ई पत्रिका 'अभिव्यक्ति के नवम्बर के कार्तिक मास विशेषांक में 'आकुल' का नवगीत प्रकाशित
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कार्तिक की दस्तक
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त्योहारों-पर्वों
को भी अब एक नई दस्तक देनी है
आए पहले देव कनागत हुई देवियों की भी आगत बाद दिवाली और दशहरा होना नवजीवन का स्वागत
रामराज्य के लिए लगा अब अग्नि परीक्षा तक देनी है
अपने ही अपनों से आहत होगा कौन-कौन शरणागत अहं और बल की शह पर प्रभु हो न एक और महाभारत
लोकतंत्र के शाने पर अब कुछ को तो रुखसत देनी है
उत्साहों में कमी नहीं पर पैरों में अब जमीं नहीं पर बनी हुईं लक्ष्मण रेखाएँ खुशियाँ ही हैं गमी नहीं पर
..
तूफाँ से पहले की शांति है आहुतियाँ अब तय देनी है
चलो दीप से दीप जलाएँ एक सूत्र बँध पर्व मनाएँ देखें अब उजास उन्नति का प्रेम और सौहार्द बढ़ाएँ
फैले प्रभा क्षितिज तक
किरणें
धरती से नभ तक देनी है
- आकुल
१ नवंबर २०२५
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