14 जुलाई 2017

पावस ने (गीतिका)



छंद- विधाता
मापनी- 1222 1222 1222 1222
पदांत- है
समांत- आई

धरा पर आज पावस ने, हरित चादर बिछाई है.
मुदित कण कण हवा भी सर्द हो कर मुसकुराई है.

नई कोंपल नई शाखें, नये मधुकोश, नव-जीवन,
सभी को सृष्टि ने पहली, हरी चूनर उढ़ाई है.

कहीं नर्तन मयूरों के, कहीं छूते गगन पंछी,
कहीं कलियों ने फूलों से, अदा हँसने की पाई है.

कहीं मानव की हठधर्मी, कहीं सूरज की सरगर्मी,
सभी को कर किनारे वक्‍़त ने कीमत चुकाई है.

चलो ‘आकुल’ प्रकृति ने फिर, पहल तो की, भरी ऊर्जा,
खिजाँ जा कर बहारों से पुन: सौगात लाई है.

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