(गीतिका)
छंद- हरिगीतिका.
पदांत- है
समांत- ईर
मापनी- 2212 2212 2212 2212
मेरा वतन मेरा चमन, मेरी धरा तकदीर है.
फहरा रहा है ध्वज तिरंगा सह रहा हर पीर है.
सागर झुलाये पालना, पंखा झले संदल पवन,
दिन रात सीमा पर त्रिबल, से शोभती प्राचीर है.
दायें खड़े मरुधर यहाँ, जिसने सहे ब्रह्मास्त्र भी,
गंगो-जमन-अंत:सलिल, संगम सुहाना तीर है.
है ग्रंथ गीता वेद की, भाषा यहाँ गौरव बनी,
शिक्षा यहाँ पहुँची शिखर, जो आज भी अकसीर है.
‘आकुल’ यहाँ पर भाग्य से, है जन्म मुझको जो मिला,
मैं धन्य हूँ, इस देश में, इक स्वर्ग सा कश्मीर है.
छंद- हरिगीतिका.
पदांत- है
समांत- ईर
मापनी- 2212 2212 2212 2212
मेरा वतन मेरा चमन, मेरी धरा तकदीर है.
फहरा रहा है ध्वज तिरंगा सह रहा हर पीर है.
सागर झुलाये पालना, पंखा झले संदल पवन,
दिन रात सीमा पर त्रिबल, से शोभती प्राचीर है.
दायें खड़े मरुधर यहाँ, जिसने सहे ब्रह्मास्त्र भी,
गंगो-जमन-अंत:सलिल, संगम सुहाना तीर है.
है ग्रंथ गीता वेद की, भाषा यहाँ गौरव बनी,
शिक्षा यहाँ पहुँची शिखर, जो आज भी अकसीर है.
‘आकुल’ यहाँ पर भाग्य से, है जन्म मुझको जो मिला,
मैं धन्य हूँ, इस देश में, इक स्वर्ग सा कश्मीर है.
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