कोटा। जनकवि गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ के सम्मान में शनिवार सायं 4 बजे आरंभ हुए चर्चा, यात्रा संस्मरण और जलेस काव्यगोष्ठी में राम कथा, देशभक्ति, दोहों, कविताओं, व्यंग्य और राजस्थानी गीतों ने कवि सम्मेलन जैसा समाँ बाँध दिया। सम्मान समारोह में पधारे अनेक वरिष्ठ साहित्यकारों, कवियों ने उत्साह के साथ इस समारोह में पहुँच कर श्री भट्ट को शुभकामनायें और बधाई दी।
कार्यक्रम का शुभारंभ मंच की स्थापना से हुआ। वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद गौतम अध्यक्ष और डॉ0 फरीद अहमद ‘फरीदी’ ने सर्वप्रथम श्री आकुल को पुष्पमाला पहना कर अभिनंदन किया। संचालन कर रहे जलेस के जिलाध्यक्ष श्री रघुनाथ मिश्र ने आकुल का संक्षिप्त परिचय देते हुए कहा कि पिछले लंबे समय से कोटा में रह रहे श्री ‘आकुल’ एकांत में सृजन करते रहे। 1993 से 2007 तक वे उ0प्र0 के प्रमुख समाचार पत्र ‘अमर उजाला’, आगरा से जुड़े रहे। कोटा का साहित्य समाज उनकी प्रतिभा से अनभिज्ञ रहा। जलेस का सौभाग्य है कि उससे जुड़ कर श्री ‘आकुल’ की शहर में एक पहचान बनी और सन् 2008 में श्री ‘आकुल’ की प्रतिभा उभर कर साहित्यकारों के बीच आई, जब जलेस ने 2008 में सृजन वर्ष मनाया और 9 पुस्तकें प्रकाशित कीं। 8 पुस्तकों का सम्पादन श्री भट्ट ने किया था। श्री भट्ट की जलेस से जुड़ने से पूर्व एक पुस्तक ‘प्रतिज्ञा’ (नाटक) प्रकाशित हो चुकी थी, जिसकी भूमिका प्रख्यात समीक्षक और साहित्यकार डॉ0 रामचरण महेन्द्र ने लिखी थी, जिस पर डॉ0 सरला अग्रवाल जैसी विदुषी ने अपनी समीक्षा भी की थी। तब से भट्ट ने फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा। साहित्य में उनका मूल स्वर नाटक और वर्गपहेली रहा है, किंतु काव्य पर उनकी कलम चलती रही।
2008 में उनकी दूसरी पुस्तक ‘पत्थरों का शहर’ के रूप में जलेस प्रकाशन ने सृजन वर्ष 2008 में प्रकाशित की। हिंदी उर्दू गीत ग़ज़ल और नज्मों की यह पुस्तक कोटा की दशा दिशा पर लिखी उनकी अविस्मरणीय पुस्तीक है। यह पुस्तंक कोटा के प्रख्यात शाइर मौलाना हाफिज़ नासिर ‘इक़बाल’ और डॉ0 फ़रीद अहमद ‘फ़रीदी’ की देखरेख में साया हुई। उर्दू और हिन्दी पर पुरज़ोर पकड़ श्री ‘आकुल’ की प्रतिभा की खूबी है। अचानक 2010 में ‘जीवन की गूँज’ काव्य संग्रह के प्रकाशन ने उन्हें साहित्य की ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया। 240 पृष्ठीय यह पुस्तक अखिल भारतीय स्तर पर नवाज़ी जा रही है। देश के अनेकों वरिष्ठ साहित्यकारों और कवियों रचनाकारों विद्वानों ने इसकी सटीक प्रशंसा, समीक्षा व टिप्पणियाँ की हैं। काव्य संग्रह ‘जीवन की गूँज’ पर मिले 2 सम्मानों ने उन्हें अखिल भारतीय स्तर पर स्थापित कर दिया है। पिछले दिनों श्री आकुल को मिले बहराइच में पं0 बृज बहादुर पाण्डेय स्मृति सम्मान ले कर उन्होंने वहाँ कोटा का ही नहीं, राजस्थान का भी नाम ऊँचा किया है। इस सम्मान समरोह में उन्हें मुख्य अतिथि के रूप में मंच पर सुशोभित किया गया। श्री आकुल को स्वयं इन सम्मानों से अपने उद्गार और अपने साहित्यिक यात्रा के संस्मरण सुनाने के लिए मैं आमंत्रित करता हूँ।
