै पछताय।।31।।
दूध, मलाई, दही, छाछ, माखन सौ सोना।
गो रस सौ ना नौ रस में रस, मानौ च्यों ना।
मानौ च्यौं ना स्वस्थ रहौ, हँसौ बता बत्तीसी।
सखा मिलैगौ हीरा पढ़ ल्यौ, सखा बत्तीसी।।32।।
सखा मीत पर सुन्दर छंद बद्ध रचना पढ़ कर आनंद आ गया. ढेर सारी शुभकामनाये.... फालो कर लिया है.. अब पढ़ते रहेंगे ....... आपके ब्लॉग की चर्चा ब्लॉग4वार्ता में की जाएगी......
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