17 मई 2011

मधुबन माँ की छाँव

-दोहे-
‘आकुल’ या संसार में, एक ही नाम है माँ ।
अनुपम है, संसार के, हर प्राणी की माँ ।।1।।

माँ की प्रीत बखानिए, का मुँह से धनवान ।
कंचन तुला भराइये, ओछो ही परमान ।।2।।

मन-मन सब को राखि के, घर-बर कूँ हरसाय ।
सबहिं खिलाए पेट भर, बचो खुचो माँ खाय ।।3।।

मधुबन माँ की छाँव है, निधिबन माँ की गोद ।
काशी, मथुरा, द्वारिका, दर्शन माँ के रोज ।।4।।

माँ के माथे चन्द्र है, कुल किरीट सो जान ।
माँ धरती, माँ स्वर्ग है, गणपति लिख्यो विधान ।।5।।

मान कहा, अपमान कहा, माँ के बोल कठोर ।
माँ से नेह न छोड़ियो, कैसौ ही हो दौर ।।6।।

‘आकुल’ नियरे राखिये, जननी जनक सदैव ।
ज्यों तुलसी कौ पेड़ है, घर में श्री सुखदेव ।।7।।

पूत कपूत सपूत हो, ममता करे न भेद ।
मीठो ही बोले बंसी, तन में कितने छेद ।।8।।

तन मन धन सब वार के, हँस बोले बतराय ।
संकट जब घर पर आए, दुनिया से भिड़ जाय ।।9।।

तू सृष्टि की अधिष्ठात्री, देवी, माँ तू धन्य ।
फि‍रे न बुद्धि ‘आकुल’ की, दे आशीष अनन्य ।।10।।

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