आकुल ने कहा कि श्री मिश्रजी इतना कुछ कह गये हैं कि बोलने को जो भी थोड़ा शेष बचा है आपके सामने प्रस्तुत है। मेरी पुस्तक जीवन की गूँज उज्जैन (मध्य प्रदेश) के शब्द प्रवाह साहित्य मंच द्वारा अखिल भारतीय साहित्य सम्मान 2011 से पुरस्कृत हुई और मुझे मेरी साहित्य यात्रा पर 'शब्द श्री' की मानद उपाधि दी गयी। निर्णायकों को शब्द संयोजन की विधा वर्गपहेली निर्माण ने उन्हें सर्वाधिक प्रभावित किया। 1993 से 2008 तक लगातार लगभग 6000 हिंन्दी वर्गपहेली और 400 अंग्रेजी वर्गपहेली के निर्माण में शब्दों के माध्यम से हिन्दी की सेवा की और अब ई पत्रिका ‘अभिव्यक्ति’ से जुड़े हुए होने के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तीर पर वर्गपहेली के माध्यम से हिंदी भाषा की सेवा पर उन्हें चयन किया गया। शब्द प्रवाह के संयोजक और साहित्यिक पत्रिका ‘शब्द प्रवाह’ के प्रधान सम्पादक श्री संदीप फाफरिया ‘सृजन’ ने उन्हें बताया कि ‘जीवन की गूँज’ कृति गद्य-पद्य विधा में अपने आप में अनोखी है। ऐसा साहित्य सृजन कम ही देखने को मिलता है। 27 मार्च को उज्जैन में एक भव्य समारोह में इस पुस्तक को पुरस्कृत किया गया। आकुल ने बहराइच के अपने सम्मान के बारे में संक्षिप्त में बताते हुए कहा कि पं0 बृज बहादुर पाण्डेय और शारदा देवी स्मृति सम्मान उनके पुत्र डॉ0 अशोक पाण्डेय ‘गुलशन’ द्वारा पिछले 15 वर्षों से आयोजित किया जा रहा हैं। प्रति वर्ष इस सम्मान हेतु जून से मई के दौरान प्रकाशित पुस्तकों के लिए प्रविष्टि आमंत्रित की जाती हैं। इस बार 15 ही प्रविष्टियाँ प्राप्त हुई थीं। अत: सभी को आमंत्रित किया गया था, किन्तु कम ही साहित्यकार इस सम्मा न हेतु पहुँच पाये। राजस्थान से आने वाला मैं ही एक प्रतिभागी था। मैंने अपने संक्षिप्त उद्बोधन में बस इतना ही कहा कि साहित्यकार सम्मान के बिना अधूरा है, वैसे ही जैसे स्त्री मातृत्व के बिना अधूरी है। मातृत्व सुख पा कर स्त्री समाज में स्थापित होती है और सम्मान पा कर रचनाकार साहित्य जगत् में स्थापित होता है। उसका साहित्य स्थापित होता है।
गोष्ठी में आकुल ने बहराइच के बारे में बताया कि बहराइच उत्तर प्रदेश का नेपाल सीमा का एक मात्र जनपद (जिला) है। लंगड़ा आम के लिए प्रख्यात यह संभाग घने आच्छादित वनों के लिए प्रख्यात है। लखनऊ से 125 किमी और गोण्डा से 65 किमी दूर यह नेपाल सीमा से लगभग 55 किमी अंतर पर है। त्रिदेवों में से एक भगवान् श्री ब्रह्माजी के चरणकमल इस पृथ्वी पर पड़ने के कारण इस का नाम ब्रह्माइच से अपभ्रंश हो कर बहराइच पड़ा है। समीप ही श्रावस्ती तीर्थ स्थल है जो जैन और बौद्ध धर्म का प्रख्यात दर्शनीय स्थैल है। यहाँ 25 वर्षाकाल भगवान् बुद्ध ने तपस्या की थी। बहराइच कोटा से लगभग 700 किमी दूरी पर है। कोटा से अवध एक्सप्रेस से गोंडा तक और फिर वहाँ से रेल अथवा सड़क मार्ग से बहराइच पहुँचा जा सकता है। दूसरा रूट जनशताब्दी एक्सप्रेस से मथुरा, मथुरा से कासगंज और कासगंज से सीधे बहराइच के लिए गोकुल एक्सप्रेस रेलमार्ग से बहराइच पहुँचा जा सकता है। इस