शिल्प
विधान- मात्रा भार 30. 16,14 पर यति अंत 3 गुरु अनिवार्य.
पदांत-
है
समांत-
आनी
नारी
और प्रकृति की प्रतिदिन, यह अनुभूत कहानी है.
आँखिन
देखी विडम्बना यह कहती मूक जबानी है.
प्रकृति
विदोहन से धरती के, सीने छलनी हैं होते,
नारी
के आँचल रक्तिम हैं, सहती भूख जवानी है.
हर
युग का इतिहास पढ़ा यह, गुना आदमी जो होता,
वीरा
नारी के मुखड़ों पर, रहती क्यूँ वीरानी है.
मातृशक्ति
स्वरूप नारियाँ, देवी सी पूजी जातीं,
दशकुलवृक्षों
से अनभिज्ञ जो’, निपट मूढ़ अज्ञानी है.
प्रकृति
बनाती स्वर्ग धरा को, नारी है कुल की देवी,
नई
नींव डालें नव पीढ़ी, अब मजबूत बनानी है.
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