छंद-
सार
शिल्प विधान- 16,12 पर यति, अंत 2 गुरु से.
समांत- अही.
पदांत- है.
शिल्प विधान- 16,12 पर यति, अंत 2 गुरु से.
समांत- अही.
पदांत- है.
देर
मगर अंधेर नहीं है,
तुम करना नेकी ही,
मत समझो कि दुनिया ने नई, इक कहावत कही है.
मत समझो कि दुनिया ने नई, इक कहावत कही है.
अकसर
बदतर होता जाता,
है व्यवहार बदी का,
नेकी को है मान मिला, तो शराफत वही है.
नेकी को है मान मिला, तो शराफत वही है.
कोर्ट-कचहरी, मुंसिफ-मुजरिम,
क्यों बढ़े फसाद दंगे,
चली नहीं राहें नेकी की, तब सियासत ढही है.
चली नहीं राहें नेकी की, तब सियासत ढही है.
शोहरत
मिली बदी के पथ पर,
क्यों भ्रम में है इंसाँ,
चलें राह ढाई आखर की, सच इबादत यही है,
चलें राह ढाई आखर की, सच इबादत यही है,
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