हरिगीतिका छंद पर आधारित गीतिका/गीत
मापनी 221 2221 2221 2221 2
जो पर्वतों की तरह रह कर, अटल सरहद पर चले
उनको डिगा सकता नहीं, तूफान हों या जलजले.
रखते जिगर फौलाद का, फरहाद से हों हौसले
जो चीर कर पर्वत नहर दे, तख्त की खातिर पले.
यह भूूमि है अवतार और, वेदों पुराणों की धरा
इसके लिए बलिदान भी, करना पड़़े़े तो कर चले.
खोते नहीं जाँँबाज मौका, दुश्मनों के वार का
पीछे ने करते वार वीर, इससे तो जान'वर भले.
चैनो अमन से वतन में, आती बहारों रौनकें
'आकुल' चढ़े परवान धरती, और वतन फूले फले.
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