6 मार्च 2012

आईना

आईने बदलने से सूरत नहीं बदला करती।
यूँही बैठे रहने से कि‍स्मत नहीं बदला करती।
बेशकीमती ताबूत में भी मि‍ट्टी होना है लाश को,
क़ब्र बदलने से मौत की हक़ीक़त नही बदला करती।

नफासत आईने की सदा
हक़ीक़त ही बयाँ करता है सब से।
हक़ीक़त आदमी की झूठ
नफासत से बयाँ करता है रब से।

इक नज़र ही है जो आईने भी तोड़ देती है
इक फ़ज़र ही है जो अंधेरों को ओढ़ लेती है
इतनी ताक़त तो आफ़्ताब में भी नहीं
इक हवा ही है जो समंदर का रुख मोड़ देती है।

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