मार्ग पर गोण्डा से पूर्व बहराइच स्टेशन आता है। यह जानकारी मैं इसलिए दे रहा हूँ कि कल यदि आपको इस सम्मान के लिए आमंत्रित किया जाये तो जाने में आसानी रहे। दूसरे सत्र में जलेस काव्यागोष्ठी में काव्यगोष्ठी का शुभारंभ पुरुषोत्तम पांचाल के केवट राम संवाद पर लिखी अपनी चौपाइयों ‘पाँव पखारूँ जो चाहो उतरना गंगा पार’ से हुआ और वातावरण भक्तिमय हो गया। ‘आकुल’ ने बहराइच में विशेष आग्रह पर सुनाई ‘जीवन की गूँज’ की देशभक्ति रचना ‘मेरा भारत महान्’ सुनाई-‘नभ जल थल पर आन है अपनी ध्वज र्निभय गणमान्य रहे, वेदों से अभिमंत्रित मेरा भारतवर्ष महान् रहे’ सुनाई और दूसरी रचना में उन्होंने आह्वान किया कि आज गाँवों से शहर को पलयान रोकना होगा, कृषिप्रधान हमारे देश में ग्रामोत्थान पर सतत कार्य करने की आवश्यकता है। उन्होंने अपनी रचना ‘तुम सृजन करो’ पढ़ी- ‘तुम सृजन करो फिर हरित क्रांति का बिगुल बजाना है धरती सोना उगले, ऐसी अलख जगाना है’ अन्य रचनाकारों में डॉ0 नलिन ने छोटी बहर की ग़ज़ल सुनाई-‘बैठ कर सोचा नहीं होता, ग़म कभी ज्यादा नहीं होता। मुसकुरा कर देख लेते वो, इस तरह तन्हा नहीं होता’, शिवराज श्रीवास्तव ने ‘राष्ट्र भक्ति के अमर बलिदान को नमन’, डॉ0 अशोक मेहता ने ‘दिन का वादा, शाम की मस्ती’ गीत सुनाया, डॉ0 ‘फरीद’ ने आकुल के सम्मान में एक रचना गा कर सुनाई;’आकाश का फरिश्ता धरती पे उतर आया, माँ सरस्वती ने जिसको दिल से गले लगाया’ और एक अपनी प्रतिनिधि ग़ज़ल सुनाई- ‘आ खिला दे खुशी के कंवल जिन्दगी, पढ़ रहा हूँ मैं तुझ पर ग़ज़ल जिन्दगी’ गीतकार अनमोल ने गीत सुनाया ‘वो झोंपड़ी अच्छी है जिसमें मिलता है सुकून। वो महल किस काम का है जिसमें जलता है खून।‘, रमेश खण्डेलवाल ने हाड़ौती में ‘ऐ जी म्हारा छैल भँवरजी जाओ जी, म्हारो छोरो कुवारों न रह जावे जी’ सुनाया, भगवत सिंह जादौन ने सांध्य गीत ‘संध्या आई उजियारे की धूल बुहार गयी’ सुनाया, जलेस अध्यक्ष श्री रघुनाथ मिश्र ने हिन्दी ग़ज़ल सुनाई 'जंगल नदी हवाओं से बतियाना मन को भाता है’ सुनाया और अंत में काव्य्गोष्ठी के अध्यक्ष श्री भगवती प्रसाद गौतम ने अनेकें दोहे सुनाये ‘बस्तों से पीठ छिली, हुआ दफन सब प्रेम। क्यों न मिलती कभी, मम्मी जैसी मेम‘ काव्य गोष्ठी में अन्य कवियों एम पी कश्यंप, सुरेश वैष्णव, शिवनंदन त्रिनेत्र, आनन्द हजारी, बृजेन्द्र पुखराज, नरेंद्र चक्रवर्ती मोती ने भी काव्य पाठ किया एवं अनेकों नागरिकों व छात्रों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवायी।
अपने अध्यक्षीय भाषण में श्री गौतम ने कहा कि श्री भट्ट का सम्मान उनका नहीं कोटा के साहित्यकारों का सम्मान भी है, जिनकी साहित्या रचनाओं और गोष्ठियों में पढ़ी गयी रचनाओं से नवोदित रचनाकारों को प्रोत्सातहन मिलता है और वे साहित्य के क्षेत्र में स्थापित होने लगते हैं। अंत में सचिव नरेन्द्र कुमार चक्रवर्ती ने पधारे सभी साहित्यकारों व उपस्थित लोगों का आभार प्रकट किया। फोटो सेशन के बाद कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
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